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हमर 19 बछर: नसबंदी, गर्भाशय और आंखफोड़वा कांड का दर्द सालता रहेगा

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Published : Nov 1, 2019, 12:11 AM IST

Updated : Nov 1, 2019, 6:02 AM IST

आज छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर हम बात कर रहे हैं ऐसी ही घटनाओं की जिसने पूरे छत्तीसगढ़ को हिलाकर रख दिया था.

नसबंदी, गर्भाशय और आंखफोड़वा कांड का दर्द सालता रहेगा

रायपुर: आज एक नवंबर है और ठीक 19 साल पहले आज ही के दिन छत्तीसगढ़ राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया था. 19 साल के इस सफर में प्रदेश ने जहां तरक्की की नई इबारतें लिखीं, वहीं उसके दामन में कई ऐसे दाग लगे जिसे धो पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा.

पैकेज

छत्तीसगढ़ अभी सात साल का ही हुआ था और धीरे-धीरे विकास के पथ पर चलते हुए खुद को मुल्क के अग्रणी राज्यों के बीच स्थापित करने लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया.

साल था 2007 केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की थी, जिसके तहत प्रत्येक परिवार का 30 हजार रुपये का स्वास्थ्य बीमा कराया गया था और यही वो स्कीम थी जिसकी वजह से सूबे की हजारों महिलाओं की जिंदगी जहन्नुम बन गई. पहला मामला साल 2012 में सामने आया, दरअसल बीमा की राशि हड़पने के लिए निजी नर्सिंग होम के डॉक्टरों ने 22 गरीब महिलाओं को कैंसर का डर दिखाकर उनके गर्भाश्य निकाल लिए. इस मामले में कुल नौ डॉक्टरों पर आरोप लगे और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने इन डॉक्टरों के लाइसेंस को निलंबित कर दिया था.

2011 में आंखफोड़वा कांड

22 सितंबर 2011 यही वह मनहूस तारीख थी, जिस रोज सूबे में करीब 65 लोगों अपनी आखों की रोशनी को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया. दरअसल प्रदेश के 2 सरकारी शिविरों में मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान लापरवाही की वजह से पांच दर्जन लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी. बालोद में 48, बागबाहरा में 12, राजनांदगांव-कवर्धा में 4-5 लोग इसके शिकार हुए. इस मामले में दुर्ग सीएमओ समेत बालोद बीएमओ, तीन नेत्र सर्जन आदि सस्पेंड हुए थे. इस चिकित्स्कीय लापरवाही को आंखफोड़वा कांड के नाम से भी जाना जाता है.

2014 में नसबंदी कांड

अब हम आपको इंसानों की ओर से की गई उस लापरवाही के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने कई महिलाओं की जिंदगी लील ली. न जाने कितने बच्चों के सिर से मां का साया छीन लिया. हम बात कर रहे हैं साल 2014 में हुए नसबंदी कांड की. नवंबर 2014 में बिलासपुर जिले के पेंड्रा और पेंडारी में महिलाओं ने नसबंदी ऑपरेशन कराया था, इनमें से कई अभागिनों को कहां पता था कि ये उनकी जिदंगी का आखिरी दिन होने वाला है.

137 महिलाओं का हुआ था ऑपरेशन, 13 की जान गई

नसबंदी कैंपों में कुल 137 महिलाओं का नसबंदी ऑपरेशन हुआ था, जिसमें से 13 महिलाएं काल के गाल में समा गई थीं. पोस्टमार्टम में महिलाओं की मौत के पीछे संक्रमण को बताया गया. जैसा कि हर बार होता इस घटना के बाद भी सरकारी जांच बैठाई गई. 83 महिलाओं का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर आरके गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया. इसी दौरान बाद में राज्य के स्वास्थ्य सचिव ने एक 'जांच रिपोर्ट' के आधार पर दावा किया था कि महिलाओं को दी गई सिप्रोसीन दवा में चूहा मारने वाले जहर का अंश पाया गया था.

जांच पर जांच हुई

सरकार ने अलग-अलग लैब में जांच कराई और रिपोर्ट्स के आधार पर सिप्रोसिन और आई ब्रुफेन दवा बनाने वाली कंपनी महावर फार्मा पर दोषी ठहरा दिया. सरकार के इसी दावे के आधार पर आरके गुप्ता को भी कोर्ट से जमानत मिल गई. जिसके बाद सरकार ने आईब्रुफेन और सिप्रोसिन दवा बानाने वाली कंपनी महावर फार्मा पर मामले दर्ज कराते हुए उसे ब्लैकलिस्टेड कर दिया. बाद में महावर फॉर्मा के मालिकों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी.

छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था पर इन हादसों की वजह से सवाल उठते रहे हैं. सूपेबेड़ा में किडनी की बीमारी भी राज्य सरकार के लिए बड़ा चैलेंज है. हालांकि सूबे में सरकार बदली है, एक संवेदनशील स्वास्थ्य मंत्री मिला है. जिनकी तारीफ खुद राज्यपाल कर चुकी हैं. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले वर्षों में हमें बदलाव देखने को मिलें.

रायपुर: आज एक नवंबर है और ठीक 19 साल पहले आज ही के दिन छत्तीसगढ़ राज्य के तौर पर अस्तित्व में आया था. 19 साल के इस सफर में प्रदेश ने जहां तरक्की की नई इबारतें लिखीं, वहीं उसके दामन में कई ऐसे दाग लगे जिसे धो पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा.

पैकेज

छत्तीसगढ़ अभी सात साल का ही हुआ था और धीरे-धीरे विकास के पथ पर चलते हुए खुद को मुल्क के अग्रणी राज्यों के बीच स्थापित करने लिए संघर्ष कर रहा था, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया.

साल था 2007 केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की थी, जिसके तहत प्रत्येक परिवार का 30 हजार रुपये का स्वास्थ्य बीमा कराया गया था और यही वो स्कीम थी जिसकी वजह से सूबे की हजारों महिलाओं की जिंदगी जहन्नुम बन गई. पहला मामला साल 2012 में सामने आया, दरअसल बीमा की राशि हड़पने के लिए निजी नर्सिंग होम के डॉक्टरों ने 22 गरीब महिलाओं को कैंसर का डर दिखाकर उनके गर्भाश्य निकाल लिए. इस मामले में कुल नौ डॉक्टरों पर आरोप लगे और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने इन डॉक्टरों के लाइसेंस को निलंबित कर दिया था.

2011 में आंखफोड़वा कांड

22 सितंबर 2011 यही वह मनहूस तारीख थी, जिस रोज सूबे में करीब 65 लोगों अपनी आखों की रोशनी को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया. दरअसल प्रदेश के 2 सरकारी शिविरों में मोतियाबिंद ऑपरेशन के दौरान लापरवाही की वजह से पांच दर्जन लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी. बालोद में 48, बागबाहरा में 12, राजनांदगांव-कवर्धा में 4-5 लोग इसके शिकार हुए. इस मामले में दुर्ग सीएमओ समेत बालोद बीएमओ, तीन नेत्र सर्जन आदि सस्पेंड हुए थे. इस चिकित्स्कीय लापरवाही को आंखफोड़वा कांड के नाम से भी जाना जाता है.

2014 में नसबंदी कांड

अब हम आपको इंसानों की ओर से की गई उस लापरवाही के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने कई महिलाओं की जिंदगी लील ली. न जाने कितने बच्चों के सिर से मां का साया छीन लिया. हम बात कर रहे हैं साल 2014 में हुए नसबंदी कांड की. नवंबर 2014 में बिलासपुर जिले के पेंड्रा और पेंडारी में महिलाओं ने नसबंदी ऑपरेशन कराया था, इनमें से कई अभागिनों को कहां पता था कि ये उनकी जिदंगी का आखिरी दिन होने वाला है.

137 महिलाओं का हुआ था ऑपरेशन, 13 की जान गई

नसबंदी कैंपों में कुल 137 महिलाओं का नसबंदी ऑपरेशन हुआ था, जिसमें से 13 महिलाएं काल के गाल में समा गई थीं. पोस्टमार्टम में महिलाओं की मौत के पीछे संक्रमण को बताया गया. जैसा कि हर बार होता इस घटना के बाद भी सरकारी जांच बैठाई गई. 83 महिलाओं का ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर आरके गुप्ता को गिरफ्तार कर लिया गया. इसी दौरान बाद में राज्य के स्वास्थ्य सचिव ने एक 'जांच रिपोर्ट' के आधार पर दावा किया था कि महिलाओं को दी गई सिप्रोसीन दवा में चूहा मारने वाले जहर का अंश पाया गया था.

जांच पर जांच हुई

सरकार ने अलग-अलग लैब में जांच कराई और रिपोर्ट्स के आधार पर सिप्रोसिन और आई ब्रुफेन दवा बनाने वाली कंपनी महावर फार्मा पर दोषी ठहरा दिया. सरकार के इसी दावे के आधार पर आरके गुप्ता को भी कोर्ट से जमानत मिल गई. जिसके बाद सरकार ने आईब्रुफेन और सिप्रोसिन दवा बानाने वाली कंपनी महावर फार्मा पर मामले दर्ज कराते हुए उसे ब्लैकलिस्टेड कर दिया. बाद में महावर फॉर्मा के मालिकों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी.

छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था पर इन हादसों की वजह से सवाल उठते रहे हैं. सूपेबेड़ा में किडनी की बीमारी भी राज्य सरकार के लिए बड़ा चैलेंज है. हालांकि सूबे में सरकार बदली है, एक संवेदनशील स्वास्थ्य मंत्री मिला है. जिनकी तारीफ खुद राज्यपाल कर चुकी हैं. हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले वर्षों में हमें बदलाव देखने को मिलें.

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Last Updated : Nov 1, 2019, 6:02 AM IST
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