रायपुर: वर्ष 1986 में मध्यप्रदेश प्रशासनिक सेवा का एक अधिकारी राजनीति के सफर पर निकल पड़ा था. वो प्रशासनिक अधिकारी जो कांग्रेस का हाथ थामकर बुलंदी तक पहुंचा. बड़ा आदिवासी चेहरा, विषयों पर पकड़ रखने वाला ऐसा जननेता जिसकी धाराप्रवाह बोली लोगों को 'जोगी जी जिंदाबाद' कहने को मजबूर कर देती थी. 74 साल की उम्र में करीब 33 साल के राजनीतिक करियर के साथ अजीत जोगी ने हमें अलविदा तो कह दिया. लेकिन जब-जब छत्तीसगढ़ की राजनीति का जिक्र होगा, अजीत जोगी के बिना मुकम्मल नहीं होगा.
जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ को राज्य का दर्जा दिया तो अजीत जोगी वहां के पहले मुख्यमंत्री बने थे. उस समय का उनका एक बयान बहुत चर्चित है कि, 'हां, मैं सपनों को सौदागर हूं और मैं सपने बेचता हूं.' हालांकि बाकी के किसी विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता ने उनका सपना खरीदना स्वीकार नहीं किया.
अजीत जोगी का राजनीतिक सफर-
अजीत जोगी की राजनीति में एंट्री भी बड़ी रोचक है. बात 1985 की है. अजीत जोगी उस वक्त इंदौर के कलेक्टर थे और राजीव गांधी को इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में प्रधानमंत्री बने थे. एक रात अचानक दिल्ली के प्रधानमंत्री निवास से इंदौर के कलेक्टर को फोन गया और कलेक्टर जोगी कांग्रेसी जोगी बन बैठे. इंदौर कलेक्टर रहते हुए ही उन्होंने प्रशासनिक सेवा छोड़ी और राजनीति का रुख कर लिया.
कहते हैं कि जिस वक्त अजीत जोगी रायपुर में कलेक्टर थे, उस समय राजीव गांधी के संपर्क में आ गए. जब राजीव गांधी रायपुर रुकते थे तो एयरपोर्ट पर जोगी खुद उनकी आवभगत के लिए पहुंच जाते थे. बताया जाता है कि इस खातिरदारी ने उन्हीं राजनीतिक की टिकट दिला दी. कांग्रस ने पहले उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समिति का सदस्य बनाया फिर राज्यसभा की सदस्यता दिला दी. उन्होंने 1998 तक लगातार दो कार्यकालों तक उच्च सदन में सेवा दी. पहली बार 1998 में रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र से वे चुनाव जीते थे.
ऐसे बने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
वर्ष 1999 में अजीत जोगी जब शहडोल लोकसभा सीट से वह चुनाव हार गए थे, लेकिन उसके बाद जब नया राज्य बना तो स्थानीय कांग्रेस में ऐसा समीकरण बना कि जोगी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल गया. 2000 से लेकर 2003 के विधानसभा चुनाव तक उनके पास ये पद रहा, लेकिन, फिर से वह इस पद पर वापसी नहीं कर सके.
2003 के बाद ऐसा रहा राजनीतिक सफर
- 2003 में जब कांग्रेस छत्तीसगढ़ की सत्ता से बेदखल हो गई तो अजीत जोगी 2004 के लोकसभा चुनाव में इलेक्शन लड़े और फिर से लोकसभा में दाखिल हुए.
- 2008 में उन्होंने संसद सदस्यता छोड़कर मरवाही विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधायक बन गए.
- 2008 के विधानसभा चुनाव में रमन सिंह की अगुवाई वाली भाजपा ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एकबार फिर से वापसी का मौका नहीं दिया तो एक साल बाद अजीत जोगी फिर से 2009 के चुनाव में भाग्य आजमाने के लिए महासमुंद लोकसभा क्षेत्र पहुंच गए.
- 2009 में वे फिर लोकसभा सांसद बने, लेकिन 2014 की मोदी लहर में उन्हें भाजपा उम्मीदवार के हाथों ये सीट गंवा देनी पड़ी.
विवादों से हमेशा जुड़ा रहा जोगी का नाम
अजीत जोगी के नाम सबसे बड़ा विवाद उनके आदिवासी होने को लेकर रहा. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2018 में उनके आदिवासी होने के पक्ष में फैसला दिया.
2003 में अजीत जोगी पर बीजेपी विधायकों को खरीदने की कोशिश के भी आरोप लगे थे, इसका एक स्टिंग ऑपरेशन भी आया था. 2004 में अजीत जोगी के साथ एक भीषण कार ऐक्सिडेंट हुआ था, जिसमें उनकी जान तो बच गई, लेकिन वे हमेशा के लिए लकवाग्रस्त होकर रह गए. हालांकि, उन्होंने आरोप लगाया था कि विरोधियों के जादू-टोने की वजह से वह हादसा हुआ था.