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मृत्यु के बाद सुहागिनों का सोलह श्रृंगार,जानिए धार्मिक मान्यता ? - सोलह श्रृंगार

Solah Sringaar Of Married Women हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार करने से पहले सुहागिन स्त्रियों का सोलह श्रृंगार किया जाता है.लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है, आज हम आपको बताएंगे.आईए जानते हैं किसी सुहागिन की मृत्यु के बाद उसे पूरी तरह से सजाकर क्यों मुखाग्नि दी जाती है.Sringaar Of Married Women After Death

Sringaar of married women after death
मृत्यु के बाद सुहागिनों का सोलह श्रृंगार
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 7, 2024, 5:38 AM IST

मृत्यु के बाद सुहागिनों का सोलह श्रृंगार

रायपुर : हिंदू धर्म में स्त्री की मौत के बाद अंतिम संस्कार से पहले उसका 16 श्रृंगार करना होता है. ऐसा माना जाता है कि माता सीता को विवाह के दौरान सजाया जा रहा था. तभी उनकी माता सुनैना ने सीता जी को सोलह श्रृंगार के महत्व के बारे में बताया था. क्योंकि विवाहिता को सुहागिन कहा जाता है.यदि सुहागिन रहते हुए स्त्री की मौत हो जाए तो अंतिम समय में भी पूरे श्रृंगार के साथ उसे अंतिम विदाई दी जाती है. सोलह श्रृंगार करने के बाद ही उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. मौत के बाद सुहागन स्त्री को सोलह श्रृंगार में क्या-क्या किया जाता है, आइये जानते हैं.



बिंदी : जिस प्रकार प्रतिदिन सूर्य देव उदय होकर धरती को प्रकाश से प्रकाशमयी बनाते है. ठीक उसी तरह से नारी भी अपनी शरारत और विवाह के बाद नए परिवार को अपनी तेज और ऊर्जा से प्रकाशित करती है.


काजल : आंखों में काजल लगाने का मतलब ही कि नारी अपनी भीतर लज्जा और शीतलता को धारण करती है. काजल बुरी नजर से बचाव भी करता है. इस बात की सीख देता है कि बड़ों के सामने नजरें झुकाकर सम्मान प्रकट करना चाहिए.



नथ : नारी का मन चंचल होता है. विवाह के बाद इसी चंचल मन को शांत करने के लिए स्त्री नथ धारण करती है. यह स्त्री को इस बात का स्मरण कराती है कि उसे अब अपने मन के अधीन नहीं होना चाहिए.


टीका: स्त्री के टीका परिवार की मान सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक है. यह इस बात का स्मरण करता है कि स्त्री को ऐसे काम से बचना चाहिए. जिससे उसके या उसके परिवार के मान सम्मान या प्रतिष्ठा पर कोई आंच ना आए.




कर्णफूल : कर्णफुल स्त्री को दूसरों से प्रसन्नता सुनने के लिए प्रेरित करते हैं. यह इस बात की सीख देता है कि यदि कभी कोई गलत बात सुन भी लिया जाए तो उसका अनुसरण नहीं करना चाहिए.



अंगूठी : 16 श्रृंगार में अंगूठी का भी विशेष महत्व है. इसे सुहागिन स्त्री इसलिए धारण करती है, क्योंकि वह अपने सुहाग के प्रति निष्ठावान रहती है साथ ही इससे उनके हृदय में पति के लिए स्नेह बना रहता है.


बिछुआ : बिछुआ स्त्री को छल कपट से दूर रहने का संकेत देता है. इसके साथ ही इससे स्त्री को मन पर काबू रखने का भी साहस मिलता है. जिससे परिवार में उसका मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बना रहे.



पायल: पायल को हिंदू धर्म में सौभाग्य प्रतीक माना जाता है. इसकी मधुर आवाज से घर की समृद्धि बढ़ती है. पायल इस बात की भी सीख देता है कि एक स्त्री का स्थान केवल पति के चरणों में होता है. ठीक उसी तरह जिस तरह लक्ष्मी जी का स्थान भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों में होता है.



कंगन : हाथों का कंगन इस बात का संकेत देता है, कि स्त्री को कठोर और कड़वे वचनों से दूर रहना चाहिए. उसे ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो सुनने वालों को बुरा लगे.



बाजूबंद : बाजूबंद बताता है कि परिवार की धन संपत्ति की रक्षा करना स्त्री का दायित्व होता है. इसलिए स्त्री को पति से ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए जिसे वह पूरा न कर सके. इसलिए स्त्री को अपनी इच्छाओं पर बाजूबंद की तरह काबू रखना चाहिए.


कमरबंद : कमरबंद धारण करने के बाद स्त्री अपने पति के घर की स्वामिनी कहलाती है. इसलिए उसे बहुत ही सजगता और सावधानी के साथ इस जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए.


गजरा : गजरा का काम सुगंध फैलाना होता है ठीक इसी तरह से स्त्री भी गजरा धारण कर पूरे घर परिवार में सुगंध फैलाती है जिससे सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है.



हार : स्त्री के गले में हार पहनना इस बात का प्रतीक माना जाता है कि उसे अपने पति से हर हार को स्वीकार करना चाहिए. क्योंकि यह उसका कर्तव्य है कि वह किसी भी हाल में अपने पति को हार की स्थिति में ना देखें क्योंकि पति की जीत ही पत्नी की भी जीत होती है.



मेहंदी : मेहंदी को स्नेह और प्रेम का प्रतीक माना जाता है. मेहंदी का लाल रंग इस बात का संकेत है कि स्त्री से परिवार में स्नेह और प्रेम की लालिमा सदैव बनी रहती है.




सिंदूर : 16 श्रृंगार में सिंदूर का सबसे अधिक महत्व है, जो स्त्री के सुहागिन होने का प्रतीक है. विवाह के बाद स्त्री को हमेशा सिंदूर से अपनी मांग सजानी चाहिए.



मंगलसूत्र : स्त्री के मंगलसूत्र धारण करने से पति के प्रति अविश्वास पैदा नहीं होता जो कि इस बात का प्रतीक है कि दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा.

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मृत्यु के बाद सुहागिनों का सोलह श्रृंगार

रायपुर : हिंदू धर्म में स्त्री की मौत के बाद अंतिम संस्कार से पहले उसका 16 श्रृंगार करना होता है. ऐसा माना जाता है कि माता सीता को विवाह के दौरान सजाया जा रहा था. तभी उनकी माता सुनैना ने सीता जी को सोलह श्रृंगार के महत्व के बारे में बताया था. क्योंकि विवाहिता को सुहागिन कहा जाता है.यदि सुहागिन रहते हुए स्त्री की मौत हो जाए तो अंतिम समय में भी पूरे श्रृंगार के साथ उसे अंतिम विदाई दी जाती है. सोलह श्रृंगार करने के बाद ही उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. मौत के बाद सुहागन स्त्री को सोलह श्रृंगार में क्या-क्या किया जाता है, आइये जानते हैं.



बिंदी : जिस प्रकार प्रतिदिन सूर्य देव उदय होकर धरती को प्रकाश से प्रकाशमयी बनाते है. ठीक उसी तरह से नारी भी अपनी शरारत और विवाह के बाद नए परिवार को अपनी तेज और ऊर्जा से प्रकाशित करती है.


काजल : आंखों में काजल लगाने का मतलब ही कि नारी अपनी भीतर लज्जा और शीतलता को धारण करती है. काजल बुरी नजर से बचाव भी करता है. इस बात की सीख देता है कि बड़ों के सामने नजरें झुकाकर सम्मान प्रकट करना चाहिए.



नथ : नारी का मन चंचल होता है. विवाह के बाद इसी चंचल मन को शांत करने के लिए स्त्री नथ धारण करती है. यह स्त्री को इस बात का स्मरण कराती है कि उसे अब अपने मन के अधीन नहीं होना चाहिए.


टीका: स्त्री के टीका परिवार की मान सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक है. यह इस बात का स्मरण करता है कि स्त्री को ऐसे काम से बचना चाहिए. जिससे उसके या उसके परिवार के मान सम्मान या प्रतिष्ठा पर कोई आंच ना आए.




कर्णफूल : कर्णफुल स्त्री को दूसरों से प्रसन्नता सुनने के लिए प्रेरित करते हैं. यह इस बात की सीख देता है कि यदि कभी कोई गलत बात सुन भी लिया जाए तो उसका अनुसरण नहीं करना चाहिए.



अंगूठी : 16 श्रृंगार में अंगूठी का भी विशेष महत्व है. इसे सुहागिन स्त्री इसलिए धारण करती है, क्योंकि वह अपने सुहाग के प्रति निष्ठावान रहती है साथ ही इससे उनके हृदय में पति के लिए स्नेह बना रहता है.


बिछुआ : बिछुआ स्त्री को छल कपट से दूर रहने का संकेत देता है. इसके साथ ही इससे स्त्री को मन पर काबू रखने का भी साहस मिलता है. जिससे परिवार में उसका मान-सम्मान और प्रतिष्ठा बना रहे.



पायल: पायल को हिंदू धर्म में सौभाग्य प्रतीक माना जाता है. इसकी मधुर आवाज से घर की समृद्धि बढ़ती है. पायल इस बात की भी सीख देता है कि एक स्त्री का स्थान केवल पति के चरणों में होता है. ठीक उसी तरह जिस तरह लक्ष्मी जी का स्थान भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों में होता है.



कंगन : हाथों का कंगन इस बात का संकेत देता है, कि स्त्री को कठोर और कड़वे वचनों से दूर रहना चाहिए. उसे ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो सुनने वालों को बुरा लगे.



बाजूबंद : बाजूबंद बताता है कि परिवार की धन संपत्ति की रक्षा करना स्त्री का दायित्व होता है. इसलिए स्त्री को पति से ऐसी मांग नहीं करनी चाहिए जिसे वह पूरा न कर सके. इसलिए स्त्री को अपनी इच्छाओं पर बाजूबंद की तरह काबू रखना चाहिए.


कमरबंद : कमरबंद धारण करने के बाद स्त्री अपने पति के घर की स्वामिनी कहलाती है. इसलिए उसे बहुत ही सजगता और सावधानी के साथ इस जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए.


गजरा : गजरा का काम सुगंध फैलाना होता है ठीक इसी तरह से स्त्री भी गजरा धारण कर पूरे घर परिवार में सुगंध फैलाती है जिससे सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है.



हार : स्त्री के गले में हार पहनना इस बात का प्रतीक माना जाता है कि उसे अपने पति से हर हार को स्वीकार करना चाहिए. क्योंकि यह उसका कर्तव्य है कि वह किसी भी हाल में अपने पति को हार की स्थिति में ना देखें क्योंकि पति की जीत ही पत्नी की भी जीत होती है.



मेहंदी : मेहंदी को स्नेह और प्रेम का प्रतीक माना जाता है. मेहंदी का लाल रंग इस बात का संकेत है कि स्त्री से परिवार में स्नेह और प्रेम की लालिमा सदैव बनी रहती है.




सिंदूर : 16 श्रृंगार में सिंदूर का सबसे अधिक महत्व है, जो स्त्री के सुहागिन होने का प्रतीक है. विवाह के बाद स्त्री को हमेशा सिंदूर से अपनी मांग सजानी चाहिए.



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