गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: छत्तीसगढ़ की राजनीति में मरवाही हमेशा से ही हाईप्रोफाइल सीट रही है. एक बार फिर यहां उपचुनाव हो रहा है. इस बार चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निधन के बाद खाली हुई सीट पर हो रहा है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही मरवाही में बंपर वोटिंग होती रही है. इसी परंपरा को बरकरार रखते हुए इस उपचुनाव में भी जमकर वोटिंग हुई है. शाम 6 बजे तक 77 फीसदी से ज्यादा मतदान हो चुका था. अब 10 नवंबर को प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला होगा.
सुबह से लगने लगी मतदाताओं की लाइन
मरवाही में हल्की सर्दी के बाद भी सुबह से ही मतदाताओं की लंबी लाइन पोलिंग बूथ पर नजर आने लगी थी. महिलाओं और बुजुर्गों ने मंगलवार को अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल को पहले प्राथमिकता दिया. मतदान से पहले कुछ लोगों का मानना था कि जोगी परिवार के इस चुनाव में सीधे शामिल नहीं होने से हो सकता है चुनाव के प्रति लोगों का रुझान उस तरह से न हो, लेकिन इस मत के विपरित मरवाही के लोगों ने लोकतंत्र के इस महायज्ञ में अपना अमूल्य वोट दिया.
क्या भाजपा को मिल पाएगा जेसीसीजे का वोट
इस चुनाव में जेसीसीजे के उम्मीदवार को चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला. ऐसे में बनते बिगड़ते समीकरणों के बीच अमित जोगी ने जेसीसीजे का समर्थन भाजपा उम्मीदवार को देने का ऐलान किया है. कुछ लोगों का मानना है कि इस ऐलान के बाद भाजपा की स्थिति कुछ मजबूत हुई लेकिन अभी लोग कांग्रेस उम्मीदवार को ज्यादा मजबूत मान रहे हैं. राजनीतिक पंडितों की नजर इस बात पर है कि अमित जोगी और उनके समर्थक अपने कितने वोट भाजपा के पक्ष में डलवाने में कमयाब होते हैं. क्योंकि छत्तीसगढ़ स्थापना के बाद से ही यहां जोगी परिवार काबिज रहा है. अजीत जोगी और अमित जोगी न केवल चुनाव जीतते आए हैं बल्कि अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को भारी अंतर से पराजित करते आए हैं.
एक नजर पिछले चुनाव के नतीजों पर:
- साल 2018 विधानसभा चुनाव
- कुल मतदान- 81.06 फीसदी
- अजीत जोगी – 49.64 फीसदी
- अर्चना पोर्ते – 18.49 फीसदी
- गुलाब सिंह – 13.43 फीसदी
2020 के उपचुनाव में वोट का शेयर
- कुल वोट प्रतिशत- 77.25 प्रतिशत
- पुरुष- 77.13 प्रतिशत
- महिला- 77.36 प्रतिशत
- ट्रांसजेंडर- 25.00 प्रतिशत
पढ़ें: मरवाही में जीत तय, मध्यप्रदेश में बनेगी कमलनाथ की सरकार : भूपेश बघेल
इस तरह देख सकते हैं कि पिछले चुनाव में कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी. भाजपा 18.49 फीसदी वोट के साथ दूसरे स्थान पर थी. पिछले चुनावों में भाजपा उम्मीदवार 20 से 22 फीसदी वोट पाने में कामयाब रहे. वहीं जोगी खेमे में वोटा का शेयर का आंकड़ा 50 फीसदी से ज्यादा का रहा. ऐसे में अगर अमित अपने खेमे से 25 फीसदी वोट भी ट्रांसफर करने में कामयाब होते हैं तो मुकाबला नजदीकी हो जाएगा.
नए जिला निर्माण और सत्ता का पड़ सकता है असर
मध्यप्रदेश की सीमाओं से लगे गौरेला-पेंड्रा-मरवाही को हाल ही में राज्य सरकार ने जिले का दर्जा दिया है. इस इलाके की ये बेहद पुरानी मांग थी. जिसे सीएम भूपेश बघेल ने सत्ता में आते ही पूरा किया था. स्थानीय लोगों ने सरकार के इस कदम को बेहद सराहा था. इस चुनाव में कहीं न कहीं ये इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है. इसके अलावा जैसा कि अक्सर उपचुनाव में उस पार्टी को एडवांटेज मिलता है जिसकी सरकार राज्य में हो, ये फैक्टर भी यहां दिख सकता है और इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है.
जोगी जाति और सियासत में भावना का कॉकटेल
जोगी परिवार का इस क्षेत्र के लोगों से सीधा संबंध रहा है या यूं कहें कि एक तरह से भावनात्मक लगाव रहा है. अजीत जोगी के निधन के बाद एक तरह का सद्भावना जेसीसीजे के साथ थी. लेकिन नियमों के फेर में पड़कर अमित और ऋचा जोगी चुनाव मैदान से बाहर हो गए. इसके बाद अमित जोगी और रेणु जोगी ने लगातार लोगों से जनसंपर्क जारी रखा और इस उनके परिवार के साथ अन्याय करार देते हुए न्याय की मांग की. चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में जेसीसीजे ने भाजपा को समर्थन तक करने का ऐलान कर दिया है. और मरवाही की जनता से न्याय की मांग की है. जोगी परिवार ने हार्डकोर चुनावी जंग को भावनाओं जामा पहनाने की पूरी कोशिश की है. अब इसे कितनी कामयाबी मिलती है देखने वाली बात होगी.
भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला
मरवाही उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. कांग्रेस ने डॉक्टर केके ध्रुव को मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा ने डॉक्टर गंभीर सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है. इसके अलावा 6 अन्य प्रत्याशी चुनाव में अपनी किस्मत अजमा रहे हैं. मरवाही के महासमर में इस बार जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से कोई भी प्रत्याशी मैदान में नहीं है. अमित जोगी का नामांकन जाति मामले की वजह से निरस्त कर दिया गया था. एक नजर कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशियों पर.
पढ़ें: मरवाही का महासमर: उपचुनाव में जीत को लेकर सबके अपने-अपने दावे
प्रत्याशियों का परिचय
कांग्रेस प्रत्याशी डॉक्टर केके ध्रुव
- डॉक्टर कृष्ण कुमार ध्रुव ने राजनीति में कदम रखने के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया है.
- वे मरवाही विकासखंड में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर के रूप में पदस्थ थे.
- कृष्ण कुमार ध्रुव बलौदाबाजार जिले के नटूवा गांव के रहने वाले हैं.
- जिनकी प्रारंभिक शिक्षा बालको कोरबा में हुई.
- बाद में वे जबलपुर के मेडिकल कॉलेज से उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की.
- इनके पिता स्वर्गीय देव सिंह एसईसीएल कोरबा में कर्मचारी थे. वहीं मां पीला बाई हाउस वाइफ थीं.
- केके ध्रुव के 3 बच्चे हैं, जिसमे मंझला बेटा मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है. छोटा बेटा बीएससी सेकंड ईयर का छात्र है
- वहीं बड़ी बेटी मरवाही ब्लॉक में ही शिक्षाकर्मी हैं.
- डॉ. ध्रुव साल 2001 से लगातार मरवाही में ही कार्यरत रहे हैं.
बीजेपी प्रत्याशी डॉक्टर गंभीर सिंह
- मरवाही विकासखंड के लटकोनी खुर्द गांव के रहने वाले गंभीर सिंह 11 जून 1968 में गौड़ परिवार में जन्मे और प्राथमिक शिक्षा गांव में ही पूरी करने के बाद 1999 में भारतीय रेलवे के जनरल सर्जन बने.
- वे ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में भी सेवा दे चुके हैं.
- 2005 में रायपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में विभागाध्यक्ष के रूप में भी सेवा दी.
- गंभीर सिंह की पत्नी मंजू सिंह जानी-मानी डॉक्टर हैं.
- गंभीर सिंह के पिता प्रेम सिंह गोंडवाना आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले चुके हैं.
- साल 2013 के चुनाव में भी गंभीर सिंह का नाम बीजेपी की ओर से प्रमुखता से था लेकिन बाद में समीरा पैकरा को प्रत्याशी बनाया गया.
इसके अलावा मरवाही के महासमर में इन 6 प्रत्याशियों ने भी ताल ठोकी है:
- उर्मिला सिंह मार्को
- पुष्पा खेलन कोर्चे
- बीर सिंह नागेश
- ऋतु पन्द्रम
- लक्षमण पोर्ते (अमित )
- सोनमती सलाम
अजीत जोगी के निधन के बाद खाली हुई सीट
अजीत जोगी के निधन के बाद यह सीट खाली हुई, जिसके बाद फिर से एक बार मरवाही विधानसभा में उप चुनाव हो रहा है. बिलासपुर से अलग होकर 10 फरवरी 2020 को अलग जिला बने गौरेला पेण्ड्रा मरवाही के मरवाही विधानसभा सीट राजनीतिक दृष्टिकोण से एक बेहद महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है और दिलचस्प सीट माना जाता है. छत्तीसगढ़ की मरवाही विधानसभा सीट से 2013 में तत्कालीन विधायक अमित जोगी ने कांग्रेस पार्टी की सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2018 में उन्होंने ये सीट अपने पिता और छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत होगी के लिए छोड़ दी थी. पिछले 20 सालों से ये सीट जोगी परिवार की परंपरागत मानी जाती थी. अजीत जोगी ने 2003 के उपचुनाव में यहीं से जीतकर छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया था.
दलबदलू नेताओं के लिए भी जाना जाता है
मरवाही सीट की कहानी दिलचस्प है. इस विधानसभा क्षेत्र की एक और खासियत है कि ये दलबदलू नेताओं के लिए भी जाना जाता है. मरवाही के हर विधायक ने एक न एक बार अपनी पार्टी बदली है या पार्टी छोड़कर चुनाव लड़े हैं. इसकी शुरूआत बड़े आदिवासी नेता भंवर सिंह पोर्ते से ही हो जाती है, जिन्होंने साल 1972,1977 और 1980 के चुनाव जीत कर हैट्रिक लगाई थी. 1985 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया और कांग्रेस के दीनदयाल विधायक बने. भंवर सिंह ने नाराज होकर कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी का दामन थाम लिया. साल 1990 में वे बीजेपी से विधायक बने. 1993 में फिर बीजेपी ने उनका टिकट काट दिया और कांग्रेस के पहलवान सिंह मरावी इस सीट से विधायक बनने में कामयाब हुए.
किसके सिर सजेगा जीत का ताज
मरवाही विधानसभा की सीट जोगी का गढ़ बनने के पीछे विधानसभा में चुनाव में आने वाले चुनाव परिणाम है, जिसमें 2001 के बाद से यह विधानसभा जोगी की होकर रह गई है. साल 2003, 2008 में अजीत जोगी लगातार यहां से विधायक रहे. 2013 में अजीत जोगी ने अमित जोगी के लिए यह सीट छोड़ दिया था. हालांकि 2018 में अमित जोगी ने अपने पिता स्व. अजीत जोगी के लिए सीट छोड़ दी थी. बहरहाल राजनीतिक इतिहास बताता है कि यहां से भले ही दो बार बीजेपी के विधायक बने हैं, लेकिन इसकी तासीर कांग्रेसी ही है. जोगी के गढ़ के रूप ख्यात मरवाही की जनता मूल रूप से जोगी और कांग्रेस पार्टी को अबतक चुनते आ रही है. अब देखना ये होगा कि साल 2020 में जोगी के बिना किसे विधायक की कुर्सी मिलती है. दो डॉक्टरों के दंगल के बीच मरवाही की जनता किसके सिर पर जीत का ताज पहनाती है.