रायपुर: प्रदेश में इन दिनों पेट्रोल-डीजल की कीमत (price of petrol and diesel) और वेट रेट (weight rate) सबसे बड़ा मुद्दा है, जिस पर सियासत(politics of chhattisgarh) हावी है. जहां एक ओर भाजपा शासित राज्यों (BJP ruled states) में पेट्रोल-डीजल की कीमत (price of petrol and diesel) में राहत को वेट रेट (VAT rate )कम किया गया है. वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस शासित राज्यों (Congress ruled states) में वैट रेट कम न करने को लेकर दोनों पार्टियों में घमासान जारी है. हालांकि इस मुद्दे में अगर तकलीफ कोई झेल रहा है तो वो है आम जनमानस.
पुराने वादों को लेकर घिरी कांग्रेस सरकार
वही, अब भाजपा कांग्रेस को शराबबंदी (Congress banned liquor) पर किये गये पुराने वादों को लेकर घेर रही है. यहां पहले आप पहले आप के चक्कर में ना तो प्रदेश में शराबबंदी हो रही है और ना ही डीजल-पेट्रोल जीएसटी के दायरे में (Diesel Petrol under GST) लाया गया है. इन दोनों परिस्थितियों में ही नुकसान प्रदेश और देश की जनता को उठाना पड़ रहा है. आइए जानते हैं कि किस तरह राजनीतिक दल इन मुद्दों पर तो एक तरफा निर्णय ले लेते हैं, जो उनके और उनकी पार्टी के हित में होता है. लेकिन उन मुद्दों को विपक्ष सहित दूसरे राजनीतिक दलों पर डाल देते हैं, जिनमें उनका फायदा नहीं होता है.
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कई बड़े फैसले केन्द्र ने लिए
आइए सबसे पहले बात करते हैं केंद्र सरकार की. केंद्र सरकार के द्वारा कई ऐसे बड़े फैसले एक तरफा लिए गए, जिसका विपक्ष सहित अन्य राजनीतिक दलों ने खुलकर विरोध किया है. यहां तक कि सड़कों पर आंदोलन भी किया. कई ऐसे मामले भी हैं, जिसे लेकर अभी भी लगातार आंदोलन जारी है. लेकिन केंद्र सरकार अपने निर्णय पर अडिग है.
मोदी सरकार ने डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया
एक देश एक टैक्स यानी कि जीएसटी की रूपरेखा को लागू करने वाली केंद्र की मोदी सरकार ने डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया. अब जब पूरे देश में डीजल-पेट्रोल के बेतहाशा बढ़ते दाम को लेकर जनता ने विरोध करना शुरू कर दिया. विपक्ष सहित अन्य राजनीतिक दल भी खुलकर केंद्र सरकार पर हमला कर रहे थे. तो केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर लिए जाने वाले वेट रेट को कुछ कम कर दिया है. साथ ही पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने के मुद्दे को वापस विपक्ष की ओर मोड़ दिया है. केंद्र सरकार की माने तो उनके द्वारा देश के सभी राज्यों से पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाए जाने के लिए प्रस्ताव मांगा गया है, लेकिन राज्यों की ओर से अब तक इसे जीएसटी में लाने के लिए प्रस्ताव नहीं भेजा गया है.
कई बड़े निर्णय केन्द्र स्वयं ले रही
वहीं, केंद्र सरकार का यह फैसला कहीं ना कहीं उल्टा उन पर ही भारी पड़ता नजर आ रहा है. क्योंकि नोटबंदी(demonetisation), जीएसटी(GST), लॉकडाउन(
lockdown), वैक्सीनेशन(vaccination), ट्रेनों में दी गई रियायत में कटौती सहित तमाम निर्णय केंद्र सरकार स्वयं ले रही है. ऐसे में मात्र डीजल-पेट्रोल को जीएसटी में लाने का क्यों राज्य सरकारों से प्रस्ताव मांगा जा रहा है? यह सवाल सभी के जेहन में है, जिसका उत्तर अब तक केंद्र सरकार की ओर से नहीं दिया गया है.
शराबबंदी मुद्दे को लेकर सत्ता में आई कांग्रेस
आइए अब बात करते हैं छत्तीसगढ़ में होने वाले शराबबंदी (Prohibition)की. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि जब उनकी सरकार आएगी तो वे प्रदेश में शराबबंदी करेंगे. लेकिन कांग्रेस सरकार को लगभग पौने 3 साल होने को जा रहा है. अब तक प्रदेश में शराबबंदी नहीं की गई. आलम यह है कि प्रदेश में शराब की बिक्री का आंकड़ा दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है. यहां भी राज्य सरकार ने मामले को प्रदेश में बैठे विपक्ष यानी कि भाजपा की ओर मोड़ दिया है.
शराबबंदी का असर समाज पर
दरअसल, इस मुद्दे पर कांग्रेस का कहना है कि उनके द्वारा शराबबंदी के लिए एक कमेटी गठित की गई है. उस कमेटी में अब तक भाजपा के विधायकों का नाम नहीं आया है. क्योंकि शराबबंदी का असर समाज सहित कई वर्गों पर देखने को मिलेगा. यही वजह है कि राज्य सरकार इसे अचानक बंद नहीं कर सकती है. इसके लिए सभी की सहमति जरूरी है.
राज्य सरकार के फैसले पर उठ रहे सवाल
वहीं, राज्य सरकार के इस फैसले पर भी सवाल उठ रहे हैं. जब राज्य सरकार किसानों की कर्ज माफी, 2500 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदी, सहित अन्य निर्णय खुद ले रही है तो ऐसे में सिर्फ शराबबंदी के लिए वह विपक्ष का मुंह क्यों देख रही है? चूंकी शराबबंदी की घोषणा कांग्रेस ने की थी. इसी वजह से भाजपा का कहना है कि कांग्रेसी स्वयं प्रदेश में शराबबंदी करें उसमें भाजपा ना तो शामिल होगी और ना ही उनके विधायकों का नाम जाएगा.
हर पार्टी देखती है अपना फायदा
दोनों मामलों को देखने के बाद साफ हो जाता है कि कोई भी राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज होता है, तो वह जो भी निर्णय लेता है अपने और पार्टी के हित में लेता है. जिस निर्णय से पार्टी के हित में कोई प्रभाव पड़ता है, तो उसे विपक्ष या फिर अन्य राजनीतिक दलों की ओर मोड़ दिया जाता है. यही घुमावदार स्थिति पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में लाने और प्रदेश में शराबबंदी के निर्णय में देखने को मिल रही है. विभिन्न विषयों को लेकर प्रदेश की प्रमुख दोनों पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी से बात की गई तो उन्होंने एक बार फिर एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए सही निर्णय न लेने का आरोप लगाया.
भाजपा कांग्रेस पर लगा रही आरोप
इस मामले में ईटीवी से बातचीत के दौरान भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गौरीशंकर श्रीवास बताय कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की जो बार-बार आवाज उठती है. यह इसलिए तय नहीं हो पा रहा है क्योंकि गैर-भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्रियों का इसमें अलग-अलग कथन रहा है. महाराष्ट्र मुख्यमंत्री का इस विषय पर अलग मत रहा है. झारखंड के मुख्यमंत्री इस विषय पर अलग बात कहते हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री इस विषय पर अलग राग अलाप रहे हैं. इसी कारण जीएसटी का मसौदा तैयार नहीं हो पा रहा है, जिससे डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाया जा सके.
कांग्रेस ने शराबबंदी का वादा पूरा नहीं किया
वहीं, अगर बात शराबबंदी की करें तो पूरे देश में शराबबंदी के नाम पर कांग्रेस ने वोट बटोरा, लोगों से वादा किया. प्रदेश की माताओं को धोखा दिया और अब राज्य सरकार पर मनमानी पर उतर आई है. ओने-पौने यहां पर रेट बढ़ाए जा रहे है, कमीशन खोरी की जा रही है. इस वजह से प्रदेश में आज हालात यह है कि घर-घर शराब बिक रही है. लोग त्राहि कर रहे हैं.
दोनों पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप जारी
इधर, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि डी. पुरंदेश्वरी झूठ बोलकर राजनीति कर रही है. सच्चाई है कि पेट्रोल-डीजल की महंगाई के लिए मोदी की भाजपा सरकार जिम्मेदार है. यूपीए की सरकार के समय पेट्रोल पर 9 .48 पैसा और डीजल पर 3.56 पैसा एक्साइज ड्यूटी लगता था. जिसे बढ़ाकर मोदी की भाजपा सरकार ने पेट्रोल पर 35 रुपये और डीजल पर 32 रुपये एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है और 5 रुपये का सेस अलग से वसूला जा रहा है. जीएसटी के दायरे में पेट्रोल-डीजल के लाने के खिलाफ भाजपा शासित राज्य भी शामिल है. देश के 17 राज्यों में भाजपा ओर भाजपा समर्थित सरकारें हैं.वहीं प्रदेश में शराबबंदी को लेकर उन्होंने कहा कि इसके लिए गठित कमेटी में भाजपा के विधायक शामिल नहीं हुए है. रमन सरकार के समय शराब का सरकारिकरण किया गया था. गांव-गांव में शराब की दुकानें खुल गई थी.
पेट्रोल पर डी. पुरंदेश्वरी का बड़ा बयान
इस विषय में डी पुरंदेश्वरी कहना है कि एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए हैं. यूपीए सरकार के समय आयल बॉन्ड लिया गया था. 1 साल पहले 40 हजार करोड़ रुपए ब्याज चुकाया गया है. हमने सभी सरकारों से आग्रह किया है कि डीजल पेट्रोलियम प्रोडक्ट को जीएसटी के अंदर लेकर आये. इसके लिए सभी को एक मत होना है. लेकिन अब तक सभी राज्यों के फाइनेंस मिनिस्टर इसके लिए तैयार नहीं है. हम सभी राज्यों से आग्रह करते हैं कि आप पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए प्रस्ताव भेजें. जिस तरह केंद्र सरकार ने वेट कम किया है उसका प्रभाव देखने को मिला है इसी तरह राज्य सरकारें भी अपने वेट को कम करें. जिससे जनता को राहत मिल सके. जितना हमने कम किया उतना पहले राज्य सरकारें कम करें उसके बाद हम और आगे विचार करेंगे.
पत्रकार की नजर से
वहीं, इस विषय में वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी का कहना है कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए, इसकी मांग लंबे समय से आम जनता सहित राजनीतिक दलों के द्वारा लगातार उठती रही है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव और अभिमत लेते लेते लगभग 2 साल का समय बीत गया है. जीएसटी केंद्र सरकार के अधीन का मामला है. यह सरकार पेट्रोल-डीजल को जीएसटी में ला सकती है. उसके लिए लंबी प्रक्रिया अपनाने की जरूरत नहीं है. बहरहाल डीजल-पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाने और प्रदेश में शराबबंदी का मुद्दा राजनीति का विषय बना हुआ है. दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रही है. दोनों दल एक दूसरे पर जोरदार हमला कर रहे हैं.अब देखने वाली बात है कि इस पर कब तक विराम लगता है.