रायपुर: छत्तीसगढ़ में इन दिनों हसदेव जंगल कटाई को लेकर सियासत गरमाई हुई (Politics over Hasdeo forest cutting in Chhattisgarh) है. इस मामले को लेकर जहां एक ओर मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों के एक के बाद एक बयान आ रहे हैं. तो वहीं दूसरी ओर विपक्ष ने भी इस मामले को लेकर सरकार को घेरने का प्रयास किया है. इतना ही नहीं इस मामले को लेकर राहुल गांधी तक का बयान सामने आ चुका है. हसदेव जंगल कटाई का मामला अब छत्तीसगढ़ तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि ये मुद्दा देश सहित विदेश में भी चर्चा का विषय बना हुआ है.
दरअसल, ये मामला तब और चर्चा में आ गया जब छत्तीसगढ़ के सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिलों में फैले हसदेव अरण्य में कोयला खनन का मुद्दा लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उठा था. वहां पहुंचे राहुल गांधी से स्टूडेंट ने इसके बारे में सवाल किया. जवाब में राहुल गांधी ने कहा कि वो इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर बात कर रहे हैं. जल्दी ही इसका नतीजा दिखेगा.
आखिर हसदेव जंगल कटाई का क्या है मामला: छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार ने 6 अप्रैल 2022 को बड़े प्रस्ताव को मंजूरी दी. जिसके तहत हसदेव क्षेत्र में स्थित परसा कोल ब्लॉक, परसा ईस्ट और केते बासन कोल ब्लॉक का विस्तार किया जाना है. इस विस्तार के लिए हजारों लाखों पेड़ों की बलि चढ़ानी होगी. यानी कि जंगलों की कटाई की जाएगी.
चिपको आंदोलन की तर्ज पर किया जा रहा प्रदर्शन: यही कारण है कि इतनी बड़ी मात्रा में कट रहे पेड़ों को बचाने को अब स्थानीय ग्रामीण पेड़ों से चिपक कर चिपको आंदोलन की तर्ज पर प्रदर्शन कर रहे हैं. कुछ ने तो इन पेड़ों को बचाने के लिए पिछले कई वर्षों से अभियान चला रखा है. छत्तीसगढ़ में घने जंगलों वाले इलाके में कोयले की खदानों का विस्तार किए जाने की वजह से स्थानीय लोग विरोध पर उतर आए हैं.
हसदेव जंगल कटाई से कई वर्ग होगा प्रभावित: छत्तीसगढ़ के उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा और सूरजपुर जिले के बीच में स्थित है हसदेव अरण्य. लगभग 1,70,000 हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है. वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, हसदेव अरण्य गोंड, लोहार और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. यहां 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं. इनमें से 18 वनस्पतियों खतरे में है. वहीं, सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस के लिए लगभग 95 हजार पेड़ों की कटाई की जाएगी. वहीं, वहां विरोध कर रहे स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो इसके लिए लगभग दो लाख पेड़ काटे जाएंगे.
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हसदेव के जंगल बचाने को आंदोलन: ऐसा नहीं है कि हसदेव को बचाने का प्रयास आज से किया जा रहा है. पिछले 10 सालों से हसदेव के अलग-अलग इलाकों में जंगल काटे जाने का विरोध किया जा रहा है. विरोध के बावजूद कोल ब्लॉक आवंटन कर दिया गया, जिसके बाद यह आंदोलन और तेज हो गया है. जल, जंगल और जमीन बचाने वाली आदिवासी समाज की इस लड़ाई में कई लोग शामिल हो रहे हैं. बिलासपुर में अनिश्चितकालीन धरना और रायपुर में पैदल मार्च भी किया गया.
अडाणी ग्रुप करेगा खनन: सरगुजा और सूरजपुर जिले में परसा कोयला खदान का इलाका 1252.447 हेक्टेयर का है. इसमें से 841.538 हेक्टेयर जंगल में है. यह खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित है. राजस्थान की सरकार ने अडानी ग्रुप से करार करते हुए खदान का काम उसके हवाले कर दिया है. मतलब इस जगह अडाणी ग्रुप खनन करेगा.
विरोध में की गई पदयात्रा के बावजूद आवंटन को मिली मंजूरी: इस खदान के विस्तार के चलते लगभग आधा दर्जन गांव सीधे तौर पर और डेढ़ दर्जन गांव आंशिक तौर पर प्रभावित होंगे. लगभग 10 हजार आदिवासियों को अपना घर जाने का डर सता रहा है. दिसंबर 2021 में पदयात्रा और विरोध प्रदर्शन हुआ. नतीजा अप्रैल में आवंटन को मंजूरी दे दी गई.
हाथियों के रहने की जगह होगी खत्म: साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के केवल 1 फीसद हाथी ही छत्तीसगढ़ में है. नई खदानों को मंजूरी से हाथियों के रहने की जगह खत्म हो जाएगी. जंगली जानवर और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ेगा.
पहले से ही कोयले की 23 खदानें मौजूद: हसदेव अरण्य क्षेत्र में पहले से ही कोयले की 23 खदाने मौजूद हैं. साल 2009 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे 'नो गो जोन' की कैटगरी में डाल दिया था. इसके बावजूद कई माइनिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई.
ऐसा है हसदेव अरण्य का संकट: साल 2010 में नो-गो क्षेत्र घोषित होने के बाद कुछ समय के लिए यहां हालात सामान्य रहे. केंद्र में सरकार बदली तो इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला खदानों का आवंटन शुरू हुआ. ग्रामीण इसके विरोध में आंदोलन करने लगे. 2015 में राहुल गांधी इस क्षेत्र में पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों का समर्थन किया और कहा कि इस क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे. छत्तीसगढ़ में सरकार बदली लेकिन इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों पर रोक नहीं लग पाई. हाल ही में भारतीय वानिकी अनुसंधान परिषद (ICFRE) ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक हसदेव अरण्य क्षेत्र को कोयला खनन से अपरिवर्तनीय क्षति होगी, जिसकी भरपाई कर पाना कठिन है. इस अध्ययन में हसदेव के पारिस्थितिक महत्व और खनन से हाथी मानव द्वंद के बढ़ने का भी उल्लेख है.
क्या है नो गो एरिया का मामला: सरगुजा और कोरबा जिलों में स्थित हसदेव अरण्य वन क्षेत्र मध्य भारत के सबसे समृद्ध और पुराने जंगलों में गिना जाता है. पर्यावरण के जानकार इसे “छत्तीसगढ़ का फेफड़ा" कहते हैं. 2010 में इस क्षेत्र को नो गो एरिया घोषित कर दिया गया था. जयराम रमेश केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री थे तो वे नो गो एरिया का कॉन्सेप्ट लाए थे. यानी इस सीमा के आगे खदानों को अनुमति नहीं दी जाएगी. उस लक्ष्मण रेखा का पालन करना जरूरी है.
खनन के लिए आदिवासियों की मंजूरी जरूरी: आदिवासियों के मुताबिक पंचायत एक्सटेंशन ऑन शेड्यूल्ड एरिया (पेसा) कानून 1996 के तहत बिना उनकी मर्जी के उनकी जमीन पर खनन नहीं किया जा सकता. पेसा कानून के मुताबिक, खनन के लिए पंचायतों की मंजूरी जरूरी है. आरोप है कि इस प्रोजेक्ट के लिए जो मंजूरी ली ही नहीं गयी, जो कागज दिखाया जा रहा है वो फर्जी है. आदिवासियों का कहना है 700 लोगों को उनके घरों से विस्थापित किया जाएगा और 840 हेक्टेयर घना जंगल नष्ट होगा.
पेड़ ऑक्सीजन का प्रमुख स्त्रोत: एक स्वस्थ पेड़ हर दिन लगभग 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है. जिससे सात लोगों को ऑक्सीजन मिलता है. ऑक्सीजन जीवित रहने के लिए इंसानों और जानवरों दोनों को बहुत जरूरी है. आज से 12 हजार साल पहले खेती करना शुरू किया... तब से हम ने दुनिया के कुल करीब छह खरब पेड़ों में से आधे को काट डाला गया. दुनिया के जंगलों की तादाद 32 प्रतिशत घट गई है. हम इसी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, जब सांस लेना और मुश्किल होगा.
टीएस सिंहदेव ने आंदोलन के पक्ष में दिया बयान: ऐसा नहीं है कि हम तो जंगल की कटाई को लेकर लोगों या राजनीतिक दलों के द्वारा आंदोलन धरना प्रदर्शन किया बयानबाजी नहीं की गई. सबसे पहले स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव के बयान के बारे में बात करते है. टीएस सिंहदेव सोमवार को हसदेव अरण्य पहुंचे थे. उन्होंने आंदोलन में बैठे ग्रामीणों से मुलाकात की. काटे जा रहे पेड़ को देखा. इसके बाद उन्होंने हसदेव बचाने के लिए आंदोलन कर रहे ग्रामीणों का हौसला बढ़ाया. उन्होंने कहा कि आप एक हो जाइए, फिर कोई गोली बंदूक लेकर आएगा तो मेरे को बुला लीजिएगा. पहली गोली मैं खाऊंगा, दूसरी गोली आपको लगेगी. इसके साथ टी एस सिंहदेव ने यह भी ग्रामीणों से कहा हसदेव अरण्य के बारे में राहुल गांधी से बात करेंगे. इनको इसके बारे में जानकारी देंगे.
गोली चलाने की नहीं आएगी नौबत: सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि टीएस सिंहदेव चाहते हैं तो पेड़ क्या डाल तक नहीं कटेगी. गोली चलाने की नौबत नहीं आएगी. गोली चलाने वाले पर ही गोली चल जाएगी.
बृजमोहन अग्रवाल ने सिंहदेव और बघेल सरकार पर बोला हमला: बीजेपी भी हसदेव अरण्य के मामले में राज्य सरकार को घेरने में लगी है. बीजेपी नेता बृजमोहन अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि हसदेव में 8 लाख पेड़ कटेंगे. ऑक्सीजन ज्यादा जरूरी है या कोयला, पेंड कटेंगे तो तापमान और भी बढ़ जाएगा. आगे उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव के हसदेव बचाने के समर्थन पर कहा कि टी एस सिंहदेव अपने पद से इस्तीफा देकर मैदान में आकर लड़ें.
केंद्र सरकार करता है खदान आबंटन का काम: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आवंटन पर बीजेपी के आरोपों पर पलटवार करते हुए केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि खदान आबंटन का काम केंद्र सरकार का है. बीजेपी को केंद्र सरकार के समक्ष विरोध जताना चाहिए. बीजेपी की ओर से सवाल उठाना भी गलत, ये बीजेपी का दोहरा चरित्र है. विरोध दिल्ली में होना चाहिए.
राहुल गांधी ने जताई थी आपत्ति: इस मामले में हो रही बयानबाजी को लेकर राजनीति के जानकार एवं वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "अक्टूबर 2019 में खदान को सरकार के द्वारा अनुमति दी गई थी. जो राजस्थान में विद्युत संयंत्र के लिए कोयला की आपूर्ति करेगा. लेकिन इस मामले में पेंच वहां फंस रहा है कि जब केंद्र और राज्य में भाजपा सरकार थी. तब विपक्ष में बैठी कांग्रेस में हंसदेव अभ्यारण को बचाने के लिए बहुत बड़ा आंदोलन किया था. इस आंदोलन ने तत्कालीन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल हुए थे. राहुल गांधी ने कहा था कि किसी भी हाल में यहां के जंगल और खदानों को समाप्त नहीं किया जाएगा. लेकिन बाद में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बन गई और राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकार है. राजस्थान में विद्युत संयंत्र को कोयला नहीं मिल रहा है. उसके लिए छत्तीसगढ़ के खदान से कोयला का आवंटन होना है. उसके लिए सरकार को इसकी अनुमति देनी पड़ी. अनुमति मिलने के बाद अडानी कंपनी इसका उत्खनन करेगी. ऐसे में अब कांग्रेस सरकार इस पशोपेश में फंस गई है कि खदान शुरू करके राजस्थान को बिजली संयंत्र के लिए कोयले की आपूर्ति करें या फिर खदान पर रोक लगाकर छत्तीसगढ़ के जंगल को बचाए. इसी पशोपेश में दिल्ली के आलाकमान से लेकर छत्तीसगढ़ के नेता फंसे हुए हैं."
हाईकमान के निर्देश पर ही शुरू हुआ होगा खदान: शशांक शर्मा ने कहा, "अशोक गहलोत ने कांग्रेस हाईकमान से कोयले के लिए गुहार लगाई. यह कहा जा सकता है कि हाईकमान के निर्देश पर ही छत्तीसगढ़ सरकार ने इस खदान को शुरू करने का नोटिफिकेशन जारी किया. ऐसे में हाईकमान का ही एक हिस्सा लंदन में जाकर इसका विरोध करते हैं. आज पार्टी ऐसे चक्रव्यू में फंस गई है कि इसका संदेश पूरे देश और विश्व में नकारात्मक जा रहा है. सभी अपना दामन बचाना चाहते हैं. इसलिए बचने के लिए एक दूसरे पर दोष मढ़ रहे हैं."
हाईकमान के सुर में सुर मिला रहे हैं बघेल और सिंहदेव: टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल के बयान को लेकर शशांक शर्मा ने कहा, " यदि उनकी पार्टी के नेता लंदन बैठकर कहते हैं कि वे इसके खिलाफ हैं... तो टीएस सिंहदेव ने भी राहुल गांधी के इस बयान को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पेड़ नहीं काटने देंगे. मुख्यमंत्री अपने हाईकमान की बात से कैसे मुकर सकते हैं. इस बयान के बाद अब ऐसी टेक्नोलॉजी बनानी पड़ेगी कि पेड़ भी न कटे और कोयले का उत्खनन भी हो जाए. बीच का कोई रास्ता निकालना होगा तो यह कांग्रेस सरकार के लिए फायदेमंद होगा."
कांग्रेस अपनी बात से मुकरी:बीजेपी के विरोध को लेकर शशांक शर्मा ने कहा,"यह एक राजनीति से जुड़ा हुआ मामला है. इसलिए भाजपा इस मुद्दे को उठा रही है. जब खुद कांग्रेस इसका विरोध कर रही थी और अब सत्ता परिवर्तन के बाद खुद खदान का आवंटन दे रही है. ऐसे में कांग्रेस अपनी बात से मुकर रही है. तो स्वाभाविक है इस पर राजनीति होगी.