रायपुर: छत्तीसगढ़ में सुरहुत्ति तिहार का खास महत्व है. सुरहुत्ति तिहार वर्तमान समय में दीपावली पर्व या दीपावली त्यौहार के नाम से जाना जाता है. सुरहुत्ति तिहार में ग्वालिन की पूजा करते हैं. आज भी ग्रामीण इलाकों में ग्वालिन की पूजा करने के बाद पूरे घर को दीयों से रोशन किया जाता है.
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ में सुरहुत्ति तिहार में ग्वालिन की पूजा: इतिहासकार डॉ हेमू यदु ने बताया कि "पूरे भारतवर्ष में केवल छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य है, जहां पर ग्वालिन की पूजा होती है. ग्वाला कृष्ण भगवान को कहा जाता है. ग्वालिन के रूप में राधा की पूजा की जाती है. ग्वालिन की मूर्ति बाजार में कम देखने को मिलती है. ग्वालिन कि मूर्ति में 3, 5, 7, 9 दीये बने होते हैं, जिसे ग्वालिन का नाम दिया गया है. राधा के रूप में ग्वालिन की दीपावली के दिन पूजा अर्चना की जाती है."
दीपावली के दिन मां लक्ष्मी और ग्वालिन की पूजा करने को लेकर महामाया मंदिर के पंडित मनोज शुक्ला का कहना है कि "दीपावली 5 दिनों का पर्व है. जिसमें खासकर मां लक्ष्मी जी की पूजा विशेषकर इसलिए होती है कि कार्तिक तिथि अमावस्या को समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों के साथ माता लक्ष्मी जी की उत्पत्ति हुई थी. इसलिए इस दिन को लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है.''
ग्वालिन को राधा रानी का स्वरूप माना जाता है: पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि ''ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब 14 वर्ष के वनवास से लौटकर अयोध्या पहुंचे थे, उस दिन दीपों की रोशनी की गई थी. छत्तीसगढ़ में दीपावली के दिन पूजा करने की अलग अलग परंपरा है. आज के दिन व्यापारी वर्ग अपने खाता बही की पूजा करते हैं. ब्राह्मण वर्ग इस दिन लक्ष्मी गणेश और सरस्वती जी की पूजा करते हैं. ग्रामीण क्षेत्र के यदुवंशी परिवार के लोग आज के दिन ग्वालिन की पूजा करके दीपों का पर्व मनाते हैं. राधा रानी के ग्वाला की पुत्री होने के कारण ग्वालिन के रूप में उनकी पूजा होती है."