ETV Bharat / state

Rishi Panchami 2021: पापों से मुक्ति दिलाने वाला व्रत है ऋषि पंचमी, जानिए इसकी पूजा विधि, मुहूर्त, कथा और मंत्र

हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी (Rishi Panchami Vrat 2021) का बहुत अधिक महत्व है. आज ऋषि पंचमी व्रत है. हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ऋषि पंचमी व्रत पड़ता है. आज यह व्रत पूरे देश में किया जा रहा है.

Rishi Panchami
ऋषि पंचमी
author img

By

Published : Sep 11, 2021, 8:49 AM IST

रायपुर : हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी (Rishi Panchami Vrat 2021) का बहुत अधिक महत्व है. आज ऋषि पंचमी व्रत है. हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ऋषि पंचमी व्रत पड़ता है. इस दिन सप्त ऋर्षियों का पूजन किया जाता है. महिलाएं इस दिन सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं. जाने-अनजाने हुई गलतियों और भूल से मुक्ति पाने के लिए लोग ये व्रत जरूर करते हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति ऋषियों की पूजा-अर्चना और स्मरण करता है उन्हें पापों से मुक्ति मिल जाती है.

जानें ऋषि पंचमी का पूजन मुहूर्त

पंचमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर की रात 09.57 बजे से ही हो गई है और इसकी समाप्ति 11 सितंबर को 07.37 को होगी. पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 बजे से शुरू होकर दोपहर 01.32 बजे तक रहेगा. इस साल ये पर्व 11 सितंबर को मनाया जा रहा है.

यह है ऋषि पंचमी पूजा विधि

  • व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए, इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • फिर घर के पूजा ग्रह की अच्छे से सफाई कर लेनी चाहिए.
  • इसके बाद हल्दी से चौकोर मंडल बनाएं, फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना कर व्रत करने का संकल्प लेनी चाहिए.
  • इसके बाद सप्त ऋषियों की सच्चे मन से पूजा करें.
  • पूजा स्थल पर एक मिट्टी के कलश की स्थापना करें.
  • सप्तऋषि के समक्ष दीप, धूप जलाएं और गंध, पुष्प नैवेद्य आदि अर्पित कर व्रत की कथा सुनें.

    फिर इस मंत्र से अर्घ्य दें
    ‘कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
    जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
    दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥
  • व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें और सप्तऋषि को मीठे पकवान का भोग लगाएं.
  • इस व्रत में केवल एक बार रात के समय भोजन किया जाता है.
  • ध्यान रखें कि व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन पृथ्वी पर पैदा हुए शाकादि आहार ही लेना चाहिए.

क्या है ऋषि पंचमी व्रत, क्यों प्रचलित है इसकी कथा

पौराणिक काल में एक राज्य में ब्राह्मण पति-पत्नी रहते थे. दोनों ही पति-पत्नी धर्म पालन में अग्रणी थे. उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी. बेटी के विवाह योग्य होने पर उन्होंने उसका विवाह एक अच्छे कुल में करा दिया, लेकिन विवाह के कुछ ही समय बाद उनकी बेटी के पति की मृत्यु हो गई. पति की मृत्यु के बाद ब्राह्मण की बेटी अपने वैधव्य व्रत का पालन करने के लिए नदी किनारे एक कुटिया में रहने लगी. कुछ समय बाद ही विधवा बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे. बेटी के कष्ट को देखकर ब्राह्मणी मां रोने लगी और उसने अपने पति से बेटी की इस दशा का कारण पूछा.

ब्राह्मण ने अपनी दिव्य शक्ति से अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि पूर्व जन्म में उसकी बेटी ने माहवारी के समय नियमों का पालन नहीं किया था. इसी कारण उसकी ये दशा हो रही है. पिता द्वारा बताए जाने के बाद ही ब्राह्मण की पुत्री ने पूरे विधि-विधान के साथ ऋषि पंचमी के व्रत का पालन शुरू कर दिया. इसके बाद उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई.

ऋषि पंचमी व्रत पूजन का क्या है महत्व

पौराणिक काल में महिलाओं के लिए माहवारी के समय पूजा-आराधना के कई नियम बताए गए थे. ऐसा कहा जाता था कि जो इन नियमों का पालन नहीं करेगा, उसे दोष लगेगा. इस दोष के निवारण के लिए ही महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं. माना जाता है जो महिला इस व्रत का पालन करती है, उसे न केवल दोषों से मुक्ति मिलती है बल्कि संतान प्राप्ति और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त होता है.

क्या है ऋषि पंचमी उद्यापन की विधि

माना जाता है कि अगर ये व्रत एक बार शुरू कर दिया जाए तो इसे हर वर्ष करना आवश्यक हो जाता है. फिर वृद्धावस्था में ही इस व्रत का उद्यापन किया जा सकता है. इस व्रत के उद्यापन के लिए ब्राहमण भोज करवाया जाता है. भोज के लिए सात ब्राह्मणों को सप्त ऋषि का रूप मानकर उन्हें वस्त्र, अन्न, दान और दक्षिणा दिये जाते हैं.

रायपुर : हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी (Rishi Panchami Vrat 2021) का बहुत अधिक महत्व है. आज ऋषि पंचमी व्रत है. हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ऋषि पंचमी व्रत पड़ता है. इस दिन सप्त ऋर्षियों का पूजन किया जाता है. महिलाएं इस दिन सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं. जाने-अनजाने हुई गलतियों और भूल से मुक्ति पाने के लिए लोग ये व्रत जरूर करते हैं. मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति ऋषियों की पूजा-अर्चना और स्मरण करता है उन्हें पापों से मुक्ति मिल जाती है.

जानें ऋषि पंचमी का पूजन मुहूर्त

पंचमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर की रात 09.57 बजे से ही हो गई है और इसकी समाप्ति 11 सितंबर को 07.37 को होगी. पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 बजे से शुरू होकर दोपहर 01.32 बजे तक रहेगा. इस साल ये पर्व 11 सितंबर को मनाया जा रहा है.

यह है ऋषि पंचमी पूजा विधि

  • व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए, इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • फिर घर के पूजा ग्रह की अच्छे से सफाई कर लेनी चाहिए.
  • इसके बाद हल्दी से चौकोर मंडल बनाएं, फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना कर व्रत करने का संकल्प लेनी चाहिए.
  • इसके बाद सप्त ऋषियों की सच्चे मन से पूजा करें.
  • पूजा स्थल पर एक मिट्टी के कलश की स्थापना करें.
  • सप्तऋषि के समक्ष दीप, धूप जलाएं और गंध, पुष्प नैवेद्य आदि अर्पित कर व्रत की कथा सुनें.

    फिर इस मंत्र से अर्घ्य दें
    ‘कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
    जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
    दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥
  • व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें और सप्तऋषि को मीठे पकवान का भोग लगाएं.
  • इस व्रत में केवल एक बार रात के समय भोजन किया जाता है.
  • ध्यान रखें कि व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन पृथ्वी पर पैदा हुए शाकादि आहार ही लेना चाहिए.

क्या है ऋषि पंचमी व्रत, क्यों प्रचलित है इसकी कथा

पौराणिक काल में एक राज्य में ब्राह्मण पति-पत्नी रहते थे. दोनों ही पति-पत्नी धर्म पालन में अग्रणी थे. उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी. बेटी के विवाह योग्य होने पर उन्होंने उसका विवाह एक अच्छे कुल में करा दिया, लेकिन विवाह के कुछ ही समय बाद उनकी बेटी के पति की मृत्यु हो गई. पति की मृत्यु के बाद ब्राह्मण की बेटी अपने वैधव्य व्रत का पालन करने के लिए नदी किनारे एक कुटिया में रहने लगी. कुछ समय बाद ही विधवा बेटी के शरीर में कीड़े पड़ने लगे. बेटी के कष्ट को देखकर ब्राह्मणी मां रोने लगी और उसने अपने पति से बेटी की इस दशा का कारण पूछा.

ब्राह्मण ने अपनी दिव्य शक्ति से अपनी बेटी के पूर्व जन्म को देखा तो उसे ज्ञात हुआ कि पूर्व जन्म में उसकी बेटी ने माहवारी के समय नियमों का पालन नहीं किया था. इसी कारण उसकी ये दशा हो रही है. पिता द्वारा बताए जाने के बाद ही ब्राह्मण की पुत्री ने पूरे विधि-विधान के साथ ऋषि पंचमी के व्रत का पालन शुरू कर दिया. इसके बाद उसे अगले जन्म में पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति हुई.

ऋषि पंचमी व्रत पूजन का क्या है महत्व

पौराणिक काल में महिलाओं के लिए माहवारी के समय पूजा-आराधना के कई नियम बताए गए थे. ऐसा कहा जाता था कि जो इन नियमों का पालन नहीं करेगा, उसे दोष लगेगा. इस दोष के निवारण के लिए ही महिलाएं इस व्रत का पालन करती हैं. माना जाता है जो महिला इस व्रत का पालन करती है, उसे न केवल दोषों से मुक्ति मिलती है बल्कि संतान प्राप्ति और सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद भी उन्हें प्राप्त होता है.

क्या है ऋषि पंचमी उद्यापन की विधि

माना जाता है कि अगर ये व्रत एक बार शुरू कर दिया जाए तो इसे हर वर्ष करना आवश्यक हो जाता है. फिर वृद्धावस्था में ही इस व्रत का उद्यापन किया जा सकता है. इस व्रत के उद्यापन के लिए ब्राहमण भोज करवाया जाता है. भोज के लिए सात ब्राह्मणों को सप्त ऋषि का रूप मानकर उन्हें वस्त्र, अन्न, दान और दक्षिणा दिये जाते हैं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.