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Rajim Bhaktin Mata jayanti 2023: कौन हैं राजिम भक्तिन माता, क्या है राजिम का महत्व, जानिए

छत्तीसगढ़ का राजिम संगम नगरी के नाम से प्रसिद्ध है. Rajim Bhaktin Mata jayanti 2023 रायपुर जिले में राजिम क्षेत्र महानदी के तट पर स्थित है. यहां 'राजिम' या 'राजीवलोचन' भगवान रामचंद्र का प्राचीन मंदिर है. importance of Rajim in chhattisgarh राजिम का प्राचीन नाम पद्मक्षेत्र था. पद्मपुराण के पातालखण्ड अनुसार भगवान राम का इस स्थान से संबंध बताया गया है. इसलिए राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला पूरे भारत में प्रसिद्ध है.

Rajim Bhaktin Mata jayanti 2023
राजिम भक्तिन माता जयंती 2023
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Published : Jan 6, 2023, 11:35 PM IST

रायपुर/हैदराबाद: राजिम में महानदी और पैरी नामक नदियों का संगम है. संगम स्थल पर 'कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है. Rajim Bhaktin Mata jayanti 2023 इस मंदिर का संबंध राजिम की भक्तिन माता से है. छत्तीसगढ़ के राजिम क्षेत्र राजिम माता के त्याग की कथा प्रचलित है. importance of Rajim in chhattisgarh भगवान कुलेश्वर महादेव का आशीर्वाद इस क्षेत्र को प्राप्त है. इसी कारण राजिम भक्तिन माता जयंती 7 जनवरी को राजिम भक्तिन माता की याद में मनाई जाती है. छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर माता की पूजा करते हैं.

कलचुरी राजा जगपाल देव के शिलालेख में माता का उल्लेख: राजिवलोचन मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार कलचुरी राजा जगपाल देव के शिलालेख में माता का उल्लेख मिलता है. 3 जनवरी 1145 को शिलालेख लगाया गया था. कहते हैं कि यहां साहू समाज के लोग एकत्र होते हैं. एक स्थानीय दंतकथा में बताया गया है कि इस स्थान का नाम 'राजीव' या 'राजिम' नामक एक तैलिक स्त्री के नाम से हुआ था. कुलेश्वर मंदिर के भीतर 'सतीचैरा' है, जिसका संबंध इसी स्त्री से हो सकता है. यहां भगवान रामचंद्र और कुलेश्वर महादेव के मंदिर के अलावा जगन्नाथ मन्दिर, भक्तमाता राजिम मन्दिर और सोमेश्वर महादेव मन्दिर भी है.

यह भी पढ़ें: Makar Sankranti 2023: 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाना रहेगा शुभ, जानिए क्या करें दान

इस स्थान का नाम राजिम तेलिन क्यों पड़ा: इस स्थान का नाम राजिम तेलिन के नाम पर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां के तैलिय वंश लोग तिलहन की खेती करते थे. इन्हीं तैलिन लोगों में एक धर्मदास भी था, जिसकी पत्नी का नाम शांतिदेवी था. दोनों विष्णु के भक्त थे और उनकी बेटी का नाम राजिम था. राजिम का विवाह अमरदास नामक व्यक्ति से हुआ. राजिम भी विष्णु की भक्त थी, जो मूर्ति विहीन राजीवलोचन मंदिर में जाकर पूजा करती थी. राजिम की भक्ति, त्याग और तपस्या के चलते ही वे पूरे क्षेत्र में माता की तरह प्रसिद्ध हो गई. भगवान के प्रति अपार सेवाभाव रखने और पुण्य प्रताप के कारण ही आज पूरे देश में राजिम भक्तिन माता (Rajim Bhaktin Mata) की अलग पहचान है.

राजिम का मेला : राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है. छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु इस मेले में जुटते हैं. माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है. इसे राजिम कुंभ मेला भी कहते हैं. महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है. हालांकि अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेला भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राजिम मेले की भव्य आयोजन किया जाता है.

रायपुर/हैदराबाद: राजिम में महानदी और पैरी नामक नदियों का संगम है. संगम स्थल पर 'कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है. Rajim Bhaktin Mata jayanti 2023 इस मंदिर का संबंध राजिम की भक्तिन माता से है. छत्तीसगढ़ के राजिम क्षेत्र राजिम माता के त्याग की कथा प्रचलित है. importance of Rajim in chhattisgarh भगवान कुलेश्वर महादेव का आशीर्वाद इस क्षेत्र को प्राप्त है. इसी कारण राजिम भक्तिन माता जयंती 7 जनवरी को राजिम भक्तिन माता की याद में मनाई जाती है. छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु यहां एकत्र होकर माता की पूजा करते हैं.

कलचुरी राजा जगपाल देव के शिलालेख में माता का उल्लेख: राजिवलोचन मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार कलचुरी राजा जगपाल देव के शिलालेख में माता का उल्लेख मिलता है. 3 जनवरी 1145 को शिलालेख लगाया गया था. कहते हैं कि यहां साहू समाज के लोग एकत्र होते हैं. एक स्थानीय दंतकथा में बताया गया है कि इस स्थान का नाम 'राजीव' या 'राजिम' नामक एक तैलिक स्त्री के नाम से हुआ था. कुलेश्वर मंदिर के भीतर 'सतीचैरा' है, जिसका संबंध इसी स्त्री से हो सकता है. यहां भगवान रामचंद्र और कुलेश्वर महादेव के मंदिर के अलावा जगन्नाथ मन्दिर, भक्तमाता राजिम मन्दिर और सोमेश्वर महादेव मन्दिर भी है.

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इस स्थान का नाम राजिम तेलिन क्यों पड़ा: इस स्थान का नाम राजिम तेलिन के नाम पर इसलिए पड़ा क्योंकि यहां के तैलिय वंश लोग तिलहन की खेती करते थे. इन्हीं तैलिन लोगों में एक धर्मदास भी था, जिसकी पत्नी का नाम शांतिदेवी था. दोनों विष्णु के भक्त थे और उनकी बेटी का नाम राजिम था. राजिम का विवाह अमरदास नामक व्यक्ति से हुआ. राजिम भी विष्णु की भक्त थी, जो मूर्ति विहीन राजीवलोचन मंदिर में जाकर पूजा करती थी. राजिम की भक्ति, त्याग और तपस्या के चलते ही वे पूरे क्षेत्र में माता की तरह प्रसिद्ध हो गई. भगवान के प्रति अपार सेवाभाव रखने और पुण्य प्रताप के कारण ही आज पूरे देश में राजिम भक्तिन माता (Rajim Bhaktin Mata) की अलग पहचान है.

राजिम का मेला : राजिम का माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है. छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु इस मेले में जुटते हैं. माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक पंद्रह दिनों का मेला लगता है. इसे राजिम कुंभ मेला भी कहते हैं. महानदी, पैरी और सोढुर नदी के तट पर लगने वाले इस मेले में मुख्य आकर्षण का केंद्र संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है. हालांकि अब इस मेले को राजिम माघी पुन्नी मेला भी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राजिम मेले की भव्य आयोजन किया जाता है.

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