रायपुर: आज के समय में बाल विवाह एक अपराध है फिर भी देश में ऐसे कई इलाके हैं, जहां आज भी बाल विवाह होते हैं. बाल विवाह होने से बच्चों पर क्या बीतती है यह सिर्फ बच्चे ही बता सकते हैं. आज ईटीवी भारत आपको ऐसी एक महिला ,राफिया खातून के बारे में बताने जा रहा है. जिनके घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी और महिला के माता-पिता भी अनपढ़ थे. जिस वजह से महिला की शादी 14 साल की उम्र में ही कर दी गई. राफिया को पढ़ने लिखने का काफी शौक था लेकिन परिस्थिति इस तरह से थी कि शादी की वजह से उसका यह सपना चूर-चूर हो गया. उसके बाद भी महिला ने हार नहीं मानी. 14 साल की उम्र में राफिया की शादी और फिर 3 बच्चे हो जाने के बाद राफिया ने ये सोच लिया था कि, उसे अपना सपना पूरा करना है और दोबारा पढ़ाई करनी है जिसके बाद राफिया ने अपने बच्चों के साथ मिलकर पढ़ाई ही नहीं की, बल्कि 12वीं का एग्जाम भी बच्चों के साथ स्कूल जा कर दिया. आज राफिया अपने बेटे, आशिफ खान को पीएससी की तैयारी करा रही है. वह अपनी बेटी शाहीन खान को ओलंपिक के लिए तैयार कर रही है. ईटीवी भारत ने राफिया खातून से खास बातचीत कि, आइए जानते है उन्होंने क्या कहा
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बच्चों को पढ़ाने में हुई कठिनाई तब पढ़ाई का महत्व समझा- राफिया
राफिया ने बताया घर कि, आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह से मेरे माता पिता ने मेरी शादी 14 साल की उम्र में ही कर दी थी. उस समय मैं खुद बच्ची थी इसलिए मुझे कुछ समझ नहीं या. जो जैसा करने को कहता था मैं कर देती थी. शादी होने के बाद भी जब मेरे बच्चे हुए तब मैं खुद बच्ची थी. जब मेरे बड़े बेटे का जन्म हुआ तब में 15 साल की थी. जिसके 3 साल बाद मेरी बेटी का भी जन्म हुआ. जब मेरे बेटे, बेटी ने पढ़ना शुरू किया तब मैं उन्हें नहीं पढ़ा पा रही थी. तब मुझे समझ में आया कि, पढ़ना कितना जरूरी है. जिसके बाद जब मैं अपने बच्चों को लेकर बिरगांव के एक निजी स्कूल गई तो वहां के प्रिंसिपल से मेरी बात हुई और मैंने उनसे पढ़ने की इच्छा जाहिर की. जिसके बाद उन्होंने मुझे काफी सपोर्ट किया इसके बाद मेरे भाई बहन और मेरे बच्चों ने भी मुझे काफी सपोर्ट किया.
किताब भी लिख रहीं हैं राफिया
निजी स्कूल के प्रिंसिपल और मेरे भाई-बहन के सपोर्ट के बाद मैंने पढ़ना शुरू किया. शुरू-शुरू में मुझे काफी परेशानी हुई क्योंकि जब बांकी लोग देखते थे कि मैं स्कूल ड्रेस पहनकर अपने बच्चों के साथ स्कूल जा रही हूं और बाकियों की तरह क्लास में बैठ कर पढ़ रही हू तो सबको अजीब लगता था. लेकिन धीरे-धीरे क्लास में मेरे दोस्त बनते चले गए और मैंने 2015-16 में 12वीं का एग्जाम अपने बच्चों के साथ स्कूल जा कर दिया. मैं हमेशा से स्कूल जाना चाहती थी और मेरे बच्चों और भाई बहनों के कारण मेरा सपना पूरा हुआ. मैने अपनी जीवन के ऊपर एक किताब भी लिखी है क्योंकि मैं जानती हूं कि बहुत से ऐसे लोग हैं जो पढ़ना चाहते हैं. लेकिन समाज के लोग क्या सोचेंगे यह सोच कर वह अशिक्षित ही रह जाते हैं. मेरी इस कोशिश से उनको भी साहस मिलेगा और वह भी आगे शिक्षित हो पाएंगे.