रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर अपने अंदर पुराना इतिहास समेटे हुए हैं. इस शहर में आधुनिकता के साथ-साथ प्राचीन कला के नमूने भी देखने को मिलते हैं.ऐसा ही प्राचीन कला का जीता जागता उदाहरण है सिद्धपीठ महामाया मंदिर. ऐसा माना जाता है कि 1400 साल पहले इस मंदिर का निर्माण हैहयवंशी राजाओं ने करवाया था.हैहयवंशी राजाओं ने राज्य में 36 किलों के निर्माण के साथ 36 महामंदिरों का निर्माण करवाया था.उन्हीं में से एक है रायपुर शहर का महामाया मंदिर
कौन है मां महामाया ? : इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि मां महामाया हैहयवंशी राजाओं की कुलदेवी हैं. हैहयवंशी राजा तंत्र साधना किया करते थे. इस मंदिर का निर्माण भी तांत्रिक सिद्धियों को पाने के लिए किया गया था. ऐतिहासिक मंदिर में साल में 2 बार नवरात्र के समय चकमक पत्थर की चिंगारी से नवरात्र की पहली ज्योति जलाई जाती है. शारदीय और चैत्र नवरात्रि में कुंवारी कन्या जिसकी उम्र 9 साल से कम होती है. उसे देवी स्वरूपा मानकर उन्हीं के हाथों ज्योति प्रज्वलित कराई जाती है.
कुंवारी कन्या करती है ज्योति प्रज्वलित : मां महामाया मंदिर ट्रस्ट के सदस्य विजय कुमार झा ने बताया कि शारदीय नवरात्र या फिर चैत्र नवरात्र के समय कुंवारी कन्या जिसकी उम्र 9 साल से कम होती है, उसे देवी स्वरूपा मानकर उनके हाथों से नवरात्र की प्रथम ज्योत प्रज्वलित कराई जाती है. इसके बाद दूसरी ज्योति कलश को प्रज्वलित किया जाता है. वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है.
''जिस तरह से बस्तर दशहरा में काछन देवी की पूजा अर्चना की जाती है, उसके बाद ही बस्तर दशहरे का आरंभ होता है. इस जोत जलाने के लिए किसी लाइटर या माचिस का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि चकमक पत्थर की चिंगारी से ज्योति प्रज्वलित किया जाता है"- विजय कुमार झा, सदस्य, मां महामाया मंदिर ट्रस्ट
महामाया मंदिर में कई देवियां हैं विराजित : ऐसा कहा जाता है कि मां के दरबार में जो भी मन्नत या मनोकामना मांगी जाती है. वह कभी खाली नहीं जाती. मां उनकी झोली जरूर भरती है. मां महामाया काली का रूप है. इसलिए इस मंदिर में काली माता, महालक्ष्मी और माता समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ होती है. समलेश्वरी और महामाया मंदिर का आधार स्तंभ को देखने से ऐसा लगता है कि खंबों में उकेरी गई कला काफी पुरातन है.
तंत्र विद्या के लिए हुआ मंदिर का निर्माण : सिद्धपीठ महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला बताते हैं कि हैहयवंशीय राजाओं के शासनकाल में निर्मित यह मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है. 1400 साल पहले इस मंदिर का निर्माण हैहयवंशीय राजाओं ने तंत्र साधना के लिए करवाया था. महामाया मंदिर का गर्भगृह और गुंबद का निर्माण श्री यंत्र के रूप में हुआ जो स्वयं में महालक्ष्मी का रूप है. वर्तमान समय में मां महालक्ष्मी, मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ की जाती है.