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SPECIAL : नहीं हो रहा 'न्याय', कोरोना संकट ने बढ़ाया पेंडिंग केसों का बोझ - रायपुर न्यूज

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन के चलते अदालतों में सामान्य दिनों की तरह कामकाज नहीं हो रहा है. इससे वकीलों के मुंशी, छोटे वकील, स्टांप बेचने वाले वेंडर की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ रहा है, लिहाजा पेंडिग केसों का बोझ लगातार बढ़ रहा है.

Burden of pending cases in chhattisgarh
पेंडिंग केसों का बोझ
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Published : May 25, 2020, 8:44 PM IST

रायपुर : कोरोना महामारी की वजह से सभी सेक्टर के लोग दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. इसके चलते अदालतों के कामकाज भी प्रभावित हुए हैं. अदालतों में सामान्य दिनों की तरह कामकाज नहीं होने से पेंडिंग केसों का बोझ लगातार बढ़ रहा है, वहीं वकीलों के मुंशी, छोटे वकील, स्टांप बेचने वाले वेंडर की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ रहा है. वकील कहते हैं कि आगे अदालतों पर कामकाज का बोझ बढ़ना तय है.

कोरोना संकट ने बढ़ाया पेंडिंग केसों का बोझ

प्रदेश में ज्यादातर अदालतों में सामान्य दिनों में काफी भीड़ होती है, जबकि ज्यादातर शहरों में कोर्ट परिसर इतने बड़े नहीं हैं, जितने लोग रोजमर्रा में वहां पहुंचते हैं. ऐसे में इन जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना कठिन होगा. हालांकि कोर्ट में काम शुरू हुए हैं. फिलहाल कोर्ट में उस तरह की भीड़ नहीं होती है जैसी कि हुआ करती थी. इसके अलावा अदालतों में बेहद जरूरी मामलों की ही सुनवाई हो रही है.

यातायात व्यवस्था ठप

लॉकडाउन के चलते यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप है, ऐसे में दूरस्थ इलाकों से लोगों का कोर्ट पहुंचना आसान नहीं होगा, इसलिए भी मामलों की सुनवाई आगे बढ़ने की संभावना है, हालांकि हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी काम हो रहा है, लेकिन प्रदेश में बहुत सी ऐसी जगहें हैं, जहां से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करना संभव नहीं हो पाता.

पढ़ें-SPECIAL: प्लाज्मा थेरेपी ट्रायल की ओर रायपुर एम्स के बढ़ते कदम

पूर्व एडवोकेट जनरल ने जताई चिंता

ETV भारत से बातचीत करते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व एडवोकेट जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता जुगल किशोर गिल्डा ने कहा कि इस महामारी के चलते अदालतों के कामकाज पर असर पड़ा है. जिससे इस पर निर्भर कई वकील और अन्य लोग भी आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे. उन्होंने छत्तीसगढ़ बार काउंसिल से भी मांग की है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में जूनियर वकील, मुंशी, वेंडर जैसे लोगों की मदद की जाए और उन्हें आर्थिक रूप से भी सपोर्ट किया जाए. उन्होंने अपने पत्र में कुछ राज्यों का हवाला भी दिया है, जहां इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं.

'कोर्ट खोलने पर विचार किया जा रहा है'

इस विषय पर छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य किसी माध्यम से लंबित मामलों के निपटारे की कोशिश की जाएगी. हफ्ते में दो या चार दिन कोर्ट खोलने पर भी विचार किया जा रहा है'.

पढ़ें-रायपुर से घरेलू विमान सेवा शुरू, दिल्ली से आए 82 यात्री

लंबित मामलों को लेकर चिंता

वकीलों का कहना है कि लॉकडाउन ने उन लोगों की परेशानियां बढ़ा दी हैं, जिनके मामले निर्णय तक पहुंच चुके थे. कोरोना संकट की वजह से इन मामलों की सुनवाई रुक गई है. कानून के तमाम जानकार भारत में लंबित मामलों को लेकर कई मंचों पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. इसी चिंता को देखते हुए देशभर की अदालतों में ऑनलाइन केस फाइल करने और उसकी सुनवाई करने की कवायद की गई, लेकिन इसमें पूरे तरीके से सफलता मिलने में अभी वक्त लग सकता है.

कोरोना से प्रभावित हुई न्याय व्यवस्था

अप्रैल के जो आंकड़े सामने आए हैं, उनसे यह साफ है कि कोरोना महामारी ने न्यायप्रणाली को भी प्रभावित किया है. अप्रैल में भारत की अदालतों में 82 हजार 725 मामले दायर हुए, जबकि 35 हजार 169 मामलों का निपटारा किया गया. इसकी तुलना 2019 से करें, तो प्रतिमाह संख्या लगभग 14 लाख थी और केस निपटाए जाने की औसत संख्या 13 लाख से ज्यादा थी.

रायपुर : कोरोना महामारी की वजह से सभी सेक्टर के लोग दिक्कतों का सामना कर रहे हैं. इसके चलते अदालतों के कामकाज भी प्रभावित हुए हैं. अदालतों में सामान्य दिनों की तरह कामकाज नहीं होने से पेंडिंग केसों का बोझ लगातार बढ़ रहा है, वहीं वकीलों के मुंशी, छोटे वकील, स्टांप बेचने वाले वेंडर की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ रहा है. वकील कहते हैं कि आगे अदालतों पर कामकाज का बोझ बढ़ना तय है.

कोरोना संकट ने बढ़ाया पेंडिंग केसों का बोझ

प्रदेश में ज्यादातर अदालतों में सामान्य दिनों में काफी भीड़ होती है, जबकि ज्यादातर शहरों में कोर्ट परिसर इतने बड़े नहीं हैं, जितने लोग रोजमर्रा में वहां पहुंचते हैं. ऐसे में इन जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना कठिन होगा. हालांकि कोर्ट में काम शुरू हुए हैं. फिलहाल कोर्ट में उस तरह की भीड़ नहीं होती है जैसी कि हुआ करती थी. इसके अलावा अदालतों में बेहद जरूरी मामलों की ही सुनवाई हो रही है.

यातायात व्यवस्था ठप

लॉकडाउन के चलते यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप है, ऐसे में दूरस्थ इलाकों से लोगों का कोर्ट पहुंचना आसान नहीं होगा, इसलिए भी मामलों की सुनवाई आगे बढ़ने की संभावना है, हालांकि हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी काम हो रहा है, लेकिन प्रदेश में बहुत सी ऐसी जगहें हैं, जहां से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करना संभव नहीं हो पाता.

पढ़ें-SPECIAL: प्लाज्मा थेरेपी ट्रायल की ओर रायपुर एम्स के बढ़ते कदम

पूर्व एडवोकेट जनरल ने जताई चिंता

ETV भारत से बातचीत करते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व एडवोकेट जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता जुगल किशोर गिल्डा ने कहा कि इस महामारी के चलते अदालतों के कामकाज पर असर पड़ा है. जिससे इस पर निर्भर कई वकील और अन्य लोग भी आर्थिक रूप से प्रभावित होंगे. उन्होंने छत्तीसगढ़ बार काउंसिल से भी मांग की है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में जूनियर वकील, मुंशी, वेंडर जैसे लोगों की मदद की जाए और उन्हें आर्थिक रूप से भी सपोर्ट किया जाए. उन्होंने अपने पत्र में कुछ राज्यों का हवाला भी दिया है, जहां इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं.

'कोर्ट खोलने पर विचार किया जा रहा है'

इस विषय पर छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य किसी माध्यम से लंबित मामलों के निपटारे की कोशिश की जाएगी. हफ्ते में दो या चार दिन कोर्ट खोलने पर भी विचार किया जा रहा है'.

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लंबित मामलों को लेकर चिंता

वकीलों का कहना है कि लॉकडाउन ने उन लोगों की परेशानियां बढ़ा दी हैं, जिनके मामले निर्णय तक पहुंच चुके थे. कोरोना संकट की वजह से इन मामलों की सुनवाई रुक गई है. कानून के तमाम जानकार भारत में लंबित मामलों को लेकर कई मंचों पर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. इसी चिंता को देखते हुए देशभर की अदालतों में ऑनलाइन केस फाइल करने और उसकी सुनवाई करने की कवायद की गई, लेकिन इसमें पूरे तरीके से सफलता मिलने में अभी वक्त लग सकता है.

कोरोना से प्रभावित हुई न्याय व्यवस्था

अप्रैल के जो आंकड़े सामने आए हैं, उनसे यह साफ है कि कोरोना महामारी ने न्यायप्रणाली को भी प्रभावित किया है. अप्रैल में भारत की अदालतों में 82 हजार 725 मामले दायर हुए, जबकि 35 हजार 169 मामलों का निपटारा किया गया. इसकी तुलना 2019 से करें, तो प्रतिमाह संख्या लगभग 14 लाख थी और केस निपटाए जाने की औसत संख्या 13 लाख से ज्यादा थी.

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