रायपुर: तुलसी का पौधा एक औषधि के रूप में प्रचलित है. लेकिन हिंदू धर्म में तुलसी सिर्फ एक पौधा ही नहीं है, बल्कि इसे देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है. वास्तु में भी तुलसी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यदि घर में तुलसी का पौधा लगा हुआ है, तो कुछ बातों को ध्यान रखना बहुत जरूरी है. तभी तुलसी का पौधा आपके लिए सौभाग्यदायक होगा.
तुलसी से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं: शास्त्रों के अनुसार, जिस घर में तुलसी का पौधा होता है और नियमित पूजा होती है, वहां पर हमेशा सुख और समृद्धि बनी रहती है. इसलिए लोग तुलसी के पौधे को अपने घरों के आंगन में सुख, समृद्धि, शांति और खुशहाली के लिए लगाते हैं. भारत के लगभग हर घर में तुलसी का पौधा देखने को मिलेगा.
तुलसी के पौधे को कब और कैसे घर में लगाएं: तुलसी के पौधे को रविवार और एकादशी के दिन छोड़कर किसी भी दिन लगाया जा सकता है. खास तौर पर गुरुवार के दिन अपने घर के उत्तर या उत्तर पूर्व और पूर्व दिशा में तुलसी लगाना शुभ माना जाता है. तुलसी के पौधे को कार्तिक मास यानी अक्टूबर और नवंबर में भी लगा सकते हैं. तुलसी के पौधे को नवरात्रि के दिनों में भी लगा सकते हैं. अप्रैल से जून माह के बीच में भी तुलसी का पौधा लगाना शुभ माना जाता है.
घर में तुलसी लगाने के फायदे:
- घर के सभी सदस्यों के देव दोष समाप्त होते हैं.
- श्री हरि की कृपा घर में बनी रहती है.
- तुलसी का पौधा नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है.
- घर की आर्थिक स्थिति मजबूत रहती है.
- घर में आने वाले विपदाओं को रोकता है.
तुलसी पौधा लगाने का सही वास्तु: पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी के अनुसार, "तुलसी को घर के नॉर्थ ईस्ट में लगाना चाहिए, क्योंकि नॉर्थ ईस्ट (उत्तर पूर्व) ईशान कोण होता है. जो देवताओं का स्थान माना जाता है. तुलसी का पौधा यदि जमीन पर लगाया जाए तो काफी अच्छा है क्योंकि नॉर्थ ईस्ट की तरफ बड़ा चौरा बनाने से दिक्कत आ सकती है. तुलसी घर को तीर्थ बना देती है. तुलसी की छाया घर में हमेशा पढ़नी चाहिए, इससे आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं.
तुलसी से जुड़ी पौराणिक कथा: शास्त्रों के अनुसार, तुलसी के पौधे में माता लक्ष्मी का वास होता है. तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को अति प्रिय है. तुलसी को हरीवल्लभा और विष्णुप्रिया भी कहा जाता है. इसीलिए धार्मिक पूजा-पाठ में श्री हरि को प्रसाद चढ़ाने के साथ तुलसी का पत्ता भी अर्पित किया जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. एक समय में जालंधर नाम का एक राक्षस था, जिसने चारों धाम में आतंक मचाया हुआ था. जालंधर की पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी. जालंधर का अंत तभी संभव था, जब उसकी पत्नी वृंदा की पत्निव्रता भंग हो जाती.
वृंदा ने श्रीहरि को दिया था श्राप: जालंधर का अंत करने के लिए स्वयं श्रीहरि विष्णु जालंधर का रूप लेकर वृंदा के पास पहुंचे. वृंदा भगवान विष्णु को ना पहचान सकी. इस तरह वृंदा की पतिव्रता भंग हो गई. जिसके बाद देवताओं ने जालंधर का वध कर दिया. जब श्रीहरि अपने वास्तविक रूप में आए, तब वृंदा को यह ज्ञात हुआ कि उसका पति जालंधर अब जीवित नहीं है. तब क्रोध में आकर श्रीहरि को वृंदा ने श्राप दिया कि आप पत्थर रूप में हो जाएं. श्राप देने के बाद वृंदा सती हो गई और उस राख से एक पौधा निकला जिसे तुलसी कहा जाने लगा. बाद में तुलसी और श्री हरी को शालिग्राम के रूप में पूजा जाने लगा.