रायपुर: छत्तीसगढ़ में आरएसएस लगातार सक्रिय होता जा रहा है (political experts Opinion on RSS). बीते कई दिनों से छत्तीसगढ़ में आरएसएस की सक्रियता बढ़ती जा रही है. यहां प्रमुख पदाधिकारी डेरा डाले हुए हैं (RSS active in Chhattisgarh). यहां तक कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी छत्तीसगढ़ प्रवास पर हैं. उनका यह प्रवास इस बार काफी लंबा रहा है. लगभग एक हफ्ते तक मोहन भागवत छत्तीसगढ़ में रहते हुए विभिन्न संगठनों की बैठक ले रहे हैं. इतना ही नहीं आरएसएस बैकग्राउंड वाले नेताओं को भी छत्तीसगढ़ भाजपा में विशेष तवज्जो दी जा रही है. पहले आरएसएस बैकग्राउंड वाले नेता अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष और नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया. उसके बाद हाल ही में ओम माथुर को भाजपा ने छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी बनाया है. ओम माथुर भी आरएसएस बैकग्राउंड से आते हैं. आखिर क्या वजह है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सक्रियता बढ़ती जा रही है. इसको टटोलने की कोशिश ईटीवी भारत ने की है (BJP Congress opinion on meeting of RSS in Chhattisgarh).
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर हो रहा मंथन: लगातार प्रदेश में बढ़ रही आरएसएस की सक्रियता ने आम लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या इस बार आरएसएस के सहारे भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की तैयारी कर रही है. इसे लेकर ईटीवी भारत ने अलग अलग वर्ग के अलग अलग बुद्धिजीवियों से चर्चा की और जानने की कोशिश की कि आखिर आरएसएस की सक्रियता का आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा को कितना लाभ मिलेगा.
आरएसएस का क्या है मत: छत्तीसगढ़ में हो रही बैठकों को लेकर सबसे पहले यह सवाल आरएसएस पदाधिकारी से ही किया गया है कि क्या आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए आरएसएस के बैकग्राउंड वाले नेताओं को छत्तीसगढ़ भाजपा में प्रमुख पदों की जिम्मेदारी सौंपी जा रही है. इस सवाल का जवाब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर गोलमोल देते नजर आए. आंबेकर ने कहा कि "छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में संघ का कार्य लगातार बढ़ रहा है. संघ का 3 साल बाद शताब्दी वर्ष आ रहा है. जिस वजह से हमारा पूरा ध्यान संघ के विस्तार कार्य पर लगा हुआ है. कैसे संगठन का विस्तार हो. पूरे समाज को कैसे जोड़े. इस पर हम लोग लगे हुए हैं. हर प्रदेश में हम लोगों को बहुत अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है".
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आरएसएस की बैठक पर बीजेपी और कांग्रेस का क्या है मत: छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि "आरएसएस इस देश का और विश्व का एक सबसे बड़ा सेवाभावी संगठन है. जो अपने तरीके से अपना काम करता है". बृजमोहन अग्रवाल के इस बयान पर पलटवार करते हुए कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "आरएसएस के द्वारा कहा जाता है कि हम गैर राजनीतिक संगठन हैं. हमें राजनीतिक गतिविधियों से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन जैसे ही छत्तीसगढ़ में भाजपा की स्थिति खराब हुई. तत्काल आरएसएस उभर कर सामने आ गया. रणनीति बना रहा है. शुक्ला ने कहा कि आरएसएस. भाजपा का उद्धार कराने वाले संगठन मात्र हैं. इनका एजेंडा यही है कि किस तरह से प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बने." सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि "भारतीय जनता पार्टी के नेता छत्तीसगढ़ की जनता का विश्वास खो चुकी है और यही वजह है और अब इनका मानना है कि भाजपा की जगह आरएसएस के चेहरे को सामने लाया जाए. लेकिन इसका फायदा भी भाजपा को नहीं मिलेगा. आप चाहे तो फिर से प्रदेश प्रभारी ,प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष बदल लो, उसका कोई फायदा भाजपा को नहीं मिलेगा"
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का क्या है कहना: वहीं वरिष्ठ पत्रकार शशांक शर्मा का कहना है कि "आरएसएस का एक राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी है. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के माध्यम से या वैचारिक दृष्टि से संघ भाजपा को मदद करता है. लेकिन जिस तरह से छत्तीसगढ़ में आरएसएस कि पिछले कुछ दिनों में सक्रियता बढ़ी है. वह इस चुनाव को लेकर नहीं है बल्कि 3 साल बाद आने वाले आरएसएस के शताब्दी वर्ष को लेकर है. किस तरह से 100 वर्ष मनाने के लिए नेटवर्क का विस्तार किया जाएगा. किस तरह से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ा जाए. उसके विस्तार की दृष्टि से अभी संघ की गतिविधियां आपको तेज लगेगी." लगातार आरएसएस बैकग्राउंड के नेताओं की भाजपा में नियुक्ति को लेकर शशांक शर्मा ने कहा कि जब संघ का नेता भाजपा में आता है तो उसका संघ से कनेक्शन कट जाता है. यह नियम है लेकिन वह नेता संघ से विचार लेकर आता है. उस विचार को भाजपा में कैसे साथ लेकर चल रहा है. वह देखना होगा." पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी हार पर शशांक शर्मा का कहना है कि सुनने में यही आ रहा है कि उस दौरान भाजपा और संगठन के बीच तालमेल का अभाव था जिसका खामियाजा कहीं ना कहीं भाजपा को उठाना पड़ा"
राजनीति शास्त्र के जानकारों का आरएसएस के महामंथन पर क्या है मत: वहीं राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर राकेश कुमार चंद्राकर भी यह बात मान रहे हैं कि "हाल ही के दिनों में छत्तीसगढ़ में आरएसएस की गतिविधियां काफी तेज हुईं हैं. यहां तक कि भाजपा में जो नियुक्ति की जा रही है वह भी आरएसएस बैकग्राउंड वाले नेताओं की जा रही है. इसके पीछे मुख्य वजह है आगामी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव को बताया जा रहा है. प्रोफेसर चंद्राकर ने बताया कि यदि छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो "छत्तीसगढ़ में भाजपा के जो कार्यकर्ता या नेता हैं वह शहरी क्षेत्रों में ज्यादा हैं यह एक धनाढ्य वर्ग है जो पार्टी को आर्थिक मजबूती प्रदान करते हैं. लेकिन चुनाव के लिए जमीनी स्तर पर काम करने के लिए उन्हें आरएसएस का सहारा लेना पड़ता है. क्योंकि आरएसएस के सदस्य जमीन से जुड़े हुए हैं. इसलिए उनकी पकड़ लोगों में अच्छी होती है. हालांकि आरएसएस राजनीतिक दल नहीं है. बावजूद इसके वह भाजपा को किसी न किसी रूप में मदद करता है." वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में मिली हार को लेकर प्रोफेसर चंद्राकर ने कहा कि "यह कहा जा सकता है कि भाजपा नहीं बल्कि आरएसएस चुनाव लड़ती है. पिछले चुनाव में भाजपा और आरएसएस में तालमेल के अभाव की वजह से कहीं न कहीं पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था"
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आरएसएस और बीजेपी की बैठक पर क्या सोचते हैं सामाजिक कार्यकर्ता: वहीं सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण लोहाटी का कहना है कि "भाजपा पिछले चुनाव में चंद सीटों पर सिमट गई थी और यही वजह है कि अब भाजपा अपना आरएसएस रुपी ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करने जा रही है. अब आरएसएस के लोगों को भाजपा के माध्यम से मैदान में उतारा जा रहा है. लाहोटी का कहना है कि आरएसएस की भूमिका पिछले चुनाव में भी अपनी जगह थी. लेकिन जिस तरह से सरकार बनने के बाद भूपेश बघेल ने काम किया है उसे देखते हुए आगामी चुनाव में भी कांग्रेस को फायदा मिलेगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता. भाजपा प्रमुख विपक्षी पार्टी के कारण कांग्रेस को कड़ी चुनौती देने की बात भी कहते नजर आए उनका आरएसएस जहां कमजोर होता है. वहां इस तरह के बदलाव किए जाते हैं"
आरएसएस सांसकृतिक संगठन है उसका चुनाव से क्या लेना देना: हालांकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही कह चुके हैं कि आरएसएस तो सांस्कृतिक संगठन है. उसे चुनाव से क्या लेना देना. वह आगामी विधानसभा चुनाव 2023 की रणनीति क्यों बनाएगी.