रायपुर: छत्तीसगढ़ के हजारों किसान फरवरी माह में Kisan Jodo Rath Yatra निकालेंगे. इस यात्रा का नेतृत्व किसान मोर्चा अध्यक्ष अनिल दुबे करेंगे. वहीं किसानों की इस कमेटी में 61 सदस्य होंगे. इस यात्रा का मुख्य मुद्दा समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा, मंडियों में पूरे साल खरीदी बिक्री, सौदा पत्रक रद्दीकरण के साथ ही स्वर्गीय किसान कांतिलाल के परिवार को मुआवजा दिलाना है.
छत्तीसगढ़ संयुक्त किसान मोर्चा की क्या हैं मांगें : रायपुर में राज्य आंदोलनकारी छ्सपा और छत्तीसगढ़ संयुक्त किसान मोर्चा की संयुक्त तत्वावधान में प्रदेश कमेटी की बैठक दोपहर 02 बजे शुरु हुई . बैठक की अध्यक्षता राज्य आंदोलनकारी किसान मोर्चा के संस्थापक दाऊ जीपी.चंद्राकर ने की. बैठक में कई मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया. जिसमें समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा दिलाना. प्रदेश में बंद सभी मंडियों को खोलकर समर्थन मूल्य में बारहों माह खरीदी की व्यवस्था करने की बात की Preparation for Kisan Jodo Rath Yatra गई.
बैठक में किन मुद्दों पर हुई चर्चा : खैरझिटी,मालिडीह,कौंवाझर की कृषि भूमि, आदिवासी भूमि,सरकारी भूमि,वन भूमि पर स्टील प्लांट के मालिक अवैध निर्माण कर रहे हैं. जिसे रद्द करने की मांग की गई है.इसके साथ ही किसानों को समर्थन मूल्य से वंचित कराने के लिए लागू " किसान सौदा पत्रक" को अविलम्ब ही निरस्त कराने,विश्व धरोहर सिरपुर एवं महासमुन्द शहर को औद्योगिक प्रदूषण से बचाने की मांग की गई है.
किसान परिवार के लिए मांगा मुआवजा : राइस मिलर और नौकरशाहों की मिली भगत से परेशान होकर किसान क्रंतिलाल साहू ने विवश होकर आत्महत्या कर ली थी. किसान के परिवार को 50 लाख रुपये मुआवजा देने की भी मांग संगठन ने की है. उपरोक्त मुददों के समाधान के लिए 20 दिनों का किसान जोड़ो रथयात्रा फरवरी माह में निकालने का निर्णय लिया गया. इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए Chhattisgarh sanyukt Kisan Morcha के 61 पदाधिकारियों का संचालन समिति का गठन किया गया ,जिसके संरक्षक राज्य आंदोलनकारी छ्सपा किसान मोर्चा के अध्यक्ष अनिल दुबे होंगे.
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सरकार किसान हितैषी तो विरोध क्यों : किसान और किसानों से जुड़े मुद्दे को सत्ता पक्ष हमेशा से ही सुनता आया है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है. छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस की सरकार की जीत भी किसानों के कर्ज माफी की स्कीम से हुई.लेकिन फिर भी किसानों को इस तरह अपनी समस्या के समाधान के लिए आंदोलन और यात्राएं करनी पड़ रही है. क्या किसानों की समस्या को प्राथमिकता से हल करने का वादा केवल चुनावी था. ये विषय विचारणीय है. आज भी मूल स्तर पर किसान अपनी समस्या से बाहर नहीं निकला है और शायद यही वजह है कि वो आंदोलन और यात्रा जैसे हथकंडे अपना रहा है.