रायपुर : नारी को हमारे देश में शक्ति का रूप (Form of Power) माना गया है. देवी के रूप में नारियों को यहां पूजा जाता है. इस शारदीय नवरात्र पर ईटीवी भारत आपको छत्तीसगढ़ की कुछ ऐसी महिलाओं से रू-ब-रू करा रहा है, जिन्होंने अपने कार्य और बौद्धिक क्षमता के दम पर समाज को सबलता प्रदान की है. इस कड़ी में आज मिलिए रायपुर की प्रियंका बिस्सा से. प्रियंका ने सैकड़ों गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा (Free Education to Poor Children) दी और महिला सशक्तीकरण (Women Empowerment) के लिए लगातार कार्य कर रही हैं. राष्ट्रपति से सम्मान प्राप्त (Honored By The President) प्रियंका को अब तक कर्मवीर चक्र (Karmaveer Chakra) के अलावा 400 से अधिक पुरस्कार मिल चुका है. साथ ही प्रियंका लगातार युवाओं को आगे बढ़ाने और उनके सशक्तीकरण के लिए कार्य कर रही हैं. बकौल प्रियंका 'मैं उन युवाओं में से हूं, जिन्हें कभी एक्स्पोजर नहीं मिला. पहले मैं 2 किलोमीटर के दायरे से बाहर नहीं जाती थी. जब स्कूल के बाद कॉलेज में आई मेरा दायरा बढ़ता गया. फिर राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ने के बाद यह दायरा और बढ़ता गया. पहले दिल्ली फिर दिल्ली से चाइना पहुंची. आज काफी जगहों पर दौरा करती हूं. खुद सीखती हूं और लोगों को भी सिखाती हूं.
सवाल - आप लगातार समाज सेवा के क्षेत्र में काम कर रही हैं. आपकी शुरुआत कैसी रही ?
जवाब- शुरुआत में जब स्कूल में पढ़ाई करती थी तभी से इसकी शुरुआत की. उस समय यह पता ही नहीं था कि समाज सेवा कहते किसे हैं. आज भी मुझे यह नहीं पता है कि समाज सेवा किसे कहते हैं. मैं जो कार्य कर रही हूं, उसे कर्तव्य समझकर कर रही हूं. कार्य का यह सिलसिला लगातार जारी है.
सवाल - महिलाओं को पढ़ाना और गरीब बच्चों को शिक्षत करने का ख्याल कैसे आया ?
जवाब - प्राथमिक शिक्षा हर किसी के जीवन में बहुत आवश्यक होती है. यह शिक्षा अच्छे भले परिवार के बच्चों को तो मिल जाती है, लेकिन ग्रामीण अंचलों या झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं. उसमें गलती उनकी नहीं होती क्योंकि पीढ़ियों से यह चला आ रहा है. उनके माता-पिता शिक्षित नहीं हैं, इसलिए उन बच्चों पर भी इसका असर पड़ता है. इसलिए मैंने इसके जड़ को पकड़कर झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के माता-पिता को भी शिक्षित करने की शुरुआत की.
सवाल - झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों को कैसे इस अभियान से जोड़ा और कैसे उनकी पढ़ाई कराई ?
जवाब- जब मैं स्कूल जाती थी, उसी दौरान मैंने बच्चों को पढ़ाई कराना शुरू कर दिया था. शुरुआत में 4 बच्चे आए, फिर उनकी संख्या 10 हो गई. लेकिन बाद में बच्चों ने आना बंद कर दिया. तो मैंने सोचा क्यों न मैं ही उनके घरों पर जाकर पढ़ाई करा लूं. तब मुझे सौभाग्य मिला और उस दौरान बस्तियों में 80 बच्चों को मैं पढ़ाने लगी. साथ में उन बच्चों के माता-पिता को भी शिक्षित करना शुरू कर दिया. मुझे तो महसूस हुआ कि इतना काफी नहीं होगा, जरूरत है एक अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर की. एक अच्छे डिजिटल एजुकेशन की. उसके बाद एक स्कूल खोल कर उन गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने की शुरुआत हुई. स्कूल के बच्चों ने प्राथमिक शिक्षा हासिल की और आज के दिनों में सरकार की ओर से कई अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खोले गए हैं. वो बच्चे आज सरकारी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं. अभी तक 600 से ज्यादा बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी है. बच्चे आज अच्छे स्कूल में पढ़कर ज्ञान अर्जित कर रहे हैं और दूसरों को भी आगे बढ़ा रहे हैं.
सवाल - बस्तर में आपका दौरा होता है. आप किस तरह से युवाओं को सशक्त बनाने के लिए कार्य कर रही हैं.
जवाब- मैं बस्तर के अलग-अलग इलाकों में जाती हूं. वर्तमान में बस्तर एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा युवोदय कार्यक्रम चल रहा है. बस्तर में जिस तरह से युवाओं में क्षमता देखी, वह अपार है. असली भारत ग्रामीण अंचलों में ही बसता है. वहां मैंने इसे महसूस भी किया. अगर ग्रामीण अंचलों के युवाओं को सशक्त किया गया तो देश की प्रगति दोगुनी रफ्तार से हो सकती है. इसलिए लगातार ग्रामीण अंचलों में युवाओं को सशक्त बनाने के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल में काम चल रहा है, ताकि उनमें जो विकास होगा व्यक्तिगत के साथ-साथ सामाजिक और देश के लिए भी होगा.
सवाल - महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए किस तरह का काम कर रही हैं?
जवाब- स्कूल टाइम से ही महिलाओं को सशक्त बनाने की कवायद शुरू कर दी थी. जब देखा करती थी कि महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होती हैं, इसी कारण उन्हें कई घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. जानकारी के अभाव में ऐसी मुसीबतों का महिलाएं सामना करती हैं, जिससे वे बच सकती हैं. तब मैंने महिलाओं को सशक्त बनाने का कार्य शुरू किया. उन्हें शिक्षित करने के साथ-साथ आर्थिक रूप से सशक्त करने का कार्य भी शुरू किया. महिला समूह बनाकर आभूषण, बस्तर आर्ट और हैंडीक्राफ्ट को लेकर काम किया. बाद में कई दिव्यांग महिलाएं जुड़ीं और आज वे अपना परिचय एक कलाकार के तौर पर दे रही हैं. यह असल मायने में सशक्तीकरण है. जब वे आर्थिक रूप से स्वस्थ बन गई हैं. इसके अलावा अन्य राज्य की भी महिलाएं हमारे साथ जुड़ी हुई हैं. कोशिश है कि यह महिलाएं अंतरराष्ट्रीय स्तर तक भी आगे जाएं.
सवाल - नवरात्रि के खास मौके पर आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?
जवाब- महिलाओं की बात करूं तो मैं उन्हें यही संदेश देना चाहूंगी कि सशक्त होने के लिए केवल आपको अपने आप में व्यक्तिगत काम नहीं करना पड़ता है बल्कि आपके आसपास जितने भी परिचित हैं, उनके साथ एकजुटता लाएं. अपने साथ अपने काम में भी संवेदनशीलता लेकर आएं. एक आपसी सामंजस्य बिठाएं. जिस तरह हम लैंगिक समानता की बात करते हैं, उस दिशा में आगे बढ़ें. यह चीजें लड़ने से नहीं होती, समझने से होती हैं. जितना हम महिलाओं को सशक्त समझकर काम करेंगे, उतनी ही ज्यादा हम लैंगिक समानता को उजागर कर प्रदेश और देश को सशक्त करके एक सशक्त भारत का निर्माण कर पाएंगे.