जशपुर: मिट्टी में जान डाल उन्हें जीवंत करने वाले मूर्तिकला के कलाकारों की जिंदगी बेजान सी हो गयी है. कोलकता से गणेश और दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले इन कलाकारों को अब
अपनी रोजी रोटी की चिंता सताने लगी है, तभी ये अपना रोजगार बदलना चाह रहे है. बेजान मिट्टी में अपने हाथों की कला से जान डालने वाले मूर्तिकारों को बाजार में मंदी के वजह से दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी करनी पड़ रही है.
कलकत्ता से अपने परिवार का पेट पालने के लिए आते है छत्तीसगढ़
ये मूर्तिकार कोलकता से अपने परिवार को छोड़ 3 से 4 महीनों के लिए छत्तीसगढ़ आते हैं और यहां वो दूसरों से उधार लेकर मूर्तियां बनाते हैं. ये पहले गणेश, फिर विश्वकर्मा और आखिरी में दुर्गा की मूर्ति बनाकर कमाई करते हैं, ताकि परिवार का पेट पालने के लिए रुपये कमा सकें. इस साल बाजार में आई मंदी के कारण कारोबार ठंडा है और इस वजह से इन्हें यह डर सता रहा है कि, अगर उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं हुई तो घर कैसे चलाएंगे. बता दें ये कलाकार पिछले 20 सालों से जहां कमाने के लिए आ रहे हैं.
वक्त के साथ आधुनिकता की चमक हावी
आधुनिकता की चकाचौंध में कला की चमक धुमिल होती जा रही है. मूर्तियों की कम होती पूछ परख से अब इन्हें अपनी आजीविका की चिंता सताने लगी है. यहां तक की अब ये लोग अपने रोजगार जो सिलसिला पूर्वजों से चला आ रहा है उसे बदलना चाहते है. दूसरे क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में भी आई आधुनिकता कला को धीरे-धीरे खत्म कर रही है. अब जरुरत है तो इन कलाकारों को प्रोत्साहन देने की ताकि ये कलाकार अपनी कला से इन मूर्तियों में तो जान डाले ही साथ ही इनकी जिंदगी भी रंगीन हो सके.