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भारत की क्रांतिकारी महिला लेखिकाएं - nari shakti

भारत में ऐसी कई लेखिकाएं हुईं जिनकी कलम ने समाज की बंदिशों को तोड़ा. आज भी इनके लेख समाज को एक दूसरे नजर से देखने के लिए चश्मा देते हैं.आज हम बात करेंगे ऐसी ही कुछ लेखिकाओं के बारे में.

Revolutionary Women Writers of India
भारत की क्रांतिकारी महिला लेखिकाएं
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Published : Aug 10, 2022, 6:16 PM IST

Updated : Aug 13, 2022, 11:35 AM IST

इस्मत चुगताई : इस्मत का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 21 अगस्त 1915 को हुआ. उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता (azadi ka amrit mahotsav) है. वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया.उनकी ही रचनाएँ हैं; कहानी संग्रह: चोटें, छुईमुई, एक बात, कलियाँ, एक रात, दो हाथ दोज़खी, शैतान; उपन्यास: टेढी लकीर, जिद्दी, एक कतरा ए खून, दिल की दुनिया, मासूमा, बहरूप नगर, सैदाई, जंगली कबूतर, अजीब आदमी, बांदी; आत्मकथा: 'कागजी हैं पैराहन'. उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया. उनकी पहली फिल्म "छेड़-छाड़" 1943 में आई थी. वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं. उनकी आखिरी फ़िल्म "गर्म हवा" (1973) को कई पुरस्कार मिले.

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इस्मत चुगताई

अमृता प्रीतम : अविभाजित भारत में पंजाब प्रांत के गुजरांवाला ( पाकिस्तान ) में 31 अगस्त, 1919 को जन्मी, वह विभाजन के बाद भारत आ गईं. इसी समय के आसपास उन्होंने हिंदी में भी लिखना शुरू किया.वह 1936 में एक प्रकाशित लेखिका बन गईं जब वह मुश्किल से 17 वर्ष की थीं. वह अपने साहित्यिक कार्यों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रगतिशील लेखक आंदोलन में शामिल हुईं.अमृता प्रीतम को उनकी पंजाबी कविता अज्ज आखान वारिस शाह नु (ओड टू वारिस शाह) के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, जो 1947 में विभाजन के दौरान हुए नरसंहारों पर उनकी पीड़ा को मार्मिक रूप से दर्शाती है. उस दौर में जब लड़कियों को प्रेम करने की इजाजत नहीं थी, अमृता न केवल पूरी तरह से साहिर लुधियानवीं के प्रेम में डृबीं थीं बल्कि उनके लिए घर गृहस्थी सब छोड़ दिया. उनके इसी अंदाज के कारण वो आजाद ख्याल की लड़कियों की रोल मॉडल बनीं. इनकी रचनाओं में "रसीदी टिकट' और 'पिंजर' प्रसिद्ध थीं. पिंजर पर बाद में फिल्म भी बनाई गई. अमृता ने प्यार को आजादी कहा और जब साहिर को किसी और से प्रेम हो गया तो वो आम औरतों की तरह शिकायतें न करके चुपचाप जिंदगी को जीने लगीं. उन्होंने कभी साहिर से लौट आने के लिए मिन्नतें नहीं की बल्कि उन्हें आजाद कर दिया. उनकी लेखनी में भी उनके आजाद ख्याल दिखे. वो उस जमाने में इमरोज के साथ लिवइन में रहीं. जब लोग इसे खुलेपन पर हजारों सवाल खड़े कर देते थे. दो बच्चों के बाद भी एक तरफा प्यार के लिए गृहस्थी को छोड़कर आगे बढ़ना आसान नहीं था. न ही बिना शादी के इमरोज के साथ एक लंबा वक्त गुजराना. लेकिन दुनिया के सवालों की परवाह किए बिना अमृता ने अपनी जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और यही आजादी उनकी कलम में भी (Revolutionary Women Writers of India) दिखी.

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अमृता प्रीतम

शोभा डे: दक्षिण एशिया के विशिष्ट साहित्यिक लेखकों में से एक शोभा डे हैं. एक उपन्यासकार और स्तंभकार होने के नाते, उन्होंने दक्षिण एशियाई साहित्य में बड़ा योगदान दिया. शोभा डे का जन्म 7 जनवरी 1947 को हुआ. वह महाराष्ट्र में बड़ी हुईं और सारस्वत ब्राह्मण परिवार में पलीं. शोभा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा क्वीन मैरी स्कूल, मुंबई से पूरी की और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मुंबई से मनोविज्ञान में डिग्री प्राप्त की. उनकी पहली करियर पसंद मॉडलिंग थी जिसे उन्होंने कुछ समय तक चुना. लेकिन 1970 में उन्होंने पत्रकारिता में अपना करियर बदला. शोभा ने स्टारडस्ट, सेलिब्रिटी एंड सोसाइटी जैसे प्रसिद्ध पत्रिकाओं के लिए स्तंभ लिखे.टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए उनके कॉलम ने बड़ी प्रशंसा अर्जित की. अपने कॉलम में, वह सामाजिक, आर्थिक से राजनीतिक गतिशीलता से लेकर कई मुद्दों पर टिप्पणी (Women Authors Poets) करती.

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शोभा डे

अरुंधति रॉय : अरुंधति रॉय का जन्म शिलॉन्ग में 24 नवम्बर 1961 को केरल में हुआ था. अरुंधति ने लेखन से पहले अभिनय की दुनिया में भी कदम रखा. उन्होंनें मैसी साहब नाम की फिल्म में लीड रोल प्ले किया. उन्होंने 1989 में द एनी गिव्स इट देस ओन्स के लिए स्क्रीनप्ले लिखा. इसके बाद अरुंधति ने कई फिल्मों के लिए भी लिखा. साल 1988 में अरुंधति रॉय को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला. साल 1994 में उन्होंने शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन की आलोचना की, जो फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी. अरुंधति रॉय ने शेखर कपूर पर फूलन देवी के जीवन और उसके अर्थ दोनों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया.अरुंधति रॉय को 1989 में बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. 2015 में, उसने धार्मिक असहिष्णुता और भारत में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा बढ़ती हिंसा के विरोध में राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिया. 2003 में, उन्हें सैन फ्रांसिस्को में ग्लोबल एक्सचेंज ह्यूमन राइट्स अवार्ड्स में वुमन ऑफ पीस के रूप में “विशेष मान्यता“ से सम्मानित किया गया. रॉय को सामाजिक अभियानों में उनके काम और अहिंसा की वकालत के लिए मई 2004 में सिडनी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. साल 2004 में ही उन्हें नेशनल कांउसिल ऑफ टीचर ऑफ इंग्लिश द्वारा ऑरवेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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अरुंधति रॉय

महादेवी वर्मा : महादेवी छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री मानी जाती हैं. आधुनिक हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा मीराबाई के नाम से प्रसिद्ध हुईं. आधुनिक गीत काव्य में महादेवी वर्मा जी का स्थान सर्वोपरि रहा तथा उन्होंने एक गद्य लेखिका के रूप में भी अपनी ख्याति प्राप्त की.महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च सन 1907 में होली वाले दिन फ़ररुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश के एक साहू परिवार में हुआ था.आधुनिक हिंदी साहित्य कविता में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाना और सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मलेन में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाली वो पहली महिला थी. 1933 ई. में संस्कृत से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद इन्होने अपने काव्य जगत की शुरुआत की. कालेज के समय में इनकी मित्रता सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई. जब 1933 ई. में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए पास किया था. तभी इनकी दो कवितायें भी प्रकाशित हो चुकी थीं- नीहार और रश्मि .

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महादेवी वर्मा

इस्मत चुगताई : इस्मत का जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूं में 21 अगस्त 1915 को हुआ. उन्हें ‘इस्मत आपा’ के नाम से भी जाना जाता (azadi ka amrit mahotsav) है. वे उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और सर्वप्रमुख लेखिका थीं, जिन्होंने महिलाओं के सवालों को नए सिरे से उठाया.उनकी ही रचनाएँ हैं; कहानी संग्रह: चोटें, छुईमुई, एक बात, कलियाँ, एक रात, दो हाथ दोज़खी, शैतान; उपन्यास: टेढी लकीर, जिद्दी, एक कतरा ए खून, दिल की दुनिया, मासूमा, बहरूप नगर, सैदाई, जंगली कबूतर, अजीब आदमी, बांदी; आत्मकथा: 'कागजी हैं पैराहन'. उन्होंने अनेक चलचित्रों की पटकथा लिखी और जुगनू में अभिनय भी किया. उनकी पहली फिल्म "छेड़-छाड़" 1943 में आई थी. वे कुल 13 फिल्मों से जुड़ी रहीं. उनकी आखिरी फ़िल्म "गर्म हवा" (1973) को कई पुरस्कार मिले.

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इस्मत चुगताई

अमृता प्रीतम : अविभाजित भारत में पंजाब प्रांत के गुजरांवाला ( पाकिस्तान ) में 31 अगस्त, 1919 को जन्मी, वह विभाजन के बाद भारत आ गईं. इसी समय के आसपास उन्होंने हिंदी में भी लिखना शुरू किया.वह 1936 में एक प्रकाशित लेखिका बन गईं जब वह मुश्किल से 17 वर्ष की थीं. वह अपने साहित्यिक कार्यों के माध्यम से लोगों को प्रेरित करने के लिए प्रगतिशील लेखक आंदोलन में शामिल हुईं.अमृता प्रीतम को उनकी पंजाबी कविता अज्ज आखान वारिस शाह नु (ओड टू वारिस शाह) के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है, जो 1947 में विभाजन के दौरान हुए नरसंहारों पर उनकी पीड़ा को मार्मिक रूप से दर्शाती है. उस दौर में जब लड़कियों को प्रेम करने की इजाजत नहीं थी, अमृता न केवल पूरी तरह से साहिर लुधियानवीं के प्रेम में डृबीं थीं बल्कि उनके लिए घर गृहस्थी सब छोड़ दिया. उनके इसी अंदाज के कारण वो आजाद ख्याल की लड़कियों की रोल मॉडल बनीं. इनकी रचनाओं में "रसीदी टिकट' और 'पिंजर' प्रसिद्ध थीं. पिंजर पर बाद में फिल्म भी बनाई गई. अमृता ने प्यार को आजादी कहा और जब साहिर को किसी और से प्रेम हो गया तो वो आम औरतों की तरह शिकायतें न करके चुपचाप जिंदगी को जीने लगीं. उन्होंने कभी साहिर से लौट आने के लिए मिन्नतें नहीं की बल्कि उन्हें आजाद कर दिया. उनकी लेखनी में भी उनके आजाद ख्याल दिखे. वो उस जमाने में इमरोज के साथ लिवइन में रहीं. जब लोग इसे खुलेपन पर हजारों सवाल खड़े कर देते थे. दो बच्चों के बाद भी एक तरफा प्यार के लिए गृहस्थी को छोड़कर आगे बढ़ना आसान नहीं था. न ही बिना शादी के इमरोज के साथ एक लंबा वक्त गुजराना. लेकिन दुनिया के सवालों की परवाह किए बिना अमृता ने अपनी जिंदगी को हमेशा अपनी शर्तों पर जिया और यही आजादी उनकी कलम में भी (Revolutionary Women Writers of India) दिखी.

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अमृता प्रीतम

शोभा डे: दक्षिण एशिया के विशिष्ट साहित्यिक लेखकों में से एक शोभा डे हैं. एक उपन्यासकार और स्तंभकार होने के नाते, उन्होंने दक्षिण एशियाई साहित्य में बड़ा योगदान दिया. शोभा डे का जन्म 7 जनवरी 1947 को हुआ. वह महाराष्ट्र में बड़ी हुईं और सारस्वत ब्राह्मण परिवार में पलीं. शोभा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा क्वीन मैरी स्कूल, मुंबई से पूरी की और बाद में सेंट जेवियर्स कॉलेज ऑफ मुंबई से मनोविज्ञान में डिग्री प्राप्त की. उनकी पहली करियर पसंद मॉडलिंग थी जिसे उन्होंने कुछ समय तक चुना. लेकिन 1970 में उन्होंने पत्रकारिता में अपना करियर बदला. शोभा ने स्टारडस्ट, सेलिब्रिटी एंड सोसाइटी जैसे प्रसिद्ध पत्रिकाओं के लिए स्तंभ लिखे.टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए उनके कॉलम ने बड़ी प्रशंसा अर्जित की. अपने कॉलम में, वह सामाजिक, आर्थिक से राजनीतिक गतिशीलता से लेकर कई मुद्दों पर टिप्पणी (Women Authors Poets) करती.

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शोभा डे

अरुंधति रॉय : अरुंधति रॉय का जन्म शिलॉन्ग में 24 नवम्बर 1961 को केरल में हुआ था. अरुंधति ने लेखन से पहले अभिनय की दुनिया में भी कदम रखा. उन्होंनें मैसी साहब नाम की फिल्म में लीड रोल प्ले किया. उन्होंने 1989 में द एनी गिव्स इट देस ओन्स के लिए स्क्रीनप्ले लिखा. इसके बाद अरुंधति ने कई फिल्मों के लिए भी लिखा. साल 1988 में अरुंधति रॉय को बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला. साल 1994 में उन्होंने शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन की आलोचना की, जो फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी. अरुंधति रॉय ने शेखर कपूर पर फूलन देवी के जीवन और उसके अर्थ दोनों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया.अरुंधति रॉय को 1989 में बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता. 2015 में, उसने धार्मिक असहिष्णुता और भारत में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा बढ़ती हिंसा के विरोध में राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिया. 2003 में, उन्हें सैन फ्रांसिस्को में ग्लोबल एक्सचेंज ह्यूमन राइट्स अवार्ड्स में वुमन ऑफ पीस के रूप में “विशेष मान्यता“ से सम्मानित किया गया. रॉय को सामाजिक अभियानों में उनके काम और अहिंसा की वकालत के लिए मई 2004 में सिडनी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. साल 2004 में ही उन्हें नेशनल कांउसिल ऑफ टीचर ऑफ इंग्लिश द्वारा ऑरवेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

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अरुंधति रॉय

महादेवी वर्मा : महादेवी छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री मानी जाती हैं. आधुनिक हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा मीराबाई के नाम से प्रसिद्ध हुईं. आधुनिक गीत काव्य में महादेवी वर्मा जी का स्थान सर्वोपरि रहा तथा उन्होंने एक गद्य लेखिका के रूप में भी अपनी ख्याति प्राप्त की.महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च सन 1907 में होली वाले दिन फ़ररुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश के एक साहू परिवार में हुआ था.आधुनिक हिंदी साहित्य कविता में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाना और सत्याग्रह आंदोलन के दौरान कवि सम्मलेन में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करने वाली वो पहली महिला थी. 1933 ई. में संस्कृत से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद इन्होने अपने काव्य जगत की शुरुआत की. कालेज के समय में इनकी मित्रता सुभद्रा कुमारी चौहान से हुई. जब 1933 ई. में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए पास किया था. तभी इनकी दो कवितायें भी प्रकाशित हो चुकी थीं- नीहार और रश्मि .

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महादेवी वर्मा
Last Updated : Aug 13, 2022, 11:35 AM IST
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