रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव शायद पहला चुनाव होगा, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनका परिवार शामिल नहीं है. छत्तीसगढ़ की राजनीति में तीसरी शक्ति का दावा करने वाली अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बुरे दौर से गुजर रही है. एक-एक कर कार्यकर्ता और पदाधिकारी उनकी पार्टी छोड़ रहे हैं और जोगी भी इसे सहज तरीके से ले रहे हैं.
दो साल पहले 23 जून 2016 को जोगी के नेतृत्व में जब इस प्रदेश पार्टी का गठन हुआ था, तब कांग्रेस से असंतुष्ट और मुख्य धारा से छिटके हुए नेताओं को नया ठौर मिल गया था, जो उनके लिए उम्मीद भरा था, लिहाजा ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक तैयारशुदा फौज जनता कांग्रेस को मिल गई थी. लेकिन अब लोकसभा चुनाव के समय पार्टी में भगदड़ सी मच गई है.
विधानसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे के तौर पर रही पार्टी
विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चा की भूमिका में रही जोगी की पार्टी अब हताशा में डूबे नेता फिर कांग्रेस की ओर रुख करने लगे हैं. अब नेतृत्व के सामने पार्टी के अस्तित्व का प्रश्न खड़ा हो गया है. संगठन में भगदड़ मची हुई है. कई पदाधिकारी इस्तीफा दे चुके हैं और खुद को कांग्रेस व भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करने वाली जोगी कांग्रेस फिलहाल अंधेरे में डूब सी लगती है. अब जोगी कांग्रेस की पांच में से तीन सीटें खतरे में हैं. जोगी दंपति अजीत जोगी व रेणु जोगी को छोड़ दें तो शेष तीन विधायक देवव्रत सिंह, धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा कांग्रेस में शामिल होने के लिए लगातार कयास लगाए जा रहे हैं.
'लड़ना चाहिए था लोकसभा चुनाव'
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य में अपनी राजनीतिक हैसियत को पुन: परखने के लिए छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस को अपने प्रभाव क्षेत्र की कुछ लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩा चाहिए था. इससे नेताओं व कार्यकर्ताओं में उत्साह व विश्वास बना रहता और गतिशीलता भी कायम रहती. जोगी खुद कोरबा से चुनाव लडऩा चाहते थे, जहां उनके लिए काफी संभावनाएं थी. क्योंकि इस लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 6 में, जहां छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहा था. यानी संभावना ठीक-ठाक थी, लेकिन अंतत: अजीत जोगी ने चुनाव न लडने का फैसला लिया.
बसपा ने घोषित कर दिए थे प्रत्याशियों के नाम
सीटों के बंटवारे के सवाल पर बसपा के साथ जो तालमेल विधानसभा में नजर आया था, वह लोकसभा में लुप्त रहा. बसपा ने एकतरफा निर्णय लेते हुए अधिकांश सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित कर दिए थे. जोगी कांग्रेस के मैदान से हटने से त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति टली जो वोटों के विभाजन को रोकने की दृष्टि से कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण थी.
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का क्या है कहना
हालांकि पार्टी के नेता इस बात से इनकार करते हैं. वे कहते हैं कि नई पार्टी का इतनी सीट पहले चुनाव में लाना छोटी बात नहीं है.
क्या जोगी के लिए आगे की राह आसान ?
अजीत जोगी के लिए आगे की राह आसान नहीं है. अब पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना एक बड़ी चुनौती की तरह है. दरअसल दिसंबर 2018 में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने बाद से ही नेताओं का पार्टी से मोह भंग होना शुरू हो गया था. छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के कांग्रेस में विलय के सवाल पर काफी पहले यह चर्चा रही है कि अजीत जोगी व अमित जोगी को छोड़कर पार्टी के अन्य नेताओं से कांग्रेस को कोई परहेज नहीं हैं. वैसे प्रचंड बहुमत के चलते कांग्रेस को इनकी जरूरत भी नहीं है. फिर भी उसने अपने दरवाजे खुले छोड़ रखे हैं. देखते हैं लोकसभा चुनाव के नतीजे पार्टी को किस दिशा की तरफ ले जाते हैं.