रायपुर: रानी अवंतीबाई जिला मंडला रामगढ़ की रानी थी, जो जबलपुर कमिश्नरी के अंतर्गत था. रामगढ़ रियासत के संस्थापक गोंड साम्राज्य के वीर सेनापति मोहन सिंह लोधी थे. 1817 से 1851 तक रामगढ़ राज्य के शासक लक्ष्मण सिंह थे.उनके निधन के बाद विक्रमादित्य सिंह ने राजगद्दी संभाली थी. उनका विवाह बाल्यावस्था में ही मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की कन्या अवंती बाई से हुआ. विक्रमादित्य बचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे. राज्य संचालन का काम उनकी पत्नी रानी अवंतीबाई ही किया करती थीं.
तलवारबाजी और घुड़सवारी में थीं अभ्यस्थ :रानी अवंती बाई बचपन से ही तलवारबाजी व घुड़सवारी में अभ्यस्थ थीं. ये बचपन से ही साहसी थी. रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य सिंह को विक्षिप्त और अमान सिंह और शेर सिंह को नाबालिग घोषित कर रामगढ़ राज्य को हड़पने की दृष्टि से अंग्रेज शासकों ने कोर्ट ऑफ वार्ड्स की कार्यवाही की. रानी ने राज्य के लोगों को अंग्रेजों के निर्देश न मानने का आदेश दिया. अंग्रेजों को ये बात अच्छी नहीं लगी. रानी का अंग्रेजों के खिलाफ लंबे समय तक युद्ध चलता रहा. रानी ने छह युद्ध लड़े, जिसमें 1858 में रामगढ़ के किले का घेराव अंग्रेज वॉडिंग्टन ने किया. कई बार झड़प हुई. अतं में 20 मार्च साल 1858 को रानी पराजित हुईं और अपने ही कटार से आत्म बलिदान दे दिया.
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देश की आजादी में था बड़ा योगदान: रानी अवंती बाई स्वाधीनता संग्राम में शहीद होने वाली पहली महिला वीरांगना थीं. साल 1857 की क्रांति में रामगढ़ की महारानी अवंती बाई रेवांचल के मुक्त आंदोलन की सूत्रधार थीं. अवंती बाई ने अंग्रेजों से युद्ध किया जिसका देश की आजादी में बहुत बड़ा योगदान है.
नहीं मिला उतना सम्मान: वीरांगना रानी अवंतीबाई को जितना सम्मान मिलना चाहिए था, उतना उन्हें वास्तव में मिला ही नहीं. वीरांगना के अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष और बलिदान से संबंधित ऐतिहासिक जानकारी समकालीन सरकारी पत्राचार, कागजातों व जिला गजेटियरों में बिखरी पड़ी है.