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Sindhara dooj :सिंधारा दूज का महत्व और विधान जानिए - क्या होता है सिंधोरा वाले दिन रीति रिवाज

हरियाली तीज के मौके पर नई नवेली दुल्हनों के साथ एक खास रस्म निभाई जाती है. हरियाली तीज के पहले सिंधारा दूज मनाने की परंपरा है.जो शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाती है.

Significance and rituals of Sindhara Duj
सिंधारा दूज क्यों है खास
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Published : Mar 20, 2023, 5:57 PM IST

रायपुर : सिंधारा दूज के दिन नई नवेली दुल्हन के मायके से खास किस्म के उपहार भेजे जाते हैं. जिनमें सिंधोरा, मिठाइयां, कपड़े और श्रृंगार के सामान होते हैं.यदि बेटी ससुराल में होती है तो इस दिन मायके की तरफ से सिंधोरा भेजा जाता है.वहीं बहू मायके गई हो तो ससुराल से सिंधोरा जाता है. सिंधोरा दूज के दिन ही यह भेंट दिया जाता है. इसलिए ये दिन सुहागिनों के लिए खास है. सिंधोरे के सामान में आई मेहंदी को सुहागिन अपने हाथों में लगाती है. इसके बाद अगले दिन तीज का व्रत रखा जाता है.

नई नवेली दुल्हन मनाती हैं सिंधारा दूज : सिंधारा दूज में जिन लड़कियों की नई शादी होती है वो पहली तीज अपने मायके में मनाती हैं. इसलिए ससुराल से आने वाले सिंधोरे महत्व ज्यादा होता है. सिंधोरे में आए कपड़े और सुहाग के सामान से सुहागिनें सजती संवरती हैं .पूजा के दिन आभूषणों और कपड़ों को पहन कर व्रत करती हैं. सिंधोरे में आए उपहारों को ससुराल पक्ष में रहने वाले लोगों को बांटे भी जाते हैं.

ये भी पढ़ें- क्यों नहीं रविवार को पूजी जाती है तुलसी

सिंधोरा का रीति रिवाज : सिंधारा दूज के दिन झूला झूलने की पुरानी परंपरा है.इस दिन बागों में झूले लगाए जाते हैं. सावन के जैसे ही झूलों में सुहागिनें झूलकर हरियाली तीज का स्वागत करती हैं.इस दिन सभी सुहागिनें हाथों में मेहंदी लगाती है. सजती संवरती हैं. साथ ही साथ सिंधोरा के डिब्बे में आए सामान को आपस में बांटती हैं.इस दिन बहूएं अपनी सास को खास उपहार भी देती हैं. सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके में ही रहती हैं.

रायपुर : सिंधारा दूज के दिन नई नवेली दुल्हन के मायके से खास किस्म के उपहार भेजे जाते हैं. जिनमें सिंधोरा, मिठाइयां, कपड़े और श्रृंगार के सामान होते हैं.यदि बेटी ससुराल में होती है तो इस दिन मायके की तरफ से सिंधोरा भेजा जाता है.वहीं बहू मायके गई हो तो ससुराल से सिंधोरा जाता है. सिंधोरा दूज के दिन ही यह भेंट दिया जाता है. इसलिए ये दिन सुहागिनों के लिए खास है. सिंधोरे के सामान में आई मेहंदी को सुहागिन अपने हाथों में लगाती है. इसके बाद अगले दिन तीज का व्रत रखा जाता है.

नई नवेली दुल्हन मनाती हैं सिंधारा दूज : सिंधारा दूज में जिन लड़कियों की नई शादी होती है वो पहली तीज अपने मायके में मनाती हैं. इसलिए ससुराल से आने वाले सिंधोरे महत्व ज्यादा होता है. सिंधोरे में आए कपड़े और सुहाग के सामान से सुहागिनें सजती संवरती हैं .पूजा के दिन आभूषणों और कपड़ों को पहन कर व्रत करती हैं. सिंधोरे में आए उपहारों को ससुराल पक्ष में रहने वाले लोगों को बांटे भी जाते हैं.

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सिंधोरा का रीति रिवाज : सिंधारा दूज के दिन झूला झूलने की पुरानी परंपरा है.इस दिन बागों में झूले लगाए जाते हैं. सावन के जैसे ही झूलों में सुहागिनें झूलकर हरियाली तीज का स्वागत करती हैं.इस दिन सभी सुहागिनें हाथों में मेहंदी लगाती है. सजती संवरती हैं. साथ ही साथ सिंधोरा के डिब्बे में आए सामान को आपस में बांटती हैं.इस दिन बहूएं अपनी सास को खास उपहार भी देती हैं. सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके में ही रहती हैं.

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