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'किसानों को नहीं कॉरपोरेट कंपनियों को मिलेगा कृषि सुधार अधिनियम का फायदा'

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Published : Jun 9, 2020, 11:05 PM IST

Updated : Jun 9, 2020, 11:11 PM IST

अखिल भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा है कि कृषि सुधार अधिनियम का फायदा किसानों को नहीं बल्कि कॉरपोरेट कंपनियों को मिलने वाला है.

Dr. Rajaram Tripathi
डॉ. राजाराम त्रिपाठी

रायपुर: कोविड-19 महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. जिससे उबरने सरकार लगातार फैसले ले रही है. कुछ फैसले निश्चित तौर पर स्वागत योग्य हैं तो कुछ फैसले बिल्कुल व्यवहारिक नहीं है. हाल ही में तीन जून को केंद्र सरकार ने कृषि सुधार के नाम पर तीन अध्यादेश पारित किए और इसे तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया. अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि आईफा किसानों की बेहतरी के लिए उठाए गए हर कदम का सकारात्मक रूप से स्वागत करती है लेकिन ये तीनों अध्यादेश एक प्रकार से किसानों के हितों के खिलाफ है.

डॉ. राजाराम त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ

उन्होंने कहा कि इससे कृषि और खाद्यान्न बाजार पर कॉरपोरेट का एकाधिकार हो जाएगा. किसानों की भलाई के नाम पर कृषि में उपयोग में आने वाली 27 रासायनिक दवाइयों पर प्रतिबंधित लगाने और विद्युत सुधार अधिनियम 2020 भी लागू हो रहे हैं. महत्वपूर्ण बात है कि किसी अपरिहार्य परिस्थिति में ही अध्यादेश लाए जाने की परंपरा रही है. इन दूरगामी सुधारों का दावा करने वाले सुधार अधिनियमों को किसान संगठनों से बिना कोई राय मशवरा किये आपाधापी में पारित किया गया है.

'किसानों के हित में नहीं फैसला'

त्रिपाठी ने कहा कि अगर तीनों अध्यादेशों के प्रावधानों पर नजर दौड़ाएं तो कई ऐसी चीजें हैं, जो किसानों के हित में नहीं हैं. फिर यह कृषि में सुधार करने वाला अध्यादेश कैसे हो सकता है. इन्हीं में से एक मुद्दा है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का, आइफा ने पहले भी सरकार को सुझाव दिया था कि हमें यह मान्यता नहीं भूलना चाहिए कि अनुबंध कैसे भी हों पर अंततः वे सशक्त पक्ष के हितों की ही रक्षा करते हैं और इधर हमारे किसान हों या किसान समूह, हर लिहाज से ये अभी भी बहुत कमजोर हैं. अनुबंध खेती में इनके हितों की तात्कालिक और दीर्घकालिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाना पहली शर्त होनी चाहिए थी.

'अधिनियमों का असली फायदा कॉरपोरेट वाले उठा पाएंगे'

त्रिपाठी ने कहा कि आवश्यक वस्तु भंडारण अधिनियम सुधार के बारे में विचार करना चाहिए. देश के किसानों को भला इससे क्या लाभ मिलने वाला है. किसान का उत्पादन जैसे ही तैयार होता है, किसान उसे जल्द से जल्द मंडी में ले जाकर बेच कर अपने पैसे खड़े करना चाहते हैं, ताकि वह अपनी पिछले सीजन की खाद, बीज, दवाई की दुकानदारों की उधारी और बैंकों का कर्ज चुका सके और बचे खुचे पैसे से घर परिवार के आवश्यक खर्चे, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि को पूरा कर सके. हमारे किसान अपनी अनाज भंडारण करे अच्छा बाजार भाव आने का इंतजार में करने के लिए समर्थ नहीं हैं, तो निसंदेह इस अधिनियम का फायदा देश के बड़े व्यापारी और कॉरपोरेट कंपनियों को ही मिल पाएगा.

रायपुर: कोविड-19 महामारी की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ा है. जिससे उबरने सरकार लगातार फैसले ले रही है. कुछ फैसले निश्चित तौर पर स्वागत योग्य हैं तो कुछ फैसले बिल्कुल व्यवहारिक नहीं है. हाल ही में तीन जून को केंद्र सरकार ने कृषि सुधार के नाम पर तीन अध्यादेश पारित किए और इसे तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया. अखिल भारतीय किसान महासंघ (आइफा) के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि आईफा किसानों की बेहतरी के लिए उठाए गए हर कदम का सकारात्मक रूप से स्वागत करती है लेकिन ये तीनों अध्यादेश एक प्रकार से किसानों के हितों के खिलाफ है.

डॉ. राजाराम त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ

उन्होंने कहा कि इससे कृषि और खाद्यान्न बाजार पर कॉरपोरेट का एकाधिकार हो जाएगा. किसानों की भलाई के नाम पर कृषि में उपयोग में आने वाली 27 रासायनिक दवाइयों पर प्रतिबंधित लगाने और विद्युत सुधार अधिनियम 2020 भी लागू हो रहे हैं. महत्वपूर्ण बात है कि किसी अपरिहार्य परिस्थिति में ही अध्यादेश लाए जाने की परंपरा रही है. इन दूरगामी सुधारों का दावा करने वाले सुधार अधिनियमों को किसान संगठनों से बिना कोई राय मशवरा किये आपाधापी में पारित किया गया है.

'किसानों के हित में नहीं फैसला'

त्रिपाठी ने कहा कि अगर तीनों अध्यादेशों के प्रावधानों पर नजर दौड़ाएं तो कई ऐसी चीजें हैं, जो किसानों के हित में नहीं हैं. फिर यह कृषि में सुधार करने वाला अध्यादेश कैसे हो सकता है. इन्हीं में से एक मुद्दा है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का, आइफा ने पहले भी सरकार को सुझाव दिया था कि हमें यह मान्यता नहीं भूलना चाहिए कि अनुबंध कैसे भी हों पर अंततः वे सशक्त पक्ष के हितों की ही रक्षा करते हैं और इधर हमारे किसान हों या किसान समूह, हर लिहाज से ये अभी भी बहुत कमजोर हैं. अनुबंध खेती में इनके हितों की तात्कालिक और दीर्घकालिक सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाना पहली शर्त होनी चाहिए थी.

'अधिनियमों का असली फायदा कॉरपोरेट वाले उठा पाएंगे'

त्रिपाठी ने कहा कि आवश्यक वस्तु भंडारण अधिनियम सुधार के बारे में विचार करना चाहिए. देश के किसानों को भला इससे क्या लाभ मिलने वाला है. किसान का उत्पादन जैसे ही तैयार होता है, किसान उसे जल्द से जल्द मंडी में ले जाकर बेच कर अपने पैसे खड़े करना चाहते हैं, ताकि वह अपनी पिछले सीजन की खाद, बीज, दवाई की दुकानदारों की उधारी और बैंकों का कर्ज चुका सके और बचे खुचे पैसे से घर परिवार के आवश्यक खर्चे, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई आदि को पूरा कर सके. हमारे किसान अपनी अनाज भंडारण करे अच्छा बाजार भाव आने का इंतजार में करने के लिए समर्थ नहीं हैं, तो निसंदेह इस अधिनियम का फायदा देश के बड़े व्यापारी और कॉरपोरेट कंपनियों को ही मिल पाएगा.

Last Updated : Jun 9, 2020, 11:11 PM IST
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