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Osho Enlightenment Day: प्रोफेसर रजनीश ऐसे बने ओशो, रायपुर से रहा है गहरा नाता

बीसवीं सदी के क्रांतिकारी संत ओशो रजनीश को मानने वाले अनुयाईयों के लिए 21 मार्च दिन बेहद खास होता है. क्योंकि 21 मार्च का दिन संबोधि दिवस के रूप में मनाया जाता है. 21 मार्च 1953 को रजनीश चन्द्र मोहन को संबोधि प्राप्त हुई थी. संबोधि दिवस के मौके पर हम आपको रजनीश ओशो के ऐसे पहलुओं के बारे में बताने जा रहे हैं. जिस वक्त वे रायपुर के दूधाधारी राजेश्री महंत वैष्णवदास संस्कृत महाविद्यालय में प्रोफेसर हुआ करते थे.

osho enlightenment day
ओशो सम्बोधि दिवस
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Published : Mar 21, 2023, 9:21 AM IST

ओशो सम्बोधि दिवस

रायपुर: रजनीश ओशो 1957 के दौरान रायपुर के डीएसवी संस्कृत महाविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाए दे रहे थे. उस वक्त उन्होंने संन्यास नहीं लिया था. कॉलेज में उन्हें आरसी मोहन (रजनीश चंद्र मोहन) के नाम से लोग जानते थे. रायपुर में प्रोफेसर के रूप में काम करने के बाद उनका तबादला जबलपुर कर दिया गया.

प्रोफेसर रजनीश से आचार्य रजनीश ओशो: संस्कृत महाविद्यालय के करीब स्थित साइंस कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक रमेश अनुपम बताते हैं "रजनीश चन्द्र मोहन 1957 में संस्कृत महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह ज्यादा लोगों से मेल मुलाकात नहीं करते थे. वे हमेशा सफेद कपड़े पहनते थे. अधिकतर समय उनका पढ़ने लिखने और संस्कृत महाविद्यालय के परिसर में ही बीतता था. मैंन सुना है कि लोगों को रजनीश से बात करने में थोड़ा डर लगता था. क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही बहुत आकर्षक था. पढ़ने में शुरू से ही उनकी अभिरुचि रही है. वे घंटों दर्शन शास्त्र की किताबें पढ़ा करते थे.

प्राध्यापक के रूप में प्रारंभिक जीवन: रायपुर में प्राध्यापक के रूप में रजनीश, ओशो आचार्य रजनीश के रूप में बदल रहे थे. ओशो ने सभी विषयों पर व्याख्या दी. भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व को अपने प्रवचनो से आकर्षित करने लगे. ओशो ने कबीर, गौतम बुद्ध और महावीर पर वैज्ञानिक और आधुनिक तरीके से व्याख्या की और समाज के सामने नए कबीर, नए महावीर और नए गौतम बुद्ध को खड़े कर दिया."

पूर्व प्राध्यापक रमेश अनुपम ने बताया कि "आज से पहले कभी किसी ने इस तरह से इन महापुरुषों के बारे में कभी नहीं सोचा था. ओशो ने विद्रोह, क्रांति, विज्ञान के अलावा सभी विषयों को अपने प्रवचन में समाहित किया है. आचार्य रजनीश ओशो का दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में जो अवदान है. मुझे नहीं लगता है कि उनके जैसा कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति या विद्वान भारतीय दर्शन में कभी हुआ है."


यहां रजनीश को प्राप्त हुई थी संबोधी: ओशो धारा छत्तीसगढ़ के कोऑर्डिनेटर संतोष चंद्र ने बताया कि "आचार्य ओशो को 21 मार्च 1953 के दिन जबलपुर के भंवर लाल पार्क में स्थित मौलश्री वृक्ष के नीचे संबोधी ज्ञान मिला था. आज भी उस पार्क में उस स्थान को संरक्षित करके रखा गया है. संबोधि दिवस हम सभी के लिए बेहद खास है. इस दिवस को देशभर के अनुयाई धूमधाम से मनाते हैं."


इंटरनेशल कार्यक्रम का आयोजन: "संबोधि दिवस के मौके पर 21 मार्च को देश और विदेश में कार्यक्रम आयोजित किए गए है. विशेष रूप से मंगलवार को इंटरनेशनल वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. जिसमें ओशो धारा के संस्थापक समर्थ गुरु सिद्धार्थ औलिया, ओशो संबोधी से समाधि, धर्म और विज्ञान, आध्यात्म पर प्रवचन देंगे. जिसमें दुनिया भर के अनुयाई भाग लेंगे."

यह भी पढ़ें: Daily Love Horoscope 21 March :कैसा बीतेगा आज का दिन, जानिए अपना आज का राशिफल

क्या है संबोधि: बौद्ध धर्म में बुद्धत्व को संबोधी भी कहा जाता है. संबोधी को मोक्ष भी कहा जाता है. रजनीश ओशो को ज्ञान प्राप्ति 1953 में हुई. अंग्रेजी में संबोधी को ENLIGHTENMENT कहते हैं.

ओशो सम्बोधि दिवस

रायपुर: रजनीश ओशो 1957 के दौरान रायपुर के डीएसवी संस्कृत महाविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाए दे रहे थे. उस वक्त उन्होंने संन्यास नहीं लिया था. कॉलेज में उन्हें आरसी मोहन (रजनीश चंद्र मोहन) के नाम से लोग जानते थे. रायपुर में प्रोफेसर के रूप में काम करने के बाद उनका तबादला जबलपुर कर दिया गया.

प्रोफेसर रजनीश से आचार्य रजनीश ओशो: संस्कृत महाविद्यालय के करीब स्थित साइंस कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक रमेश अनुपम बताते हैं "रजनीश चन्द्र मोहन 1957 में संस्कृत महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे. उनके बारे में कहा जाता है कि वह ज्यादा लोगों से मेल मुलाकात नहीं करते थे. वे हमेशा सफेद कपड़े पहनते थे. अधिकतर समय उनका पढ़ने लिखने और संस्कृत महाविद्यालय के परिसर में ही बीतता था. मैंन सुना है कि लोगों को रजनीश से बात करने में थोड़ा डर लगता था. क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही बहुत आकर्षक था. पढ़ने में शुरू से ही उनकी अभिरुचि रही है. वे घंटों दर्शन शास्त्र की किताबें पढ़ा करते थे.

प्राध्यापक के रूप में प्रारंभिक जीवन: रायपुर में प्राध्यापक के रूप में रजनीश, ओशो आचार्य रजनीश के रूप में बदल रहे थे. ओशो ने सभी विषयों पर व्याख्या दी. भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व को अपने प्रवचनो से आकर्षित करने लगे. ओशो ने कबीर, गौतम बुद्ध और महावीर पर वैज्ञानिक और आधुनिक तरीके से व्याख्या की और समाज के सामने नए कबीर, नए महावीर और नए गौतम बुद्ध को खड़े कर दिया."

पूर्व प्राध्यापक रमेश अनुपम ने बताया कि "आज से पहले कभी किसी ने इस तरह से इन महापुरुषों के बारे में कभी नहीं सोचा था. ओशो ने विद्रोह, क्रांति, विज्ञान के अलावा सभी विषयों को अपने प्रवचन में समाहित किया है. आचार्य रजनीश ओशो का दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में जो अवदान है. मुझे नहीं लगता है कि उनके जैसा कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति या विद्वान भारतीय दर्शन में कभी हुआ है."


यहां रजनीश को प्राप्त हुई थी संबोधी: ओशो धारा छत्तीसगढ़ के कोऑर्डिनेटर संतोष चंद्र ने बताया कि "आचार्य ओशो को 21 मार्च 1953 के दिन जबलपुर के भंवर लाल पार्क में स्थित मौलश्री वृक्ष के नीचे संबोधी ज्ञान मिला था. आज भी उस पार्क में उस स्थान को संरक्षित करके रखा गया है. संबोधि दिवस हम सभी के लिए बेहद खास है. इस दिवस को देशभर के अनुयाई धूमधाम से मनाते हैं."


इंटरनेशल कार्यक्रम का आयोजन: "संबोधि दिवस के मौके पर 21 मार्च को देश और विदेश में कार्यक्रम आयोजित किए गए है. विशेष रूप से मंगलवार को इंटरनेशनल वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. जिसमें ओशो धारा के संस्थापक समर्थ गुरु सिद्धार्थ औलिया, ओशो संबोधी से समाधि, धर्म और विज्ञान, आध्यात्म पर प्रवचन देंगे. जिसमें दुनिया भर के अनुयाई भाग लेंगे."

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क्या है संबोधि: बौद्ध धर्म में बुद्धत्व को संबोधी भी कहा जाता है. संबोधी को मोक्ष भी कहा जाता है. रजनीश ओशो को ज्ञान प्राप्ति 1953 में हुई. अंग्रेजी में संबोधी को ENLIGHTENMENT कहते हैं.

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