रायपुर: किसी भी राजनीतिक दलों के लिए नारे काफी महत्वपूर्ण होते हैं. चाहे उनकी सभाएं हो या फिर प्रदर्शन. उस दौरान नारों की अहम भूमिका होती है. रमन सरकार में चाउर वाले बाबा नारा काफी चर्चा में रहा. इस समय भूपेश है तो भरोसा है का नारा काफी चर्चा में है. इसके अलावा भूपेश बघेल को लेकर 'कका अभी जिंदा है' का नारा भी चल रहा है. जानने की कोशिश करते हैं कि चुनाव में नारों की क्या अहमियत होती है. छत्तीसगढ़ की राजनीति में कौन कौन से नारे प्रचलित रहे. उनका किस तरह का प्रभाव रहा.
जोगी आया रे नारे की थी चर्चा: छत्तीसगढ़ एक अलग प्रदेश बनने के बाद साल 2000 में कांग्रेस नेता अजीत जोगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने. जोगी के कार्यकाल में कोई खास या यादकार नारा सुनने को नहीं मिला. लेकिन बाद में जोगी आया जोगी आया जोगी आया रे का नारा गूंजने लगा. इसे कई लोगों ने रिंगटोन भी बना लिया था. यह प्रयोग जोगी ने काफी लंबे समय तक किया.
रमन सरकार के समय 'चाउर वाले बाबा' की थी धूम: साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और बीजेपी ने सरकार बनाई. रमन सिंह प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री बने. रमन सिंह ने 15 साल तक सत्ता संभाली. साल 2003 से 2018 तक सबसे लंबा कार्यकाल चलाने वाले मुख्यमंत्री बने. रमन सिंह ने प्रदेश में 2 रुपये किलो चावल गरीबों को देने की योजना शुरू की थी. इस योजना ने रमन सिंह को काफी लोकप्रिय बना दिया और रमन सिंह चाउर वाले बाबा के नाम से जाने जाने लगे. उस दौरान चाउर वाले बाबा का नारा जमकर चला.
बघेल सरकार में भूपेश है तो भरोसा है की चर्चा: साल 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार ने वापसी की. भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने. इस समय छत्तीसगढ़ राजनीति का केंद्र बना हुआ है. लगभग हर बड़े मुद्दे में केंद्र की भाजपा सरकार छत्तीसगढ़ का नाम ले रही है. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार भी इसका जवाब दे रही है. मोदी है तो मुमकिन है के नारे के जवाब में भूपेश है तो भरोसा है का नारा इजाद किया है. जो लगातार चर्चा में बना हुआ है.
राजनीति में नारों का अच्छा और बुरा प्रभाव: राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध दुबे ने बताया कि अटल जी के समय इंडिया साइन का नारा दिया गया तो उस दौरान बहुत से शहर मेट्रो की श्रेणी में भी नहीं थे. इसलिए इस नारे की वजह से अटल सरकार को बहुत नुकसान हुआ. इसके बाद एक और नारा चला था, फील गुड फैक्टर. यह नारा भी नहीं चला था. जिसका खामियाजा तत्कालीन सरकार को उठाना पड़ा. इस बात की चर्चा अटल सरकार जाने के बाद चुनावी समीक्षा की बैठक में भी की गई थी.
राजनीति में नारों का काफी प्रभाव पड़ता है. इंदिरा गांधी ने एक नारा दिया था. गरीबी हटाओ. यह नारा कांग्रेस के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हुआ. इसका कांग्रेस को जमकर लाभ भी मिला. इस नारे की वजह से इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया था. अटल जी के समय इंडिया शाइन का नारा दिया गया लेकिन गांवों के देश, भारत में इसका असर नहीं हुआ, अटल सरकार को नुकसान उठाना पड़ा- अनिरुद्ध दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
नारों से बनती और बिगड़ती है सरकार: नारों को लेकर कांग्रेस का मानना है कि नारे चुनाव में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. यह सीधे जनता के दिल और दिमाग पर असर करते हैं. जनता नारा सुनने के बाद यह तय करती है कि सरकार और उस पार्टी का विजन क्या है. भाजपा का कहना है कि छोटे छोटे नारे छोटी छोटी जगह से निकलकर गांव गांव, खेत खेत, मेड़ मेड़ से निकलकर देशभर में बहुत लोकप्रिय हो जाते हैं. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता राजीव चक्रवर्ती का कहना है कि नारे बहुत महत्वपूर्ण हैं. 2 बार अटल जी ने 2 बार नरेंद्र जी ने सरकार चलाई. चाउर वाले बाबा के नाम से हमने रमन सिंह को मशहूर किया.
छोटे-छोटे ये नारे जनता के बीच बहुत लोकप्रिय होते हैं और वह लोकप्रियता चरम पर आ जाती हैं. जिससे सरकारें बनती और बिगड़ती हैं. उस नारों से मुद्दे गड़े जाते हैं. जैसे झूठे की सरकार, छत्तीसगढ़ की सरकार, फेलियर की सरकार छोटे-छोटे जिंगल्स और छोटे-छोटे नारों का बहुत महत्व है. यह हिंदुस्तान के 75 साल के लोकतंत्र में हमने देख लिया है.-राजीव चक्रवर्ती ,भाजपा प्रदेश प्रवक्ता
भूपेश है तो भरोसा है, प्रदेश के किसान, युवा, महिलाएं, जनता का विश्वास भूपेश बघेल की सरकार पर है । इस बीच उस एक नारा जनता के बीच से आया 'काका अभी जिंदा है'। यह बच्चों और युवाओं के बीच में प्रसिद्ध है। भूपेश बघेल को यहां के बच्चे ओर युवा काका कहते हैं । यदि आप कहीं भी जाकर बोलेंगे काका अभी जिंदा हैं तो सारे लोग भूपेश बघेल के बारे में सोचेंगे । इसलिए नारा महत्वपूर्ण स्थान रखता है- धनंजय सिंह ठाकुर, कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता
चाउर वाले बाबा के विरोध में दारू वाले बाबा का नारा: कुछ लोग नारों में भी संभावनाएं ढूंढ लेते हैं जैसा कि रमन सरकार के समय देखने को मिला था, उस दौरान चाउर वाले बाबा नारा काफी प्रचलित है, जिसका तोड़ कांग्रेस ने दारू वाले बाबा के नारे के रूप में निकाला. नारों के विरोध में लाया गया नारा काफी असरकारक रहता है जिसका मतदाताओं पर असर भी देखने को मिलता है.