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POCSO victim leaving studies : छत्तीसगढ़ में पॉक्सो पीड़ित छोड़ रहे स्कूल, बच्चों के परिजन भी इसमें भागीदार !

राजधानी रायपुर में पॉक्सो पीड़ितों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है. बहुत से बच्चों ने पढ़ाई से दूरी बना ली है. स्कूल जाना पूरी तरह से बंद कर दिया है. कुछ मामलों में तो पैरेंट्स ही बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. हालांकि बाल कल्याण समिति के पास पहुंचे मामलों में बच्चों की काउंसलिंग करा कर उन्हें दोबारा स्कूल भेजने कवायद शुरू की गई है. बाल कल्याण समिति से मिले आंकड़ों के मुताबिक जिले में 2 साल के अंदर समिति के पास लगभग 130 केस रजिस्टर्ड हुए हैं. उनमें से कई बच्चे पढ़ाई से दूर हो गए हैं.

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Published : Feb 14, 2023, 9:40 PM IST

POCSO victim leaving studies
पॉक्सो पीड़ित छोड़ रहे पढ़ाई

रायपुर: बाल कल्याण समिति की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पॉक्सो पीड़ित बच्चे पढ़ाई से दूरी बना रहे हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि परिजनों ने उन्हें स्कूल भेजने से मना कर दिया. स्टडी में दूसरी वजह यह पता चली है कि 16 साल की आयु पूरी कर चुके बच्चों ने किसी ना किसी दबाव में स्कूल जाने से मना कर दिया. वर्तमान में काउंसिलिंग के बाद 96 बच्चे दोबारा स्कूल तक पहुंचे हैं. बाल कल्याण समिति के पास केस पहुंचने के बाद उन्हें दोबारा स्कूल भेजने के लिए काउंसलिंग की कवायद तेज की गई है. ऐसे मामलों में पुलिस भी थानों में संवेदना कक्ष बनाने के बाद लगातार बच्चों की काउंसलिंग कर रही है.

अप्रिय घटना के बाद शहर ही छोड़ दिए: शहर में कई परिवार ऐसे हैं, जो दूसरे जिलों से काम करने के लिए आए और उनके नाबालिग अप्रिय घटना का शिकार हो गए. जब केस दर्ज हुआ तब परिजनों ने उन्हें वापस घर भेज दिया या फिर खुद ही शहर छोड़कर चले गए. नाबालिग किस स्कूल में दाखिल थे वहां से नाम भी कटवा दिया. आखिर में मानसिक रूप से पीड़ित नाबालिक स्कूल से भी अलग हो गए हैं. बाल कल्याण समिति द्वारा रजिस्टर्ड केस में परिजनों और पीड़ित बच्चों को काउंसलिंग के लिए बुलाया जाता है. बच्चों को समझाइश देने के बाद स्कूल भेजने की सलाह दी जाती है. इसके बाद लगातार बच्चों पर निगरानी रखते हुए उसका फॉलो अप रिपोर्ट तैयार किया जाता है. 2020-21 में 64 और 2021-22 में 66 केस रजिस्टर्ड किए गए हैं.

समाज को आगे आने की जरूरत: पुलिस के संवेदना कक्ष में पहुंचने वाले केस से पता चलता है कि घटना होने के बाद परिजन बदनामी के डर से बच्चों को स्कूल जाने से मना कर देते हैं. 17 साल पूरी कर चुके नाबालिगों का रिश्ता तय कर शादी का दबाव बनाते हैं. इस वजह से भी बच्चों को पढ़ाई से दूर कर दिया जाता. IUCAW की एएसपी चंचल तिवारी कहती हैं कि " पुलिस के अलावा समाज को भी सामने आने की जरूरत है. कई केसेस में अप्रिय घटना के बाद परिजन नाबालिगों को अपने गांव शिफ्ट कर देते हैं. हमारी ओर से कोशिश की जाती है कि वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो. समाज को भी इस दिशा में कोशिश करने की जरूरत है."


केस 1: धरसीवां थाना क्षेत्र के एक गांव से पॉक्सो का एक केस बाल कल्याण समिति के पास पहुंचा. परिचित युवक ने नाबालिग के साथ रेप की कोशिश की. केस दर्ज होने के बाद नाबालिग ने स्कूल जाना छोड़ दिया. कल्याण समिति की काउंसलिंग में समझाइश देकर किसी तरह नाबालिक को स्कूल जाने राजी किया गया.


केस 2: उरला थाना क्षेत्र में नाबालिग से अप्रिय घटना होने के बाद परिजनों ने स्कूल भेजना बंद कर दिया है. मजदूर परिवार दूसरे जिले से कमाने खाने के लिए रायपुर पहुंचा था. उसकी नाबालिग बेटी के साथ अप्रिय घटना हुई थी. बदनामी के डर से शहर छोड़ने का फैसला किया. बच्ची को भी स्कूल जाने से मना कर दिया.


केस 3: पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र से रिजिस्टर्ड एक केस में पीड़ित को समझाया गया. इसके बाद स्कूल जाने को राजी हुई. पीड़िता के माता-पिता नहीं है. नानी के घर रहने के दौरान एक परिचित युवक ने छेड़खानी की घटना को अंजाम दिया था. बुजुर्ग परिजनों के यहां मानसिक दबाव के चलते पीड़िता परेशान थी.

यह भी पढ़ें: Kawardha rape case Accused arrested : कवर्धा में चार साल की बच्ची से दरिंदगी में दो की गिरफ्तारी, आरोपियों को फांसी देने की मांग


क्या कहते हैं समिति के अफसर: बाल कल्याण समिति प्रभारी डीसीपीओ संजय निराला ने बताया कि "ज्यादातर केसेस में बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है. परिजनों से संपर्क कर बच्चों को समझाया जाता है और उन्हें दोबारा स्कूल भेजने के लिए कहते हैं. हम लगातार इस तरह के केसेस के लिए काउंसिलिंग करते हैं. हमारे पास 130 केस रिजिस्टर्ड हुए थे. जिसमें से 96 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. "

रायपुर: बाल कल्याण समिति की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पॉक्सो पीड़ित बच्चे पढ़ाई से दूरी बना रहे हैं. इसके पीछे की वजह यह है कि परिजनों ने उन्हें स्कूल भेजने से मना कर दिया. स्टडी में दूसरी वजह यह पता चली है कि 16 साल की आयु पूरी कर चुके बच्चों ने किसी ना किसी दबाव में स्कूल जाने से मना कर दिया. वर्तमान में काउंसिलिंग के बाद 96 बच्चे दोबारा स्कूल तक पहुंचे हैं. बाल कल्याण समिति के पास केस पहुंचने के बाद उन्हें दोबारा स्कूल भेजने के लिए काउंसलिंग की कवायद तेज की गई है. ऐसे मामलों में पुलिस भी थानों में संवेदना कक्ष बनाने के बाद लगातार बच्चों की काउंसलिंग कर रही है.

अप्रिय घटना के बाद शहर ही छोड़ दिए: शहर में कई परिवार ऐसे हैं, जो दूसरे जिलों से काम करने के लिए आए और उनके नाबालिग अप्रिय घटना का शिकार हो गए. जब केस दर्ज हुआ तब परिजनों ने उन्हें वापस घर भेज दिया या फिर खुद ही शहर छोड़कर चले गए. नाबालिग किस स्कूल में दाखिल थे वहां से नाम भी कटवा दिया. आखिर में मानसिक रूप से पीड़ित नाबालिक स्कूल से भी अलग हो गए हैं. बाल कल्याण समिति द्वारा रजिस्टर्ड केस में परिजनों और पीड़ित बच्चों को काउंसलिंग के लिए बुलाया जाता है. बच्चों को समझाइश देने के बाद स्कूल भेजने की सलाह दी जाती है. इसके बाद लगातार बच्चों पर निगरानी रखते हुए उसका फॉलो अप रिपोर्ट तैयार किया जाता है. 2020-21 में 64 और 2021-22 में 66 केस रजिस्टर्ड किए गए हैं.

समाज को आगे आने की जरूरत: पुलिस के संवेदना कक्ष में पहुंचने वाले केस से पता चलता है कि घटना होने के बाद परिजन बदनामी के डर से बच्चों को स्कूल जाने से मना कर देते हैं. 17 साल पूरी कर चुके नाबालिगों का रिश्ता तय कर शादी का दबाव बनाते हैं. इस वजह से भी बच्चों को पढ़ाई से दूर कर दिया जाता. IUCAW की एएसपी चंचल तिवारी कहती हैं कि " पुलिस के अलावा समाज को भी सामने आने की जरूरत है. कई केसेस में अप्रिय घटना के बाद परिजन नाबालिगों को अपने गांव शिफ्ट कर देते हैं. हमारी ओर से कोशिश की जाती है कि वह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो. समाज को भी इस दिशा में कोशिश करने की जरूरत है."


केस 1: धरसीवां थाना क्षेत्र के एक गांव से पॉक्सो का एक केस बाल कल्याण समिति के पास पहुंचा. परिचित युवक ने नाबालिग के साथ रेप की कोशिश की. केस दर्ज होने के बाद नाबालिग ने स्कूल जाना छोड़ दिया. कल्याण समिति की काउंसलिंग में समझाइश देकर किसी तरह नाबालिक को स्कूल जाने राजी किया गया.


केस 2: उरला थाना क्षेत्र में नाबालिग से अप्रिय घटना होने के बाद परिजनों ने स्कूल भेजना बंद कर दिया है. मजदूर परिवार दूसरे जिले से कमाने खाने के लिए रायपुर पहुंचा था. उसकी नाबालिग बेटी के साथ अप्रिय घटना हुई थी. बदनामी के डर से शहर छोड़ने का फैसला किया. बच्ची को भी स्कूल जाने से मना कर दिया.


केस 3: पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र से रिजिस्टर्ड एक केस में पीड़ित को समझाया गया. इसके बाद स्कूल जाने को राजी हुई. पीड़िता के माता-पिता नहीं है. नानी के घर रहने के दौरान एक परिचित युवक ने छेड़खानी की घटना को अंजाम दिया था. बुजुर्ग परिजनों के यहां मानसिक दबाव के चलते पीड़िता परेशान थी.

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क्या कहते हैं समिति के अफसर: बाल कल्याण समिति प्रभारी डीसीपीओ संजय निराला ने बताया कि "ज्यादातर केसेस में बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है. परिजनों से संपर्क कर बच्चों को समझाया जाता है और उन्हें दोबारा स्कूल भेजने के लिए कहते हैं. हम लगातार इस तरह के केसेस के लिए काउंसिलिंग करते हैं. हमारे पास 130 केस रिजिस्टर्ड हुए थे. जिसमें से 96 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. "

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