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Padma Shri Usha Barle: कभी पिता ने गायकी छुड़वाने कुएं में धकेला था, आज दुनिया में पंडवानी का परचम लहरा रही पद्मश्री उषा बारले

Padma Shri Usha Barle छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति पंडवानी के प्रचार प्रसार में तीजनबाई के बाद दूसरा नाम उषा बारले का आता है. उषा बारले एक अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका हैं. छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रति उनके समर्पण और अद्भुत कला के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया.

Padma Shri Usha Barle
पद्मश्री उषा बारले
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Published : Jul 17, 2023, 10:26 AM IST

Updated : Jul 17, 2023, 10:35 AM IST

अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका उषा बारले

रायपुर: उषा बारले का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. पंडवानी के प्रचार-प्रसार से दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका के रूप उन्होंने मुकाम हासिल किया है. उषा बारले को पंडवानी गायिका के तौर पर पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. अपनी गुरु और प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजनबाई से प्रशिक्षण लेकर उषा बारले आज देश और विदेश में छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति पंडवानी का प्रचार-प्रसार कर रहीं हैं.

उषा बारले का पारिवारिक संघर्ष: उषा बारले का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता खाम सिंह जांगडे उषा बारले की गायकी के खिलाफ थे. उनके पिता मानते थे कि लड़कियों को गाना बजाना, बाहर जाकर प्रदर्शन करना शोभा नहीं देता है. इस वजह से एक बार उषा बारले के पिता ने उन्हें बचपन में कुएं में भी धकेल दिया था. ताकी भय में आकर उषा गाना और नाचना छोड़ दे. लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था.

रात भर पिता के शव के आगे गाया था पंडवानी: उषा बारले ने ईटीवी भारत को बताया कि मैं जब 14 वर्ष की थी तब मेरे पिताजी का देहांत हो गया. मैं रात भर अपने पिताजी के शव के सामने पंडवानी गाती रही, भजन गाती रही और रोती रही. क्योंकि मेरी मां उस वक्त घर पर नहीं थी. मेरे पिता अचानक चले गए और घर में हम सब बच्चे ही थे. जिसके बाद मेरी माता आई और पिता का दाह संस्कार किया गया.

फल सब्जी बेचकर चलाया गुजारा: करीब ढाई वर्ष में उषा की शादी 5 वर्ष के अमरदास बारले से कर दिया गया. इस बीच 14 साल की उम्र में उषा के पिता का देहांत हो गया. जिसके बाद उषा की मां ने 15 साल की उम्र मे उषा का गौना कर दिया. शादी के बाद उषा की अर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी, जिसे मजबूत बनाने के लिए उषा फल और सब्जियां बेचने का काम करती थी. इस दौरान उषा के पति ने आईटीआई की डिग्री ली और बीएसपी में नौकरी की. इसके बाद उषा की आर्थिक स्थिति कुछ हद तक ठीक हुई. लेकिन फल बेचने का काम उषा ने बंद नहीं किया था.

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गुरु तीजनबाई से ली पंडवानी की शिक्षा: इस बीच उषा बारले की मुलाकात प्रसिद्धा पंडवानी गायिका तीजनबाई से हुई. उषा बारले ने तीजन बाई को अपनी गुरु बना लिया और पंडवानी सीखना शुरू किया. स्थानीय फिल्मों, ओपन मंच में उषा बारले लगातार अपना पंडवानी का प्रदर्शन करती रही. इसमें उषा बारले का साथ उनके पति भी अक्सर दिया करते थे.

शादी के बाद मेंरे पति ने इस कला में पूरा पूरा समर्थन किया. मेरे पति भी आज मेरे साथ विदेशों में जाकर पंथी गीत गाते हैं. मुझे पंडवानी के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी गीत, मिनीमाता गीत, भजन, कर्मा, ददरिया, सुआ गीत सभी आता है. पद्मश्री उषा बारले, पंडवानी गायिका

छत्तीसगढ़ी संस्कृति को दुनिया में फैला रहा बारले दंपती : उषा बारले की चर्चा राज्य से देश और देश से विदेशों तक होने लगी. साल 2007-08 में उषा बारले और उनके पति अमरदास बारले ने विदेशों में अपनी पंडवानी की प्रस्तुति दी. काफी संघर्षों का सामना करने के बाद जाकर उषा बारले ने खुद को अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका के रूप में स्थापित किया.

अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका उषा बारले

रायपुर: उषा बारले का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है. पंडवानी के प्रचार-प्रसार से दुनिया में अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका के रूप उन्होंने मुकाम हासिल किया है. उषा बारले को पंडवानी गायिका के तौर पर पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. अपनी गुरु और प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजनबाई से प्रशिक्षण लेकर उषा बारले आज देश और विदेश में छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति पंडवानी का प्रचार-प्रसार कर रहीं हैं.

उषा बारले का पारिवारिक संघर्ष: उषा बारले का जन्म एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता खाम सिंह जांगडे उषा बारले की गायकी के खिलाफ थे. उनके पिता मानते थे कि लड़कियों को गाना बजाना, बाहर जाकर प्रदर्शन करना शोभा नहीं देता है. इस वजह से एक बार उषा बारले के पिता ने उन्हें बचपन में कुएं में भी धकेल दिया था. ताकी भय में आकर उषा गाना और नाचना छोड़ दे. लेकिन नियती को कुछ और मंजूर था.

रात भर पिता के शव के आगे गाया था पंडवानी: उषा बारले ने ईटीवी भारत को बताया कि मैं जब 14 वर्ष की थी तब मेरे पिताजी का देहांत हो गया. मैं रात भर अपने पिताजी के शव के सामने पंडवानी गाती रही, भजन गाती रही और रोती रही. क्योंकि मेरी मां उस वक्त घर पर नहीं थी. मेरे पिता अचानक चले गए और घर में हम सब बच्चे ही थे. जिसके बाद मेरी माता आई और पिता का दाह संस्कार किया गया.

फल सब्जी बेचकर चलाया गुजारा: करीब ढाई वर्ष में उषा की शादी 5 वर्ष के अमरदास बारले से कर दिया गया. इस बीच 14 साल की उम्र में उषा के पिता का देहांत हो गया. जिसके बाद उषा की मां ने 15 साल की उम्र मे उषा का गौना कर दिया. शादी के बाद उषा की अर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी, जिसे मजबूत बनाने के लिए उषा फल और सब्जियां बेचने का काम करती थी. इस दौरान उषा के पति ने आईटीआई की डिग्री ली और बीएसपी में नौकरी की. इसके बाद उषा की आर्थिक स्थिति कुछ हद तक ठीक हुई. लेकिन फल बेचने का काम उषा ने बंद नहीं किया था.

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गुरु तीजनबाई से ली पंडवानी की शिक्षा: इस बीच उषा बारले की मुलाकात प्रसिद्धा पंडवानी गायिका तीजनबाई से हुई. उषा बारले ने तीजन बाई को अपनी गुरु बना लिया और पंडवानी सीखना शुरू किया. स्थानीय फिल्मों, ओपन मंच में उषा बारले लगातार अपना पंडवानी का प्रदर्शन करती रही. इसमें उषा बारले का साथ उनके पति भी अक्सर दिया करते थे.

शादी के बाद मेंरे पति ने इस कला में पूरा पूरा समर्थन किया. मेरे पति भी आज मेरे साथ विदेशों में जाकर पंथी गीत गाते हैं. मुझे पंडवानी के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी गीत, मिनीमाता गीत, भजन, कर्मा, ददरिया, सुआ गीत सभी आता है. पद्मश्री उषा बारले, पंडवानी गायिका

छत्तीसगढ़ी संस्कृति को दुनिया में फैला रहा बारले दंपती : उषा बारले की चर्चा राज्य से देश और देश से विदेशों तक होने लगी. साल 2007-08 में उषा बारले और उनके पति अमरदास बारले ने विदेशों में अपनी पंडवानी की प्रस्तुति दी. काफी संघर्षों का सामना करने के बाद जाकर उषा बारले ने खुद को अंतरराष्ट्रीय पंडवानी गायिका के रूप में स्थापित किया.

Last Updated : Jul 17, 2023, 10:35 AM IST
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