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Sankashti Chaturthi 2023 : द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व और पूजन विधि - देवों में प्रथम पूज्य गणपति

गणपति पूजन सबसे प्रथम माना गया है. ऐसे में देवों में प्रथम पूज्य गणपति का व्रत और विधि विधान से पूजन करने से मनोकामनाएं पूरी होती है. फाल्गुन मास में आने वाले द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी ऐसी ही एक तिथि है जिसमें आप गणेशजी को प्रसन्न करके मनचाहा फल प्राप्त कर सकते हैं. इस बार 9 फरवरी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी आ रही है.

Sankashti Chaturthi 2023
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व और पूजन विधि
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Published : Feb 3, 2023, 7:54 PM IST

रायपुर/ हैदराबाद : गणेश चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग में हर महीने दो चतुर्थी आती हैं. शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में यानी महीने में दो बार संकष्टी चतुर्थी आती है. जो चतुर्थी कृष्ण पक्ष के अंतर्गत आती है उसे ही संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है.वहीं जो चतुर्थी शुक्ल पक्ष या उजियार चंद्रमा के समय में पड़ती है उसे विनायक चतुर्थी का नाम दिया गया है. संकष्टी चतुर्थी वाले दिन जो भी व्यक्ति उपवास रखता है उसे पूरा दिन निराहार रहना पड़ता है. निराहार रहकर ही उसे व्रत कथा सुननी पड़ती है. सूर्य अस्त होने के बाद ही कथा श्रवण करना शुभ माना गया है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व : द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं .इतना ही नहीं संकष्टी चतुर्थी का पूजा से घर में शांति बनी रहती है. घर की सारी परेशानियां दूर होती हैं. देवों में प्रथम पूज्य अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते.इसलिए निरंतर व्रत रखने वालों की मनोकामना पूर्ण होती है. ऐसी भी कई जगहों पर मान्यता है कि कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करना शुभ है. वहीं सूर्योदय से शुरु होने वाले इस व्रत की समाप्ति चंद्र दर्शन के बाद ही होती है. संकष्टी चतुर्थी की अलग अलग कथाएं भी प्रचलित हैं.

कैसे करें व्रत की शुरुआत : गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लें.स्नान के बाद गणेश जी की पूजा आराधना करें, गणेश जी से संबंधित मन्त्रों का उच्चारण करें. गणेश जी को मोदक, लड्डू और दूर्वा घास चढ़ाएं. गणेश मंत्रों का उच्चारण करें. श्री गणेश चालीसा का पाठ करें,इसके बाद ही आरती करें.शाम को चंद्रोदय के बाद पूजा की जाती है, अगर रात के समय चन्द्रमा नहीं दिखाई देता है तो पंचांग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें . शाम की पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति के बाजू में दुर्गा जी की मूर्ति या तस्वीर रखें, इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी गई है.

ये भी पढ़ें- जया एकादशी का महत्व और पूजन विधि

संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि : फोटो के सामने धूप, दीप, अगरबत्ती लगाएं, फूलों से सजाएं . प्रसाद में केला, नारियल रखें.गणेश जी के प्रिय मोदक बनाकर रखें, इस दिन तिल या गुड़ के मोदक बनाये जाते हैं. गणेश जी के मन्त्र का जाप करते हुए कुछ मिनट का ध्यान करें, कथा सुने, आरती करें, प्रार्थना करें.इसके बाद चन्द्रमा की पूजा करें, उन्हें जल अर्पण कर फुल, चन्दन, चावल चढ़ाएं.पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सबको वितरित किया जाता है.गरीबों को दान भी किया जाता है.

रायपुर/ हैदराबाद : गणेश चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा की जाती है. हिंदू पंचांग में हर महीने दो चतुर्थी आती हैं. शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में यानी महीने में दो बार संकष्टी चतुर्थी आती है. जो चतुर्थी कृष्ण पक्ष के अंतर्गत आती है उसे ही संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है.वहीं जो चतुर्थी शुक्ल पक्ष या उजियार चंद्रमा के समय में पड़ती है उसे विनायक चतुर्थी का नाम दिया गया है. संकष्टी चतुर्थी वाले दिन जो भी व्यक्ति उपवास रखता है उसे पूरा दिन निराहार रहना पड़ता है. निराहार रहकर ही उसे व्रत कथा सुननी पड़ती है. सूर्य अस्त होने के बाद ही कथा श्रवण करना शुभ माना गया है.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व : द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन घर में पूजा करने से नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं .इतना ही नहीं संकष्टी चतुर्थी का पूजा से घर में शांति बनी रहती है. घर की सारी परेशानियां दूर होती हैं. देवों में प्रथम पूज्य अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते.इसलिए निरंतर व्रत रखने वालों की मनोकामना पूर्ण होती है. ऐसी भी कई जगहों पर मान्यता है कि कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन करना शुभ है. वहीं सूर्योदय से शुरु होने वाले इस व्रत की समाप्ति चंद्र दर्शन के बाद ही होती है. संकष्टी चतुर्थी की अलग अलग कथाएं भी प्रचलित हैं.

कैसे करें व्रत की शुरुआत : गणेश संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रात: काल स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लें.स्नान के बाद गणेश जी की पूजा आराधना करें, गणेश जी से संबंधित मन्त्रों का उच्चारण करें. गणेश जी को मोदक, लड्डू और दूर्वा घास चढ़ाएं. गणेश मंत्रों का उच्चारण करें. श्री गणेश चालीसा का पाठ करें,इसके बाद ही आरती करें.शाम को चंद्रोदय के बाद पूजा की जाती है, अगर रात के समय चन्द्रमा नहीं दिखाई देता है तो पंचांग के हिसाब से चंद्रोदय के समय में पूजा कर लें . शाम की पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति के बाजू में दुर्गा जी की मूर्ति या तस्वीर रखें, इस दिन दुर्गा जी की पूजा बहुत जरुरी मानी गई है.

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संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि : फोटो के सामने धूप, दीप, अगरबत्ती लगाएं, फूलों से सजाएं . प्रसाद में केला, नारियल रखें.गणेश जी के प्रिय मोदक बनाकर रखें, इस दिन तिल या गुड़ के मोदक बनाये जाते हैं. गणेश जी के मन्त्र का जाप करते हुए कुछ मिनट का ध्यान करें, कथा सुने, आरती करें, प्रार्थना करें.इसके बाद चन्द्रमा की पूजा करें, उन्हें जल अर्पण कर फुल, चन्दन, चावल चढ़ाएं.पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद सबको वितरित किया जाता है.गरीबों को दान भी किया जाता है.

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