रायपुरः 25 मई 2013 छत्तीसगढ़ के लिए एक ऐसा काला दिन है, जिसे भूलना बहुत मुश्किल है. आज इस घटना को पूरे 7 साल बीत गए, लेकिन जिन लोगों ने इस घटना को करीब से देखा है, उनके दिलो-दिमाग पर आज भी यह नरसंहार जैसे कल की ही है. 25 मई 2013 को कांग्रेस के बड़े नेताओं का काफिला बस्तर में परिवर्तन यात्रा में शामिल हुआ था. यात्रा के दौरान दरभा घाटी के झीरम इलाके में नक्सलियों ने कांग्रेस नेताओं के काफिले को निशाना बनाया, जिसमें कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा, दिनेश पटेल और कई बड़े नेताओं के साथ सुरक्षा जवान शहीद हो गए.
झीरम हमले के प्रत्यक्षदर्शी दौलत रोहड़ा और इस घटना पर पुस्तक लिखने वाली लेखिका प्रीति उपाध्याय और वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक झा से ETV भारत ने खास बातचीत की. इस चर्चा में हमने प्रत्यक्षदर्शी दौलत रोहड़ा से घटना कैसे घटी, 7 साल के बाद इसमें जांच की क्या स्थिति है, इस बारे में जानने की कोशिश की.
जांच रिपोर्ट पर खड़े किए सवाल
प्रत्यक्षदर्शी दौलत रोहड़ा ने बताया कि घटना को अंजाम देने वाले नक्सली नहीं थे वे सुपारी किलर थे. जब भी इस घटना को याद करते हैं तो दिल दहल जाता है. उन्होंने बताया कि वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल के साथ उनकी गाड़ी में बैठे थे और अचानक नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दी. इस दौरन उन्हें किसी प्रकार की कोई सुरक्षा नहीं मिली थी. ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें जंगल में किसी किसी जानवर के पास छोड़ दिया गया हो. उन्होंने तत्कालीन बीजेपी सरकार और वर्तमान के केंद्र सरकार की जांच रिपोर्ट पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि 25 मई 2013 झीरम हमला गुमनामी के अंधेरे में चला जाएगा, जिसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा.
घटना के कई पहलू हैं जिनका खुलासा अभी भी बाकी
लेखिका प्रीति उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने घटना के प्रत्यक्षदर्शियों से बात की है, जिनसे पता चला कि घटना घटित होने का सबसे मुख्य कारण सुरक्षा-व्यवस्था की कमी है, साथ ही घटना के जांच दस्तावेजों से इंटलिजेंस ब्यूरो को सूचना होने के बावजूद किसी प्रकार सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाने जैसी बात सामने आती है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक झा ने कहा कि इस घटना के कई पहलू हैं, जिसका अब तक खुलासा नहीं हो पाया है.