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Raksha Bandhan 2023: भद्राकाल में नहीं बांधनी चाहिए भाइयों को राखी, इसके साये से भी रहें दूर, होता है बड़ा अशुभ ! - दैत्यों का वध

Raksha Bandhan 2023 किसी भी शुभ काम को करने के लिए बड़े बुजुर्ग ही नहीं ज्योतिष भी इसे शुभ मुहूर्त में ही करने को कहते हैं. 30 अगस्त को राखी का त्योहार देश दुनिया में मनाया जाएगा. इस शुभ मौके पर भद्रा का साया है. अगर आप भी अपने भाई को राखी बांधने जा रही हैं तो सावधान हो जाएं. भद्राकाल में हरगिज अपने भाई को राखी न बांधें, क्योंकि इसे अशुभ माना गया है.

Raksha Bandhan 2023
भद्राकाल में नहीं बांधनी चाहिए भाइयों को राखी
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 29, 2023, 5:57 PM IST

Updated : Aug 29, 2023, 6:37 PM IST

पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताए भद्राकाल के नुकसान

रायपुर: कभी भी रक्षाबंधन के पर्व पर भद्राकाल में भाइयों को राखी नहीं बांधनी चाहिए. ऐसी मान्यता है कि भद्रा शनि देव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं. भद्रा का जन्म राहुकाल में हुआ था, इसलिए भद्रा का स्वभाव उग्र और अशांत माना जाता है. जिसके प्रति भी मन में बुरा सोचती है, उसका बुरा हो जाता है. यहां तक की एक बार भद्रा ने अपने ही भाई शनिदेव का बुरा सोच था. तब शनिदेव को अपने जीवन में बहुत पीड़ा से गुजरना पड़ा. ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान शिव ने भद्रा को एक समय काल का रूप दिया. इसके बाद से यह समय एक दंड के तौर पर व्यक्ति के जीवन में आता है. इसलिए भद्रा को अशुभ और कष्टदायक माना जाता है. यही कारण है कि इस काल में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता और न ही भद्रा के साए में राखी बांधी जाती है.

जानिए कब से लेकर कब तक रहेगा भद्राकाल: ज्योतिष एवं वास्तुविद के मुताबिक पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त की सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 31 अगस्त की सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक है. पूर्णिमा तिथि लगने से पहले ही यानी 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 19 मिनट से भद्रा लग जाएगा, जो रात 9 बजकर 1 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में बहनों को अपने भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए.

दैत्यों का वध करने के लिए हुआ था जन्म: ऐसी मान्यता है कि दैत्यों का वध करने के लिए भद्रा गर्दभ (गधा) के मुख और लंबे पूछ और तीन पैर वाली पैदा हुई. भद्रा काले रंग की लंबे बालों वाली, बड़े दांत वाली और भयंकर रूप वाली कन्या थी, जिसके जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न बाधा पहुंचाने लगी और मंगल कार्यों में उपद्रव करने लगी. सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी. उसके दुष्ट स्वभाव को देखकर सूर्यदेव को अपने पुत्री के विवाह की चिंता सताने लगी. सभी ने सूर्य देव के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. तब सूर्यदेव ने ब्रह्मा जी से उचित परामर्श मांगा. ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य करें तो तुम उनमें विघ्न डालो. जो तुम्हारा आदर न करें उनका कार्य तुम बिगाड़ देना. इस प्रकार उपदेश देकर ब्रह्मा जी अपने लोक चले गए. तब से भद्रा अपने समय में ही देव, दानव, मानव और समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी.

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहन का नाम भद्रा है. भविष्य पुराण में कहा गया है कि भद्रा का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत भयानक है. इनके उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा जी ने इन्हें काल करण का एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है. कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने ही भद्रा को यह वरदान दिया है कि जो भी जातक या व्यक्ति उनके समय में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उस व्यक्ति को भद्रा अवश्य परेशान करेगी. -पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी, ज्योतिष एवं वास्तुविद

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भद्रकाल में शुरू किए काम में पहुंचती है बाधा: वर्तमान समय में ज्योतिष और घर के बड़े बुजुर्ग भद्राकाल में कोई भी शुभ कार्य करने से मना करते हैं. ऐसा भी देखा गया है कि इस काल में जो भी काम शुरू किया जाता है, वह या तो पूरा नहीं होता या बहुत देर से होता है.

पंचांग से इस तरह करें भद्रा की पहचान: किसी भी शुभ कार्य में मुहूर्त का विशेष महत्व है. मुहूर्त की गणना के लिए पंचांग का सामंजस्य होना भी अति आवश्यक है. पंचांग में तिथिवार नक्षत्र योग और करण होता है. पंचांग का पांचवा अंग करण होता है. तिथि के पहले अर्थ भाग को प्रथम करण और तिथि के दूसरे भाग को अर्ध भाग द्वितीय करण कहते हैं. इस प्रकार स्पष्ट है कि एक तिथि में दो करण होते हैं. जब भी तिथि विचार में विष्टि नामक करण आता है, तो उस काल को विशेष रूप से भद्रा कहते हैं.

पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने बताए भद्राकाल के नुकसान

रायपुर: कभी भी रक्षाबंधन के पर्व पर भद्राकाल में भाइयों को राखी नहीं बांधनी चाहिए. ऐसी मान्यता है कि भद्रा शनि देव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं. भद्रा का जन्म राहुकाल में हुआ था, इसलिए भद्रा का स्वभाव उग्र और अशांत माना जाता है. जिसके प्रति भी मन में बुरा सोचती है, उसका बुरा हो जाता है. यहां तक की एक बार भद्रा ने अपने ही भाई शनिदेव का बुरा सोच था. तब शनिदेव को अपने जीवन में बहुत पीड़ा से गुजरना पड़ा. ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान शिव ने भद्रा को एक समय काल का रूप दिया. इसके बाद से यह समय एक दंड के तौर पर व्यक्ति के जीवन में आता है. इसलिए भद्रा को अशुभ और कष्टदायक माना जाता है. यही कारण है कि इस काल में कोई भी शुभ काम नहीं किया जाता और न ही भद्रा के साए में राखी बांधी जाती है.

जानिए कब से लेकर कब तक रहेगा भद्राकाल: ज्योतिष एवं वास्तुविद के मुताबिक पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त की सुबह 10 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 31 अगस्त की सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक है. पूर्णिमा तिथि लगने से पहले ही यानी 30 अगस्त को सुबह 10 बजकर 19 मिनट से भद्रा लग जाएगा, जो रात 9 बजकर 1 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में बहनों को अपने भाई को राखी नहीं बांधनी चाहिए.

दैत्यों का वध करने के लिए हुआ था जन्म: ऐसी मान्यता है कि दैत्यों का वध करने के लिए भद्रा गर्दभ (गधा) के मुख और लंबे पूछ और तीन पैर वाली पैदा हुई. भद्रा काले रंग की लंबे बालों वाली, बड़े दांत वाली और भयंकर रूप वाली कन्या थी, जिसके जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न बाधा पहुंचाने लगी और मंगल कार्यों में उपद्रव करने लगी. सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी. उसके दुष्ट स्वभाव को देखकर सूर्यदेव को अपने पुत्री के विवाह की चिंता सताने लगी. सभी ने सूर्य देव के विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. तब सूर्यदेव ने ब्रह्मा जी से उचित परामर्श मांगा. ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य करें तो तुम उनमें विघ्न डालो. जो तुम्हारा आदर न करें उनका कार्य तुम बिगाड़ देना. इस प्रकार उपदेश देकर ब्रह्मा जी अपने लोक चले गए. तब से भद्रा अपने समय में ही देव, दानव, मानव और समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी.

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्यदेव की पुत्री और शनि देव की बहन का नाम भद्रा है. भविष्य पुराण में कहा गया है कि भद्रा का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत भयानक है. इनके उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा जी ने इन्हें काल करण का एक महत्वपूर्ण स्थान दिया है. कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने ही भद्रा को यह वरदान दिया है कि जो भी जातक या व्यक्ति उनके समय में कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य करेगा, उस व्यक्ति को भद्रा अवश्य परेशान करेगी. -पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी, ज्योतिष एवं वास्तुविद

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पंचांग से इस तरह करें भद्रा की पहचान: किसी भी शुभ कार्य में मुहूर्त का विशेष महत्व है. मुहूर्त की गणना के लिए पंचांग का सामंजस्य होना भी अति आवश्यक है. पंचांग में तिथिवार नक्षत्र योग और करण होता है. पंचांग का पांचवा अंग करण होता है. तिथि के पहले अर्थ भाग को प्रथम करण और तिथि के दूसरे भाग को अर्ध भाग द्वितीय करण कहते हैं. इस प्रकार स्पष्ट है कि एक तिथि में दो करण होते हैं. जब भी तिथि विचार में विष्टि नामक करण आता है, तो उस काल को विशेष रूप से भद्रा कहते हैं.

Last Updated : Aug 29, 2023, 6:37 PM IST
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