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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस: 'अभावों' में पढ़ता लेकिन आगे बढ़ता छत्तीसगढ़

हर साल 11 नवंबर को भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन के मौके पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है, आइए जानते हैं कि कितना साक्षर है छत्तीसगढ़.

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
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Published : Nov 11, 2019, 3:24 PM IST

रायपुर: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हर साल 11 नवंबर को मनाया जाता है. भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन के मौके हर साल शिक्षा दिवस मनाया जाता है. मौलाना अबुल कलाम का जन्म 11 नवंबर 1888 में हुआ था. उन्होंने 14 साल की उम्र तक बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ उन्हें तकनीकि तौर पर मजबूत करने की वकालत की थी. उन्हें उर्दू, फारसी, हिन्दी, अरबी और अंग्रेजी भाषाओं में महारथ हासिल थी. उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने पर बल दिया था.

'अभावों' में पढ़ता लेकिन आगे बढ़ता छत्तीसगढ़

केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा को लेकर कई योजनाएं चला रही हैं. इनमें 14 साल तक के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का प्रावधान है. मंदिरों, आश्रमों, गुरुकुलों से निकलकर भारतीय शिक्षा व्यवस्था ने कई मंजिलें पाई हैं. देशभर में स्कूल, कॉलेज खुले और हर साल सारक्षता दर में बढ़ोतरी हुई. लेकिन जैसा इस देश को नौनिहालों को मिलना था वो मिल नहीं पाया.

आज भी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है देश
अच्छे स्कूल, बढ़िया पढ़ाई और टीचर्स की कमी से देश के न सिर्फ पिछड़े इलाके जूझ रहे हैं बल्कि शहरी क्षेत्रों से भी ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं, जो ये सवाल पूछती हैं कि क्या वाकई हमें शिक्षा पर जितना जोर देना था, हमने दिया है. हालांकि केंद्र और देश की राज्य सरकारों ने इस दिशा में काम किया है. आजादी के बाद राधाकृष्ण आयोग, माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) 1953, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, कोठारी शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) एवं नवीन शिक्षा नीति (1986) आदि के द्वारा भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देने की गंभीर कोशिश की गईं.

स्कूल चलें हम...
सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील, पढ़े भारत-बढ़े भारत (प्राथमिक शिक्षा) जैसी बड़ी योजनाएं शिक्षा को लेकर संचालित हैं. इसके अलावा मोदी सरकार 2 ने 'दीक्षारंभ' और 'परामर्श' (उच्च शिक्षा) नाम की दो नई योजनाएं शुरू की हैं.
इसके अलावा केंद्र ने स्कूल-साक्षरता और शिक्षक शिक्षण विभाग की अलग-अलग योजनाओं को मर्ज कर अब ‘समग्र शिक्षा अभियान’ शुरू किया है. ये योजना प्री-नर्सरी से कक्षा 12वीं तक के छात्रों के समग्र विकास पर केंद्रित है.

छत्तीसगढ़ में भी चल रही हैं योजनाएं
छत्तीसगढ़ में मेधावी छात्र शिक्षा प्रोत्साहन के तहत मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है. यहां आदिवासी छात्रों के लिए छात्रावास और आश्रीम अंतर्गत कई योजनाएं संचालित हैं. मुफ्त गणवेश, किताबें, सरस्वती साइकिल योजना और मध्याह्न भोजन के लिए योजना चल रही है.

छत्तीसगढ़ में कितनी साक्षरता
नीति आयोग ने अपने स्कूली शिक्षा गुणवत्ता की सूची जारी की, जिसमें 81.9 प्रतिशत अंक के साथ केरल को नंबर 1 स्थान मिला है. वर्तमान में दूसरे राज्यों की तुलना में यह राज्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ की हालत संतुष्ट नहीं करती. राज्य स्कूली शिक्षा गुणवत्ता की सूची में टॉप टेन में भी नहीं है.

प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों की हालत खराब है. सबसे कम साक्षरता दर नक्सल प्रभावित सुकमा में है. हालांकि यहां कई सालों से बंद पड़े स्कूल खुलवाने का काम सरकार ने हाल ही में किया है. सूबे से जहां कुछ सरकारी स्कूलों की बेहतरीन तस्वीर देखने को मिलती है वहीं कुछ बड़े सवाल खड़े करती हैं. नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे. जर्जर भवनों या झोपड़ियों में पढ़ते. सड़कों का अभाव, भवनों का अभाव, गुरुओं का अभाव और पढ़ने के लिए पैसों का अभाव. इस शिक्षा दिवस पर हम उम्मीद करते हैं ये सूरत बदलेगी.

रायपुर: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस हर साल 11 नवंबर को मनाया जाता है. भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन के मौके हर साल शिक्षा दिवस मनाया जाता है. मौलाना अबुल कलाम का जन्म 11 नवंबर 1888 में हुआ था. उन्होंने 14 साल की उम्र तक बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ-साथ उन्हें तकनीकि तौर पर मजबूत करने की वकालत की थी. उन्हें उर्दू, फारसी, हिन्दी, अरबी और अंग्रेजी भाषाओं में महारथ हासिल थी. उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने पर बल दिया था.

'अभावों' में पढ़ता लेकिन आगे बढ़ता छत्तीसगढ़

केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा को लेकर कई योजनाएं चला रही हैं. इनमें 14 साल तक के बच्चों को निशुल्क शिक्षा का प्रावधान है. मंदिरों, आश्रमों, गुरुकुलों से निकलकर भारतीय शिक्षा व्यवस्था ने कई मंजिलें पाई हैं. देशभर में स्कूल, कॉलेज खुले और हर साल सारक्षता दर में बढ़ोतरी हुई. लेकिन जैसा इस देश को नौनिहालों को मिलना था वो मिल नहीं पाया.

आज भी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है देश
अच्छे स्कूल, बढ़िया पढ़ाई और टीचर्स की कमी से देश के न सिर्फ पिछड़े इलाके जूझ रहे हैं बल्कि शहरी क्षेत्रों से भी ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं, जो ये सवाल पूछती हैं कि क्या वाकई हमें शिक्षा पर जितना जोर देना था, हमने दिया है. हालांकि केंद्र और देश की राज्य सरकारों ने इस दिशा में काम किया है. आजादी के बाद राधाकृष्ण आयोग, माध्यमिक शिक्षा आयोग (मुदालियर आयोग) 1953, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, कोठारी शिक्षा आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) एवं नवीन शिक्षा नीति (1986) आदि के द्वारा भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समय-समय पर सही दिशा देने की गंभीर कोशिश की गईं.

स्कूल चलें हम...
सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील, पढ़े भारत-बढ़े भारत (प्राथमिक शिक्षा) जैसी बड़ी योजनाएं शिक्षा को लेकर संचालित हैं. इसके अलावा मोदी सरकार 2 ने 'दीक्षारंभ' और 'परामर्श' (उच्च शिक्षा) नाम की दो नई योजनाएं शुरू की हैं.
इसके अलावा केंद्र ने स्कूल-साक्षरता और शिक्षक शिक्षण विभाग की अलग-अलग योजनाओं को मर्ज कर अब ‘समग्र शिक्षा अभियान’ शुरू किया है. ये योजना प्री-नर्सरी से कक्षा 12वीं तक के छात्रों के समग्र विकास पर केंद्रित है.

छत्तीसगढ़ में भी चल रही हैं योजनाएं
छत्तीसगढ़ में मेधावी छात्र शिक्षा प्रोत्साहन के तहत मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है. यहां आदिवासी छात्रों के लिए छात्रावास और आश्रीम अंतर्गत कई योजनाएं संचालित हैं. मुफ्त गणवेश, किताबें, सरस्वती साइकिल योजना और मध्याह्न भोजन के लिए योजना चल रही है.

छत्तीसगढ़ में कितनी साक्षरता
नीति आयोग ने अपने स्कूली शिक्षा गुणवत्ता की सूची जारी की, जिसमें 81.9 प्रतिशत अंक के साथ केरल को नंबर 1 स्थान मिला है. वर्तमान में दूसरे राज्यों की तुलना में यह राज्य उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे हैं. वहीं छत्तीसगढ़ की हालत संतुष्ट नहीं करती. राज्य स्कूली शिक्षा गुणवत्ता की सूची में टॉप टेन में भी नहीं है.

प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों की हालत खराब है. सबसे कम साक्षरता दर नक्सल प्रभावित सुकमा में है. हालांकि यहां कई सालों से बंद पड़े स्कूल खुलवाने का काम सरकार ने हाल ही में किया है. सूबे से जहां कुछ सरकारी स्कूलों की बेहतरीन तस्वीर देखने को मिलती है वहीं कुछ बड़े सवाल खड़े करती हैं. नदी पार कर स्कूल जाते बच्चे. जर्जर भवनों या झोपड़ियों में पढ़ते. सड़कों का अभाव, भवनों का अभाव, गुरुओं का अभाव और पढ़ने के लिए पैसों का अभाव. इस शिक्षा दिवस पर हम उम्मीद करते हैं ये सूरत बदलेगी.

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