रायपुर: कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो समाज में रहने के बाद भी सामाजिक गतिविधियों से दूर रहते हैं. इन बच्चों को न तो किसी से मिलना पसंद होता है और न ही किसी से बात करना. घर में भी ये बच्चे कोने में बैठ कर एक अलग ही दुनिया में खोए रहते हैं. नाखूनों को रगड़ना, हाथों को बार-बार हिलाना, सिर पर हाथ फेरना इनकी आदत बन जाती है. लेकिन ये बच्चों की आदत नहीं एक बीमारी है, जिसका नाम ऑटिज्म है. यह बीमारी बच्चों में सबसे ज्यादा देखी जाती है. इसे फिजिकल एक्टिविटी से ही काफी हद तक ठीक किया जा सकता है. वर्ल्ड ऑटिज्म डे पर ईटीवी भारत की टीम ने ऑटिज्म स्पेशलिस्ट डॉक्टर विनय शर्मा से इसके लक्षण और इलाक के तौर तरीकों को लेकर बातचीत की.
नजर नहीं मिला पाते ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे: डॉ विनय शर्मा ने बताया कि "इस बीमारी से पीड़ित बच्चा अपने आप में ही रहेगा. उसे किसी से कोई मतलब नहीं होगा. ऐसे बच्चे आई कांटेक्ट नहीं बना पाते हैं. यदि आप इनसे आई कांटेक्ट बनाएंगे तो यह नीचे की तरफ या आजू-बाजू देखने लगते हैं. ऐसे बच्चों को कोई एक चीज या खिलौना बहुत ज्यादा पसंद होता है और ये उसके साथ दिन रात रहना पसंद करते हैं."
सामान्य बच्चों के मुकाबले देर में बोलना करते हैं शुरू: सामान्य तौर पर एक से 2 साल में बच्चे बोलना शुरू कर देते हैं, लेकिन बच्चे आपसे इशारों में ही बात करते हैं और बहुत देर में बोलना शुरू करते हैं. इस बीमारी के होने का अभी तक कोई प्रमाणित कारण साइंस खोज नहीं पाया है. फिर भी इस ओर रिसर्च जारी है.
बच्चों को कोरोना से बचाने इन बातों का रखें विशेष ध्यान
गर्भावस्था के दौरान तनाव भी है एक वजह: डॉ विनय शर्मा के मुताबिक "केस स्टडी करने पर पता चला है कि प्रेग्नेंसी के दौरान यहि मां काफी ज्यादा तनाव लेती है या किसी तरह की मेडिसिन या नशीले पदार्थ का सेवन करती है तो पैदा होने वाला बच्चा ऑटिज्म से ग्रसित हो सकता है. इसके इलाज के लिए कोई ऑपरेशन या दवा नहीं है. इस बीमारी का इलाज केवल थेरेपी के जरिए ही किया जाता है."
ऑटिज्म में कारगर हैं ये थेरेपी: स्पेशल एजुकेशन थेरेपी, स्पीच थेरेपी, एक्यूप्रेशर थेरेपी और गेमिंग थेरेपी को हॉस्पिटल के साथ-साथ घरों में भी पेरेंट्स करा सकते हैं. इसके जरिए 70 फीसदी तक इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है. राजधानी रायपुर के जिला अस्पताल में ऑटिज्म के लिए एक अलग से विभाग का निर्माण साल 2015 में किया गया है. प्राइवेट सेक्टर में ऑटिज्म थेरेपी बहुत महंगी होने से हर परिवार के लिए इसका खर्च उठा पाना मुश्किल है.