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नदिया किनारे, किसके सहारे: खारून को जिंदा रखने वाले सारे प्लान 'मृत' हो गए - खारून नदी

कंकालिन के बाद हम मरकाटोला के जंगलों में नदी के रास्ते आगे बढ़े इस दौरान नदी में पानी रोकने के लिए जगह-जगह स्टापडैम तो जरूर बनाया गया है. एक्सपर्ट की मानें तो लगातार हो रहे कटाव और अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में खारून नदी का नामो-निशान तक मिट जाएगा.

खारून को जिंदा रखने वाले सारे प्लान 'मृत' हो गए
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Published : Jun 27, 2019, 6:18 PM IST

Updated : Jun 27, 2019, 7:02 PM IST

रायपुर: नदिया किनारे, किसके सहारे में सफर करती हुई खारून आ पहुंची है राजधानी में. मरकाटोला इलाके के जंगलों से निकली खारून नदी पथरीले पहाड़ों से होते हुए अमलेश्वर और महादेवघाट होते हुए रायपुर पहुंचती है. लेकिन इसके पहले खारून नदी को बचाने के लिए एरिगेशन प्लान सही नहीं होने का खामियाजा हमें देखने को मिला.

खारून को जिंदा रखने वाले सारे प्लान 'मृत' हो गए

कंकालिन के बाद हम मरकाटोला के जंगलों में नदी के रास्ते आगे बढ़े इस दौरान नदी में पानी रोकने के लिए जगह-जगह स्टापडैम तो जरूर बनाया गया है लेकिन इसमें बूंद भर भी पानी हमें देखने को नहीं मिला. एक्सपर्ट की मानें तो लगातार हो रहे कटाव और अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में खारून नदी का नामो-निशान तक मिट जाएगा.

नदी के दोहन से खराब हुए हालात
खारून नदी को सालों से जगलों में हमारे पूर्वजों ने भगवान की तरह सहेज कर रखा था. जगह-जगह मंदिर देवालयों और एक से एक कहानियों से इससे जुड़ाव रहा है लेकिन अब समय के साथ-साथ इस नदी के दोहन ने अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया है. नदीं के उद्गम स्थल से ही कई किमी तक सूखे होने का असर जंगलों और पहाड़ों पर भी देखने को मिला.

स्टापडैम में नहीं दिखा पानी
कंकालिन के आगे ईटीवी भारत की टीम ने मरकाटोला के जंगलों में नदी का दौरा किया. इस दौरान जंगलों में गर्मी के दिनों में नदी का पानी रोकने के लिए जगह जगह स्टापडैम तो बनाए गए हैं लेकिन इसमें भी बूंद पर पानी नहीं दिखा.

नदी में प्रदूषण की मार
खारून नदी रायपुर ही नहीं बल्कि दुर्ग और बालोद जिले के आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन रेखा है. लेकिन इस नदी के लगातार हो रहे अत्यधिक दोहन से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. नदी के उद्गम से ही नदी के हालात अपनी कहानी बयां कर रहे हैं. इसके आगे बढ़ते-बढ़ते नदी में प्रदूषण की मार देखने को मिल रही है.

पढ़ें- VIDEO: ETV भारत की खास कवरेज, 'नदिया किनारे, किसके सहारे'

फेल हुए बचाने के लिए बनाए गए प्लान
खारून में सालभर पानी बचाने के लिए सरकार की ओर से काफी प्लान बनाया गया है, इसी के चलते जगह जगह स्टापडैम भी बनाए गए हैं, लेकिन इनकी उपयोगिता को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं.

क्या कहते हैं जानकार
नदियों को लेकर लंबे समय से छत्तीसगढ़ में रिसर्च कर रहे पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर एमएल नायक ने ETV भारत से बताया कि कुछ सालों पहले तांदुला डैम का जब निर्माण हुआ इसके लिए बने कैनाल के बीच में आ गई, जिससे खारून नदी कट गई.

खारून नदी में पानी बनाए रखने के लिए तांदुला कैनाल का एक छोटा सा भाग नदी से जोड़ दिया गया इससे खारून में पानी आते रहता है. वे कहते हैं कि नदी के किनारे पहले बस्तियां नहीं थी, तो प्राकृतिक रूप से जंगलों और पहाड़ों से पानी आता रहता था. पहले नदी का कटाव नहीं था.. इतना ही नहीं उन्होंने दावा किया है कि तांदुला का पानी बंद कर दिया जाए तो खारून में बिल्कुल पानी नहीं रहेगा.

पढ़ें- नदिया किनारे, किसके सहारे: क्या है मोक्ष देने वाली महानदी का 'महादर्द'

'स्पेशल प्लान की जरूरत'

  • वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के पूर्व एक्सक्यूटिव इंजीनियर एस.के. राठौर कहते है कि खारून नदी के लिए स्पेशल प्लान के साथ काम करने की जरूरत है. वे कहते हैं कि सबसे पहले नदी में ये ध्यान देना है कि टोटल कैचमेंट एरिया कितना है, जिसमें पानी कहां कहा से आता है.
  • उन्होंने कहा कि नदी का एक्शन प्लान जो भी बनता है उसमें शहर के आस पास के कुछ इलाकों में साफ करने का प्लान बनता है. जबकि ये गलत है. नदी के उद्गम स्थल से पानी को टेस्ट करना होगा कि यहां क्या क्वालिटी है.
  • इसके बाद एसटीपी लगाने के बाद भी पानी की क्वॉलिटी क्या है. इसे टेस्ट करने के बाद ही नदी में छोड़ा जाए. वे कहते हैं कि हरेक बड़े ट्रिब्यूटिस को यह जवाबदारी दी जाए कि नदी का पानी साफ रहे. यह प्रोसेस नदी के अंतिम सोर्स तक रहे.
  • वहीं नदी को लेकर रिसर्च कर रहे डॉक्टर एम.एल. नायक ने कहा कि बारिश में खारून का बहाव काफी तेज होता है. लेकिन समय के साथ अब नदी के आसपास के स्त्रोत ऐसे नहीं है कि बारहों महीना पानी देते रहे. इसके चलते नदी सूख जाती है. कुछ स्थानों पर उद्योगों से पानी आने के कारण इसमें पानी मिल जाता है.

नहीं रुक रहा स्टाप डैम में पानी
ऐसे तमाम पहलुओं पर चर्चा करने के बाद एक बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी को बचाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भले ही कई तरह के प्लान बनाए गए हों लेकिन वह भी केवल फाइलों में ही नजर आ रहे हैं. कुछ जगह जो स्टाप डैम बनाए गए हैं वो भी बिना प्रैक्टिकल के. यही वजह है कि जंगलों में पानी को स्टोरेज करने के लिए बनाए गए स्टाप डैम में पानी ही नहीं रुक रहा है.

रायपुर: नदिया किनारे, किसके सहारे में सफर करती हुई खारून आ पहुंची है राजधानी में. मरकाटोला इलाके के जंगलों से निकली खारून नदी पथरीले पहाड़ों से होते हुए अमलेश्वर और महादेवघाट होते हुए रायपुर पहुंचती है. लेकिन इसके पहले खारून नदी को बचाने के लिए एरिगेशन प्लान सही नहीं होने का खामियाजा हमें देखने को मिला.

खारून को जिंदा रखने वाले सारे प्लान 'मृत' हो गए

कंकालिन के बाद हम मरकाटोला के जंगलों में नदी के रास्ते आगे बढ़े इस दौरान नदी में पानी रोकने के लिए जगह-जगह स्टापडैम तो जरूर बनाया गया है लेकिन इसमें बूंद भर भी पानी हमें देखने को नहीं मिला. एक्सपर्ट की मानें तो लगातार हो रहे कटाव और अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में खारून नदी का नामो-निशान तक मिट जाएगा.

नदी के दोहन से खराब हुए हालात
खारून नदी को सालों से जगलों में हमारे पूर्वजों ने भगवान की तरह सहेज कर रखा था. जगह-जगह मंदिर देवालयों और एक से एक कहानियों से इससे जुड़ाव रहा है लेकिन अब समय के साथ-साथ इस नदी के दोहन ने अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर दिया है. नदीं के उद्गम स्थल से ही कई किमी तक सूखे होने का असर जंगलों और पहाड़ों पर भी देखने को मिला.

स्टापडैम में नहीं दिखा पानी
कंकालिन के आगे ईटीवी भारत की टीम ने मरकाटोला के जंगलों में नदी का दौरा किया. इस दौरान जंगलों में गर्मी के दिनों में नदी का पानी रोकने के लिए जगह जगह स्टापडैम तो बनाए गए हैं लेकिन इसमें भी बूंद पर पानी नहीं दिखा.

नदी में प्रदूषण की मार
खारून नदी रायपुर ही नहीं बल्कि दुर्ग और बालोद जिले के आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन रेखा है. लेकिन इस नदी के लगातार हो रहे अत्यधिक दोहन से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. नदी के उद्गम से ही नदी के हालात अपनी कहानी बयां कर रहे हैं. इसके आगे बढ़ते-बढ़ते नदी में प्रदूषण की मार देखने को मिल रही है.

पढ़ें- VIDEO: ETV भारत की खास कवरेज, 'नदिया किनारे, किसके सहारे'

फेल हुए बचाने के लिए बनाए गए प्लान
खारून में सालभर पानी बचाने के लिए सरकार की ओर से काफी प्लान बनाया गया है, इसी के चलते जगह जगह स्टापडैम भी बनाए गए हैं, लेकिन इनकी उपयोगिता को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं.

क्या कहते हैं जानकार
नदियों को लेकर लंबे समय से छत्तीसगढ़ में रिसर्च कर रहे पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉक्टर एमएल नायक ने ETV भारत से बताया कि कुछ सालों पहले तांदुला डैम का जब निर्माण हुआ इसके लिए बने कैनाल के बीच में आ गई, जिससे खारून नदी कट गई.

खारून नदी में पानी बनाए रखने के लिए तांदुला कैनाल का एक छोटा सा भाग नदी से जोड़ दिया गया इससे खारून में पानी आते रहता है. वे कहते हैं कि नदी के किनारे पहले बस्तियां नहीं थी, तो प्राकृतिक रूप से जंगलों और पहाड़ों से पानी आता रहता था. पहले नदी का कटाव नहीं था.. इतना ही नहीं उन्होंने दावा किया है कि तांदुला का पानी बंद कर दिया जाए तो खारून में बिल्कुल पानी नहीं रहेगा.

पढ़ें- नदिया किनारे, किसके सहारे: क्या है मोक्ष देने वाली महानदी का 'महादर्द'

'स्पेशल प्लान की जरूरत'

  • वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के पूर्व एक्सक्यूटिव इंजीनियर एस.के. राठौर कहते है कि खारून नदी के लिए स्पेशल प्लान के साथ काम करने की जरूरत है. वे कहते हैं कि सबसे पहले नदी में ये ध्यान देना है कि टोटल कैचमेंट एरिया कितना है, जिसमें पानी कहां कहा से आता है.
  • उन्होंने कहा कि नदी का एक्शन प्लान जो भी बनता है उसमें शहर के आस पास के कुछ इलाकों में साफ करने का प्लान बनता है. जबकि ये गलत है. नदी के उद्गम स्थल से पानी को टेस्ट करना होगा कि यहां क्या क्वालिटी है.
  • इसके बाद एसटीपी लगाने के बाद भी पानी की क्वॉलिटी क्या है. इसे टेस्ट करने के बाद ही नदी में छोड़ा जाए. वे कहते हैं कि हरेक बड़े ट्रिब्यूटिस को यह जवाबदारी दी जाए कि नदी का पानी साफ रहे. यह प्रोसेस नदी के अंतिम सोर्स तक रहे.
  • वहीं नदी को लेकर रिसर्च कर रहे डॉक्टर एम.एल. नायक ने कहा कि बारिश में खारून का बहाव काफी तेज होता है. लेकिन समय के साथ अब नदी के आसपास के स्त्रोत ऐसे नहीं है कि बारहों महीना पानी देते रहे. इसके चलते नदी सूख जाती है. कुछ स्थानों पर उद्योगों से पानी आने के कारण इसमें पानी मिल जाता है.

नहीं रुक रहा स्टाप डैम में पानी
ऐसे तमाम पहलुओं पर चर्चा करने के बाद एक बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी को बचाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भले ही कई तरह के प्लान बनाए गए हों लेकिन वह भी केवल फाइलों में ही नजर आ रहे हैं. कुछ जगह जो स्टाप डैम बनाए गए हैं वो भी बिना प्रैक्टिकल के. यही वजह है कि जंगलों में पानी को स्टोरेज करने के लिए बनाए गए स्टाप डैम में पानी ही नहीं रुक रहा है.

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मरकाटोला इलाके के जंगलों से निकली खारून नदी पथरीले पहाड़ों से होते हुए अमलेश्वर और महादेवघाट होते हुए रायपुर पहुंचती है.. लेकिन इसके पहले खारून नदीं को बचाने के लिए एरिगेशन प्लान सही नही होने का खामियाजा हमें देखने को मिला.. कंकालिन के बाद हम मरकाटोला के जंगलों में नदी के रास्ते आगे बढ़े इस दौरान नदीं में पानी रोकने के लिए जगह जगह स्टापडेम तो जरूर बनाया गया है लेकिन इसमें बूंद भर भी पानी हमें देखने को नहीं मिला.. एक्सपर्ट की माने तो लगातार हो रहे कटाव और अवैध उत्खनन पर रोक नहीं लगी तो आने वाले समय में खारून नदीं का नामों निशान तक मिट जाएगा.. Body:वीओ-1
खारून नदी को सालों से जगलों में हमारे पूर्वजों ने भगवान की तरह सहेज कर रखा था.. जगह जगह मंदिर देवालयों और एक से एक कहानियों से इससे जुड़ाव रहा है लेकिन अब समय के साथ साथ इस नदीं के दोहन ने खारून नदीं के अस्तित्व पर संकट लाकर खड़ा कर दिया है.. नदीं के उद्गम स्थल से ही कई किमी तक सूखे होने का असर जंगलों और पहाड़ों पर भी देखने को मिला.. कंकालिन के आगे ईटीवी भारत की टीम ने मरकाटोला के जंगलों में नदी का दौरा किया.. इस दौरान जंगलों में गर्मी के दिनों में नदी का पानी रोकने के लिए जगह जगह स्टापडैम तो बनाए गए है लेकिन इसमें भी बूंद पर पानी नहीं दिखा..
वाकथ्रू -
मयंक ठाकुर
वीओ-
खारुन नदी रायपुर ही नहीं बल्कि दुर्ग और बालोद जिले के आसपास के क्षेत्रों के लिए जीवन रेखा है.. लेकिन इस नदी के लगातार हो रहे अत्यधिक दोहन से हालात बद से बदतर होते जा रहे है.. नदी के उद्गम से ही नदी के हालात अपनी कहानी बया कर रहे है.. इसके आगे बढ़ते बढ़ते नदीं में प्रदूषण की मार देखने को मिल रही है.. खारून में सालभर पानी बचाने के लिए सरकार की ओर से काफी प्लान बनाया गया है, इसी के चलते जगह जगह स्टापडैम भी बनाए गए है, लेकिन इनकी उपयोगिता को लेकर अब सवाल उठ रहे है.. नदियों को लेकर लंबे समय से छत्तीसगढ़ में रिसर्च कर रहे पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एम.एल. नायक ने ईटीवी भारत से बताया कि कुछ सालों पहले तांदुला डैंम का जब निर्माण हुआ इसके लिए बने कैनाल के बीच में आ गई, जिससे खारून नदीं कट गई.. खारून नदीं में पानी बनाए रखने के लिए तांदुला कैनाल का एक छोटा सा भाग नदी से जोड़ दिया गया इससे खारून में पानी आते रहता है.. वे कहते है कि नदी के किनारे पहले बस्तियां नहीं थी, तो प्राकृतिक रूप से जंगलों और पहाड़ों से पानी आता रहता था.. पहले नदी का कटाव नहीं था.. इतना ही नहीं उन्होने दावा किया है कि तांदुला का पानी बंद कर दिया जाए तो खारून में बिल्कुल पानी नहीं रहेगा..

बाइट- डॉ. एम.एल. नायक, रिटायर्ड प्रोफेसर, रविवि

सहेजने के लिए विशेष प्लान की जरूरत

वॉटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के पूर्व एक्सक्यूटिव इंजीनियर एस.के. राठौर कहते है कि खारून नदी के लिए स्पेशल प्लान के साथ काम करने की जरूरत है.. वे कहते है कि सबसे पहले नदी में ये ध्यान देना है कि टोटल कैचमेंट एरिया कितना है, जिसमें पानी कहां कहा से आता है. नदी का एक्शन प्लान जो भी बनता है कि इसमें ध्यान रखना होगा कि शहर के आस पास के कुछ इलाकों में साफ करने का प्लान बनता है.. जबकि ये गलत है.. नदी के उद्गम स्थल से पानी को टेस्ट करना होगा कि यहां क्या क्वालिटी है.. इसके बाद एसटीपी लगाने के बाद भी पानी की क्वालिटी क्या है.. इसे टेस्ट करने के बाद ही नदीं में छोड़ा जाए. हरेक बड़े ट्रिब्यूटिस को यह जवाबदारी दी जाए कि नदीं का पानी साफ रहे.. यह प्रोसेस नदीं के अंतिस सोर्स तक रहे. इसके साथ ही नदी का कचरा से साफ होना चाहिए.. नदियों में कटाव रोकने के लिए दोनो ओर मजबूत पौधों को प्लांटेशन किया जाए. जिनकी जड़े मजबूत हो जो मिट्टी को रोक कर रख सके..

बाइट- एस.के. राठौर, पूर्व एक्सक्यूटिव इंजीनियर, WRD

वही नदी को लेकर रिसर्च कर रहे डॉ एम.एल. नायक कहते है कि खारून नदी में तो पानी का बहाव आसपास का पानी बहकर आता है जो बारिश में बहाव काफी तेज होता है.. लेकिन समय के साथ अब नदी के आसपास के स्त्रोत ऐसे नहीं है कि बारहों महीना पानी देते रहे.. इसके चलते नदी सूख जाती है.. कुछ स्थानों पर उद्योगों से पानी आने के कारण इसमें पानी मिल जाता है.. बीएसपी का पानी इसमें मिलता है जिसके चलते इसमें पानी रहता है.

बाइट- डॉ. एम.एल. नायक, रिटायर्ड प्रोफेसर, रविवि


Conclusion:फाइनल वीओ-
ऐसे तमाम पहलुओ पर चर्चा करने के बाद एक बात तो साफ हो रही है कि खारून नदी को बचाने के लिए राज्य सरकार की ओर से भले ही कई तरह के प्लान बनाए गए हो लेकिन वह भी केवल फाइलो मे ही नजर आ रहे है और कुछ जगह जो स्टेप डेम बनाए गए है वो भी बिना प्रैक्टिकल काम किए बगैर.. यही वजह है कि जंगलों में पानी को स्टोरेज करने के लिए बनाए गए स्टाप डैम में पानी ही नहीं रूक रहा है..

मयंक ठाकुर, ईटीवी भारत, रायपुर
Last Updated : Jun 27, 2019, 7:02 PM IST
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