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रोजी पर मंदी की मार, मूर्तिकार कर रहे रोजगार बदलने पर विचार

देश में हावी आधुनिकीकरण से इन मूर्तिकारों के घर का लालन पालन हो रहा मुश्किल

रोजी पर मंदी की मार
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Published : Sep 1, 2019, 3:10 PM IST

Updated : Sep 1, 2019, 6:58 PM IST

जशपुर: मिट्टी में जान डाल उन्हें जीवंत करने वाले मूर्तिकला के कलाकारों की जिंदगी बेजान सी हो गयी है. कोलकता से गणेश और दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले इन कलाकारों को अब
अपनी रोजी रोटी की चिंता सताने लगी है, तभी ये अपना रोजगार बदलना चाह रहे है. बेजान मिट्टी में अपने हाथों की कला से जान डालने वाले मूर्तिकारों को बाजार में मंदी के वजह से दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी करनी पड़ रही है.

रोजी पर मंदी की मार, मूर्तिकार कर रहे रोजगार बदलने पर विचार

कलकत्ता से अपने परिवार का पेट पालने के लिए आते है छत्तीसगढ़

ये मूर्तिकार कोलकता से अपने परिवार को छोड़ 3 से 4 महीनों के लिए छत्तीसगढ़ आते हैं और यहां वो दूसरों से उधार लेकर मूर्तियां बनाते हैं. ये पहले गणेश, फिर विश्वकर्मा और आखिरी में दुर्गा की मूर्ति बनाकर कमाई करते हैं, ताकि परिवार का पेट पालने के लिए रुपये कमा सकें. इस साल बाजार में आई मंदी के कारण कारोबार ठंडा है और इस वजह से इन्हें यह डर सता रहा है कि, अगर उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं हुई तो घर कैसे चलाएंगे. बता दें ये कलाकार पिछले 20 सालों से जहां कमाने के लिए आ रहे हैं.

वक्त के साथ आधुनिकता की चमक हावी

आधुनिकता की चकाचौंध में कला की चमक धुमिल होती जा रही है. मूर्तियों की कम होती पूछ परख से अब इन्हें अपनी आजीविका की चिंता सताने लगी है. यहां तक की अब ये लोग अपने रोजगार जो सिलसिला पूर्वजों से चला आ रहा है उसे बदलना चाहते है. दूसरे क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में भी आई आधुनिकता कला को धीरे-धीरे खत्म कर रही है. अब जरुरत है तो इन कलाकारों को प्रोत्साहन देने की ताकि ये कलाकार अपनी कला से इन मूर्तियों में तो जान डाले ही साथ ही इनकी जिंदगी भी रंगीन हो सके.

जशपुर: मिट्टी में जान डाल उन्हें जीवंत करने वाले मूर्तिकला के कलाकारों की जिंदगी बेजान सी हो गयी है. कोलकता से गणेश और दुर्गा की प्रतिमा बनाने वाले इन कलाकारों को अब
अपनी रोजी रोटी की चिंता सताने लगी है, तभी ये अपना रोजगार बदलना चाह रहे है. बेजान मिट्टी में अपने हाथों की कला से जान डालने वाले मूर्तिकारों को बाजार में मंदी के वजह से दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी करनी पड़ रही है.

रोजी पर मंदी की मार, मूर्तिकार कर रहे रोजगार बदलने पर विचार

कलकत्ता से अपने परिवार का पेट पालने के लिए आते है छत्तीसगढ़

ये मूर्तिकार कोलकता से अपने परिवार को छोड़ 3 से 4 महीनों के लिए छत्तीसगढ़ आते हैं और यहां वो दूसरों से उधार लेकर मूर्तियां बनाते हैं. ये पहले गणेश, फिर विश्वकर्मा और आखिरी में दुर्गा की मूर्ति बनाकर कमाई करते हैं, ताकि परिवार का पेट पालने के लिए रुपये कमा सकें. इस साल बाजार में आई मंदी के कारण कारोबार ठंडा है और इस वजह से इन्हें यह डर सता रहा है कि, अगर उम्मीद के मुताबिक कमाई नहीं हुई तो घर कैसे चलाएंगे. बता दें ये कलाकार पिछले 20 सालों से जहां कमाने के लिए आ रहे हैं.

वक्त के साथ आधुनिकता की चमक हावी

आधुनिकता की चकाचौंध में कला की चमक धुमिल होती जा रही है. मूर्तियों की कम होती पूछ परख से अब इन्हें अपनी आजीविका की चिंता सताने लगी है. यहां तक की अब ये लोग अपने रोजगार जो सिलसिला पूर्वजों से चला आ रहा है उसे बदलना चाहते है. दूसरे क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में भी आई आधुनिकता कला को धीरे-धीरे खत्म कर रही है. अब जरुरत है तो इन कलाकारों को प्रोत्साहन देने की ताकि ये कलाकार अपनी कला से इन मूर्तियों में तो जान डाले ही साथ ही इनकी जिंदगी भी रंगीन हो सके.

Intro:एंकर... मिट्टी मे जान डाल उन्हें जीवंत करने वाले मूर्तिकला के कलाकारों की जिंदगी बेजान होने लगी है।कलकत्ता से गणेश व दुर्गा की प्रतिमा बनाने वालो इन कलाकारों को अब इनकी रोजी रोटी की चिंता सताने लगी है , तभी तो ये अपना रोजगार बदलना चाहते है।Body:

व्हीओ 1 बेजान मिट्टी मे अपनी हाथों की कला से जान डाल इन्हें मूर्ति का रुप देते ये कलाकार इन दिनों गणेश व दुर्गा सहित अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा बनाने मे मशगूल है। कलकत्ता से छत्तीसगढ़ आए ये कलाकार 3 से 4 महीने अपने परिवार से दूर रह रोजी रोटी की तलाश मे रहते है। ये कलाकार 20 वर्षो से छ.ग आ रोजी रोटी चला रहे है। कलकत्ता मे ज्यादा मूर्तिकार होने के कारण इन्हें अन्य राज्यों का रुख करना पडता है।

बाईट 1 कलपना (कलाकार महिला)

व्हीओ 2 मगर अब वक्त के साथ साथ इनके कला मे भी आधुनिकता की चमक हावी होती जा रही है। इनकी कम होती पुछ परख से अब इन्हें अपनी आजीविका की चिंता सताने लगी है। यहां तक की अब ये अपने रोजगार जो कि इनके पूर्वजों से चला आ रहा है को भी बदलना चाहते है।

बाईट 2. पोआस पाल (कलाकार)Conclusion:आधुनिकता की चकाचौंध मे कला की चमक धुमिल होती जा रही है। हर क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र मे भी आधुनिकता ने कला को अपने काल मे समा लिया है। अब जरुरत है तो इन कलाकारों को प्रोत्साहन देने की ताकि ये कलाकार अपनी कला से इन मूर्तियों मे तो जान डाले ही साथ ही इनकी जिंदगी भी रंगीन हो सके।
Last Updated : Sep 1, 2019, 6:58 PM IST
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