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Chhattisgarh Election 2023: नामों की घोषणा पहले करने पर क्या उम्मीदवारों पर बढ़ता है आर्थिक बोझ, कैसे चुनाव में होता है नफा नुकसान, जानिए

Chhattisgarh Election 2023 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 की तैयारियों को लेकर भाजपा, कांग्रेस से दो कदम आगे चल रही है. कई सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गई है. उम्मीदवार भी जनता को रिझाने में लग गए हैं. जमकर पैसा खर्च किया जा रहा है. कांग्रेस का मानना है कि 21 सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवार नहीं बल्कि बली के बकरे उतारे हैं, जिसका फायदा उन्हें बिल्कुल भी नहीं मिलेगा. उम्मीदवारों के नामों की जल्द घोषणा से उन पर कितना आर्थिक बोझ पड़ेगा, इस पर राजनीतिक जानकार का क्या कहना है आइए जानते हैं.

Chhattisgarh Election 2023
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 27, 2023, 11:25 AM IST

Updated : Aug 27, 2023, 12:35 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को अब चंद महीने ही बचे हैं. चुनावी काम तेजी से पूरे किए जा रहे हैं. इलेक्शन कमीशन ने भी प्रदेश का दौरा कर चुनावों को लेकर जरूरी निर्देश दे दिए हैं. भाजपा और बसपा ने छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी पहली सूची जारी कर दी है. कांग्रेस ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि चुनाव से कई दिन पहले उम्मीदवारों के नाम की घोषणा से उन्हें लाभ मिलता है या उन पर आर्थिक बोझ बढ़ता है ? इन सवालों का जवाब जानने के लिए ETV भारत ने इसका विश्लेषण किया.

समय से पहले प्रत्याशी घोषणा का फायदा और नुकसान: राजनीति के जानकारों का मानना है कि समय से काफी पहले उम्मीदवारों की घोषणा का फायदा और नुकसान दोनों होता है. इसका फायदा बताते हुए वरिष्ट पत्रकार उचित शर्मा बताते हैं कि उम्मीदवारों की घोषणा और आचार संहिता लगने के बीच के जो भी खर्च हैं वह टेक्निकल रूप से उम्मीदवारों के खर्चे में नहीं जोड़े जाते हैं जिससे प्रत्याशी अपने पक्ष में जितना भी प्रचार प्रसार करता है वह उन चुनावी खर्चों से बाहर हो जाता है. जितनी लिमिट निर्वाचन आयोग करता है. नुकसान की बात करें तो इससे उम्मीदवारों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. इस दौरान कार्यकर्ताओं सहित स्थानीय लोगों की उम्मीदें प्रत्याशी से बढ़ जाती है. उम्मीदवार के कार्यालय के आसपास उत्सव जैसा माहौल होता है. आने जाने वालों की संख्या बढ़ जाती है. उनकी आवभगत का खर्चा बढ़ जाता है. कार्यकर्ताओं के पेट्रोल डीजल सहित अन्य चीजों का खर्चा भी प्रत्याशी को उठाना पड़ता है.

financial burden on candidates increase
प्रत्याशियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा

पहले नाम की घोषणा से उम्मीदवारों पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. आम लोगों की उम्मीदें भी उम्मीदवारों से ज्यादा होती है तीज त्योहार सहित अन्य कार्यक्रमों के लिए उनके पास लोग सहयोग मांगने जाते हैं और यदि ऐसे में उम्मीदवार ने सहयोग नहीं किया तो प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से उनकी नाराजगी का सामना उम्मीदवारों को करना पड़ सकता है. उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

Chhattisgarh Election 2023
साल 2018 के चुनाव में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले नेता

2018 में धरमलाल कौशिक ने किया सबसे ज्यादा खर्च: साल 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए फिलहाल प्रत्याशियों के खर्च की राशि अभी तय नहीं की गई है लेकिन छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने कुल 17.27 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि कांग्रेस ने साल 2018 के चुनावों में सिर्फ 1.35 करोड़ रुपये खर्च किये थे. प्रत्याशियों की बात करें तो भाजपा से बिल्हा विधायक और पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सबसे ज्यादा पैसा बहाया था. धरमलाल कौशिक ने 2018 में चुनाव प्रचार के लिए कुल 2407005 रुपये खर्च किये. धरमलाल कौशिक 2018 के भाजपा उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले नेता थे. भाजपा से सबसे कम खर्च कुरुद से वर्तमान विधायक और प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने किया. उन्होंने कुल 840058 रुपये खर्च किये थे.

Chhattisgarh Election 2023
साल 2018 के चुनाव में सबसे कम खर्च करने वाले नेता

कांग्रेस से उत्तरी जांगड़े सबसे खर्चीली विधायक: बात करें कांग्रेस की तो 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से सबसे अधिक खर्च सारंगढ़ विधायक उत्तरी जांगड़े ने किया था. उन्होंने चुनाव में 2349733 रुपये खर्च किये थे.कांग्रेस पार्टी से सबसे कम खर्च करने वाले उम्मीदवार पंडरिया से वर्तमान विधायक ममता चंद्राकर रही. उन्होंने कुल 982346 रुपये खर्च किया.

अजीत जोगी ने किया कम खर्च: जेसीसीजे में सबसे ज्यादा खर्च बलौदाबाजार विधानसभा से चुने गए विधायक प्रमोद कुमार शर्मा ने किया था. प्रमोद कुमार शर्मा ने 2018 में चुनाव प्रचार के लिए 1467367 रुपये खर्च किये थे. वहीं जेसीसीजे से सबसे कम खर्च करने वाले उम्मीदवार मरवाही विधानसभा सीट पर दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने किया. उन्होंने 2018 चुनाव में 413906 खर्च किया था.

प्रचार प्रसार करने मिलेगा अतिरिक्त समय: ये तो हुआ आर्थिक खर्च को लेकर उम्मीदवारों के फायदे और नुकसान की बात. लेकिन प्रचार प्रसार को लेकर देखा जाए तो जल्द नाम घोषणा से प्रत्याशी को इसका काफी फायदा मिलता है. वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा बताते हैं कि इससे प्रचार प्रसार के लिए अतिरिक्त समय मिल जाएगा. प्रत्याशी जगह जगह बैनर, पोस्टर, फ्लैक्स लगाकर जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं. इतना ही नहीं आचार संहिता लगने के पहले उम्मीदवारों के द्वारा किया गया खर्च, चुनावी खर्च में शामिल नहीं होता है.

उम्मीदवारों की घोषणा और आचार संहिता लगने के बीच के जो भी खर्च हैं. वह टेक्निकल रूप से उम्मीदवारों के खर्चे में नहीं जोड़े जाते हैं. जिससे वह जितना भी प्रचार प्रसार करता है, वह उन चुनावी खर्चों से बाहर हो जाता है. - उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

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CM Bhupesh Attacks ED And BJP : सीएम भूपेश ने ईडी की कार्रवाई को बताया बीजेपी की निराशा, 450 किलो का केक काटकर मनाया जन्मदिन
चुनाव से पहले उम्मीदवारों के नफे नुकसान का गणित

उम्मीदवार नहीं, कांग्रेस पर बढ़ा मानसिक बोझ: भाजपा का भी मानना है कि उम्मीदवारों के नामों की पहले घोषणा से उम्मीदवारों पर कोई आर्थिक दबाव नहीं पड़ेगा. भारतीय जनता पार्टी मानती है कि इससे प्रत्याशी को प्रचार प्रसार का ज्यादा मौका मिलेगा. प्रत्याशी जनता के साथ ज्यादा और अच्छे से संपर्क कर सकेगा. जिससे कांग्रेस को नुकसान होगा.

Amit chimnani attacks congress
अमित चिमनानी ने कांग्रेस पर किया पलटवार

आर्थिक बोझ बढ़ता है, ऐसा तो कुछ समझ नहीं आता. हां, लेकिन हमारे प्रत्याशी जल्दी घोषित होने से कांग्रेस का मानसिक बोझ जरूर बढ़ गया है. -अमित चिमनानी, मीडिया प्रमुख, भाजपा छत्तीसगढ़

भाजपा पूंजीपतियों के दम पर लड़ती है चुनाव: भाजपा में उम्मीदवारों की जल्द घोषणा से चुनावी खर्च बढ़ने को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर तंज कसा है. कांग्रेस मीडिया सेल के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी पूंजीपतियों की पार्टी रही है. उसके पीछे अडानी अंबानी का पैसा लगता हैं. कांग्रेस में किसी उद्योगपति को पार्टी से ऊपर नहीं रखा गया. कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ता अपने दम पर चुनाव लड़ता है.

sushil anand shukla attacks bjp
भाजपा पर पूंजीपतियों के दम पर चुनाव लड़ने के आरोप

भाजपा को मालूम है कि इन सीटों पर उसकी जमानत नहीं बचेगी, उसने बली का बकरा उतार दिया. इन उम्मीदवारों को अपने संसाधन इकट्ठा कर भाजपा कार्यकर्ताओं के गलत-सही मांगों को 3 महीने तक पूरा करना पड़ेगा. भाजपा ने इनको बली का बकरा बनाया, इसमें कहीं कोई दो राय नही है. -सुशील आनंद शुक्ला, प्रदेश अध्यक्ष, मीडिया विभाग कांग्रेस

इस साल होने वाले चुनाव के लिए फिलहाल उम्मीदवारों के खर्च करने की लिमिट तय नहीं हुई हैं. लेकिन संभावना इसी बात की है कि पिछले चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा के उम्मीदवार चुनावी खर्च में आगे रहेंगे. अब देखने वाली बात होगी कि इस खर्च का फायदा भाजपा में मिल पाएगा या नहीं.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को अब चंद महीने ही बचे हैं. चुनावी काम तेजी से पूरे किए जा रहे हैं. इलेक्शन कमीशन ने भी प्रदेश का दौरा कर चुनावों को लेकर जरूरी निर्देश दे दिए हैं. भाजपा और बसपा ने छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी पहली सूची जारी कर दी है. कांग्रेस ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. ऐसे में ये सवाल उठता है कि चुनाव से कई दिन पहले उम्मीदवारों के नाम की घोषणा से उन्हें लाभ मिलता है या उन पर आर्थिक बोझ बढ़ता है ? इन सवालों का जवाब जानने के लिए ETV भारत ने इसका विश्लेषण किया.

समय से पहले प्रत्याशी घोषणा का फायदा और नुकसान: राजनीति के जानकारों का मानना है कि समय से काफी पहले उम्मीदवारों की घोषणा का फायदा और नुकसान दोनों होता है. इसका फायदा बताते हुए वरिष्ट पत्रकार उचित शर्मा बताते हैं कि उम्मीदवारों की घोषणा और आचार संहिता लगने के बीच के जो भी खर्च हैं वह टेक्निकल रूप से उम्मीदवारों के खर्चे में नहीं जोड़े जाते हैं जिससे प्रत्याशी अपने पक्ष में जितना भी प्रचार प्रसार करता है वह उन चुनावी खर्चों से बाहर हो जाता है. जितनी लिमिट निर्वाचन आयोग करता है. नुकसान की बात करें तो इससे उम्मीदवारों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. इस दौरान कार्यकर्ताओं सहित स्थानीय लोगों की उम्मीदें प्रत्याशी से बढ़ जाती है. उम्मीदवार के कार्यालय के आसपास उत्सव जैसा माहौल होता है. आने जाने वालों की संख्या बढ़ जाती है. उनकी आवभगत का खर्चा बढ़ जाता है. कार्यकर्ताओं के पेट्रोल डीजल सहित अन्य चीजों का खर्चा भी प्रत्याशी को उठाना पड़ता है.

financial burden on candidates increase
प्रत्याशियों पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा

पहले नाम की घोषणा से उम्मीदवारों पर 50 प्रतिशत अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ जाता है. आम लोगों की उम्मीदें भी उम्मीदवारों से ज्यादा होती है तीज त्योहार सहित अन्य कार्यक्रमों के लिए उनके पास लोग सहयोग मांगने जाते हैं और यदि ऐसे में उम्मीदवार ने सहयोग नहीं किया तो प्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से उनकी नाराजगी का सामना उम्मीदवारों को करना पड़ सकता है. उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

Chhattisgarh Election 2023
साल 2018 के चुनाव में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले नेता

2018 में धरमलाल कौशिक ने किया सबसे ज्यादा खर्च: साल 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए फिलहाल प्रत्याशियों के खर्च की राशि अभी तय नहीं की गई है लेकिन छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी ने कुल 17.27 करोड़ रुपये खर्च किए थे. जबकि कांग्रेस ने साल 2018 के चुनावों में सिर्फ 1.35 करोड़ रुपये खर्च किये थे. प्रत्याशियों की बात करें तो भाजपा से बिल्हा विधायक और पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने सबसे ज्यादा पैसा बहाया था. धरमलाल कौशिक ने 2018 में चुनाव प्रचार के लिए कुल 2407005 रुपये खर्च किये. धरमलाल कौशिक 2018 के भाजपा उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा खर्च करने वाले नेता थे. भाजपा से सबसे कम खर्च कुरुद से वर्तमान विधायक और प्रदेश के पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने किया. उन्होंने कुल 840058 रुपये खर्च किये थे.

Chhattisgarh Election 2023
साल 2018 के चुनाव में सबसे कम खर्च करने वाले नेता

कांग्रेस से उत्तरी जांगड़े सबसे खर्चीली विधायक: बात करें कांग्रेस की तो 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से सबसे अधिक खर्च सारंगढ़ विधायक उत्तरी जांगड़े ने किया था. उन्होंने चुनाव में 2349733 रुपये खर्च किये थे.कांग्रेस पार्टी से सबसे कम खर्च करने वाले उम्मीदवार पंडरिया से वर्तमान विधायक ममता चंद्राकर रही. उन्होंने कुल 982346 रुपये खर्च किया.

अजीत जोगी ने किया कम खर्च: जेसीसीजे में सबसे ज्यादा खर्च बलौदाबाजार विधानसभा से चुने गए विधायक प्रमोद कुमार शर्मा ने किया था. प्रमोद कुमार शर्मा ने 2018 में चुनाव प्रचार के लिए 1467367 रुपये खर्च किये थे. वहीं जेसीसीजे से सबसे कम खर्च करने वाले उम्मीदवार मरवाही विधानसभा सीट पर दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने किया. उन्होंने 2018 चुनाव में 413906 खर्च किया था.

प्रचार प्रसार करने मिलेगा अतिरिक्त समय: ये तो हुआ आर्थिक खर्च को लेकर उम्मीदवारों के फायदे और नुकसान की बात. लेकिन प्रचार प्रसार को लेकर देखा जाए तो जल्द नाम घोषणा से प्रत्याशी को इसका काफी फायदा मिलता है. वरिष्ठ पत्रकार उचित शर्मा बताते हैं कि इससे प्रचार प्रसार के लिए अतिरिक्त समय मिल जाएगा. प्रत्याशी जगह जगह बैनर, पोस्टर, फ्लैक्स लगाकर जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकते हैं. इतना ही नहीं आचार संहिता लगने के पहले उम्मीदवारों के द्वारा किया गया खर्च, चुनावी खर्च में शामिल नहीं होता है.

उम्मीदवारों की घोषणा और आचार संहिता लगने के बीच के जो भी खर्च हैं. वह टेक्निकल रूप से उम्मीदवारों के खर्चे में नहीं जोड़े जाते हैं. जिससे वह जितना भी प्रचार प्रसार करता है, वह उन चुनावी खर्चों से बाहर हो जाता है. - उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

Vinod Verma attacks on ED Raid : भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा का दावा- ईडी ने मेरे घर पर डाली डकैती, सीएम ने बताया- भाजपा की बौखलाहट, रमन सिंह ने भी किया पलटवार
Former IAS Neelkanth Tekam Joins BJP: पूर्व IAS नीलकंठ टेकाम बीजेपी में शामिल, ओम माथुर ने दिलाई सदस्यता, केशकाल या कोंडागांव से लड़ सकते हैं चुनाव
CM Bhupesh Attacks ED And BJP : सीएम भूपेश ने ईडी की कार्रवाई को बताया बीजेपी की निराशा, 450 किलो का केक काटकर मनाया जन्मदिन
चुनाव से पहले उम्मीदवारों के नफे नुकसान का गणित

उम्मीदवार नहीं, कांग्रेस पर बढ़ा मानसिक बोझ: भाजपा का भी मानना है कि उम्मीदवारों के नामों की पहले घोषणा से उम्मीदवारों पर कोई आर्थिक दबाव नहीं पड़ेगा. भारतीय जनता पार्टी मानती है कि इससे प्रत्याशी को प्रचार प्रसार का ज्यादा मौका मिलेगा. प्रत्याशी जनता के साथ ज्यादा और अच्छे से संपर्क कर सकेगा. जिससे कांग्रेस को नुकसान होगा.

Amit chimnani attacks congress
अमित चिमनानी ने कांग्रेस पर किया पलटवार

आर्थिक बोझ बढ़ता है, ऐसा तो कुछ समझ नहीं आता. हां, लेकिन हमारे प्रत्याशी जल्दी घोषित होने से कांग्रेस का मानसिक बोझ जरूर बढ़ गया है. -अमित चिमनानी, मीडिया प्रमुख, भाजपा छत्तीसगढ़

भाजपा पूंजीपतियों के दम पर लड़ती है चुनाव: भाजपा में उम्मीदवारों की जल्द घोषणा से चुनावी खर्च बढ़ने को लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर तंज कसा है. कांग्रेस मीडिया सेल के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी पूंजीपतियों की पार्टी रही है. उसके पीछे अडानी अंबानी का पैसा लगता हैं. कांग्रेस में किसी उद्योगपति को पार्टी से ऊपर नहीं रखा गया. कांग्रेस पार्टी में कार्यकर्ता अपने दम पर चुनाव लड़ता है.

sushil anand shukla attacks bjp
भाजपा पर पूंजीपतियों के दम पर चुनाव लड़ने के आरोप

भाजपा को मालूम है कि इन सीटों पर उसकी जमानत नहीं बचेगी, उसने बली का बकरा उतार दिया. इन उम्मीदवारों को अपने संसाधन इकट्ठा कर भाजपा कार्यकर्ताओं के गलत-सही मांगों को 3 महीने तक पूरा करना पड़ेगा. भाजपा ने इनको बली का बकरा बनाया, इसमें कहीं कोई दो राय नही है. -सुशील आनंद शुक्ला, प्रदेश अध्यक्ष, मीडिया विभाग कांग्रेस

इस साल होने वाले चुनाव के लिए फिलहाल उम्मीदवारों के खर्च करने की लिमिट तय नहीं हुई हैं. लेकिन संभावना इसी बात की है कि पिछले चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा के उम्मीदवार चुनावी खर्च में आगे रहेंगे. अब देखने वाली बात होगी कि इस खर्च का फायदा भाजपा में मिल पाएगा या नहीं.

Last Updated : Aug 27, 2023, 12:35 PM IST
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