ETV Bharat / state

15 सालों से हॉस्पिटलिटी सेक्टर में अपना लोहा मनवा रहीं हैं नाजिमा खान - Maximum staff female worker in hospital

8 मार्च को विश्वभर में महिलाओं के सम्मान के लिए महिला दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको महासमुंद के एक छोटे से गांव से निकलकर सालों से एक पूरा अस्पताल संभालने वाली महिला शक्ति से मिलवा रहे हैं. नाजिमा खान ने अपनी मेहनत के दम पर अलग मुकाम हासिल किया है.

hospital-management-for-fifteen-years-in-raipur
नाजिमा खान
author img

By

Published : Mar 7, 2021, 8:12 AM IST

रायपुर: विश्व महिला दिवस महिलाओं के सम्मान और स्वाभिमान का दिन है. 8 मार्च को विश्वभर में महिलाओं के सम्मान के लिए महिला दिवस मनाया जाता है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि महिलाओं ने आज हर सेक्टर में अपनी भागीदारी को साबित किया है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको महासमुंद के एक छोटे से गांव से निकलकर सालों से एक पूरा अस्पताल संभालने वाली महिला शक्ति से मिलवा रहे हैं. नाजिमा खान ने अपनी मेहनत के दम पर अलग मुकाम हासिल किया है. आज वह खुद महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत भी कर रहीं हैं.

हॉस्पिटलिटी सेक्टर में अपना लोहा मनवा रहीं हैं नाजिमा खान

नाजिमा खान ने महासमुंद के एक छोटे से गांव से निकलकर सालों पहले पुणे और मुंबई में रहकर पढाई की है. हॉस्पिटलिटी सेक्टर में पिछले 20 साल से काम कर रहीं हैं. 15 सालो से वे रायपुर के एक हॉस्पिटल के मैनेजमेंट को लीड कर रहीं हैं. नाजिमा खान की राह भी आसान नहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत, विश्वास और लगन के जरिए ये मुकाम हासिल किया है. नाजिमा खान ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बेबाकी से अपनी बात रखी है. वो कहती हैं कि औरतों के प्रति सम्मान और प्यार प्रकट करना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. महिलाओं को समाज आगे बढ़ने नहीं देता है. लेकिन महिलाओं को लगातार आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए.

Womens Day: इन महिलाओं के इशारे पर उड़ते और उतरते हैं विमान

हमेशा रहा समाज का दबाव, फिर भी हुए कामयाब

नाजिमा खान ने बताया कि जब मैंने जॉब शुरू की, जब मैं बाहर पढ़ने गई तब मुझे लेकर कई तरह की बातें होती थी. लेकिन मेरे पिता ने शुरू से मुझ पर भरोसा जताया. उन्होंने बताया कि, जिस जगह से मैं तालुकात रखती हूं उस माहौल से निकालकर बड़े शहर पुणे मुंबई में पढ़ना और हॉस्टल में रहना मुश्किल था. हमारे पड़ोस के लोगों ने भी इसका काफी विरोध किया. उनका कहना था कि लड़की को अकेले बाहर कैसे भेज सकते हैं. लड़कियों को बाहर क्यों भेज रहे हैं. फिर भी मैंने छत्तीसगढ़ से बाहर जाकर दूसरे शहरों में पढ़ाई की है. फिर मैने पढ़ाई की जॉब भी किया. दूसरे जगह पर काम किया तब मेरे परिवार ने मेरा पूरा सपोर्ट किया. इस दौरान समाज का दबाव लगातार बना हुआ था.

नाजिमा ने बताया कि जब वह डिग्री लेकर वापस लौटी तो भी समाज ने काफी विरोध किया. समाज से दबाव भी बनना शुरू हुआ उनकी की शादी कराओ. इसके बाद हॉस्पिटल में जॉब करने के दौरान भी कई तरह की बातें सुननी पड़ी. हॉस्पिटल में नाइट शिफ्ट भी होती है और नाइट शिफ्ट में जाना समाज मंजूर नहीं था. तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती थी. नाइट ड्यूटी से लौटने के बाद भी काफी तरह की चीजें फेस करनी पड़ी हैं. शुरुआती दौर में जॉब करने के दौरान इस माहौल को मैनेज करना काफी बड़ा चैलेंज होता है.

Woman's Day: गोल्डन गर्ल ने आंखों की रोशनी खोई, लेकिन गोल्ड पर लगाया निशाना

हर वक्त परिवार ने किया सपोर्ट

नाजिमा खान ने कहा कि मैं जिस समाज से हूं वहां महिलाओं का घर की दहलीज पार करना भी मुश्किल है. लड़कियों को दुपट्टा रखकर ही रहने की परमिशन है. कोई आदमी सामने हो तो ऊंची आवाज में बात नहीं करने की सीख दी जाती है. लेकिन हमारे परिवार ने हमे कभी बॉउंडेशन में नहीं रखा. कभी बंदिशों में बांधकर नहीं रखा. सोसाइटी की बहुत सारी फैमिली है जिन्हें मैं हमेशा कहती हूं कि जो लोग आपको तमाम तरह की बातें कह रहे हैं वह आपको कभी कुछ नहीं देंगे, ना ही कभी देखने आएंगे कि आप कैसे रह रहे हैं.

नाजिमा कहती हैं कि महिलाओं को काम करने में काफी तरह की परेशानियां होती हैं. जब आप जॉब कर रहे हैं, तो भी फैमिली को आपको ही देखना होता है. पति, परिवार और बच्चों की रिस्पांसिबिलिटी भी आप पर होती है. लेकिन महिलाओं में ये काबिलियत होती है कि वो सारी चीजें मैनेज करते हुए काम करती हैं. मैंने यह सारी चीजें फेस करते हुए 15 सालों से हॉस्पिटल में मैनेजमेंट संभाला है.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर WALK FOR CAUSE कार्यक्रम का आयोजन

महिलाओं को आगे बढ़ाना मुख्य उद्देश्य

नाजिमा कहती हैं कि फिलहाल मैं महिलाओं को आगे बढ़ाना चाहती हुं. हमारे ऑर्गनाइजेशन में मैंने मैक्सिमम स्टॉफ़ फीमेल वर्कर को ही रखा है. फीमेल से अच्छा मैनेजमेंट कोई दूसरा नहीं कर सकता है. उनको आगे बढ़ने में कई तरह की परेशानियां आती हैं, लेकिन हर चुनौती को पार कर महिलाएं कामयाब होतीं हैं. मैं खुद 15 साल से हॉस्पिटल में मैनेजमेंट संभाल रही हूं.

रायपुर: विश्व महिला दिवस महिलाओं के सम्मान और स्वाभिमान का दिन है. 8 मार्च को विश्वभर में महिलाओं के सम्मान के लिए महिला दिवस मनाया जाता है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि महिलाओं ने आज हर सेक्टर में अपनी भागीदारी को साबित किया है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हम आपको महासमुंद के एक छोटे से गांव से निकलकर सालों से एक पूरा अस्पताल संभालने वाली महिला शक्ति से मिलवा रहे हैं. नाजिमा खान ने अपनी मेहनत के दम पर अलग मुकाम हासिल किया है. आज वह खुद महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए मेहनत भी कर रहीं हैं.

हॉस्पिटलिटी सेक्टर में अपना लोहा मनवा रहीं हैं नाजिमा खान

नाजिमा खान ने महासमुंद के एक छोटे से गांव से निकलकर सालों पहले पुणे और मुंबई में रहकर पढाई की है. हॉस्पिटलिटी सेक्टर में पिछले 20 साल से काम कर रहीं हैं. 15 सालो से वे रायपुर के एक हॉस्पिटल के मैनेजमेंट को लीड कर रहीं हैं. नाजिमा खान की राह भी आसान नहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत, विश्वास और लगन के जरिए ये मुकाम हासिल किया है. नाजिमा खान ने ईटीवी भारत से बात करते हुए बेबाकी से अपनी बात रखी है. वो कहती हैं कि औरतों के प्रति सम्मान और प्यार प्रकट करना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है. महिलाओं को समाज आगे बढ़ने नहीं देता है. लेकिन महिलाओं को लगातार आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए.

Womens Day: इन महिलाओं के इशारे पर उड़ते और उतरते हैं विमान

हमेशा रहा समाज का दबाव, फिर भी हुए कामयाब

नाजिमा खान ने बताया कि जब मैंने जॉब शुरू की, जब मैं बाहर पढ़ने गई तब मुझे लेकर कई तरह की बातें होती थी. लेकिन मेरे पिता ने शुरू से मुझ पर भरोसा जताया. उन्होंने बताया कि, जिस जगह से मैं तालुकात रखती हूं उस माहौल से निकालकर बड़े शहर पुणे मुंबई में पढ़ना और हॉस्टल में रहना मुश्किल था. हमारे पड़ोस के लोगों ने भी इसका काफी विरोध किया. उनका कहना था कि लड़की को अकेले बाहर कैसे भेज सकते हैं. लड़कियों को बाहर क्यों भेज रहे हैं. फिर भी मैंने छत्तीसगढ़ से बाहर जाकर दूसरे शहरों में पढ़ाई की है. फिर मैने पढ़ाई की जॉब भी किया. दूसरे जगह पर काम किया तब मेरे परिवार ने मेरा पूरा सपोर्ट किया. इस दौरान समाज का दबाव लगातार बना हुआ था.

नाजिमा ने बताया कि जब वह डिग्री लेकर वापस लौटी तो भी समाज ने काफी विरोध किया. समाज से दबाव भी बनना शुरू हुआ उनकी की शादी कराओ. इसके बाद हॉस्पिटल में जॉब करने के दौरान भी कई तरह की बातें सुननी पड़ी. हॉस्पिटल में नाइट शिफ्ट भी होती है और नाइट शिफ्ट में जाना समाज मंजूर नहीं था. तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती थी. नाइट ड्यूटी से लौटने के बाद भी काफी तरह की चीजें फेस करनी पड़ी हैं. शुरुआती दौर में जॉब करने के दौरान इस माहौल को मैनेज करना काफी बड़ा चैलेंज होता है.

Woman's Day: गोल्डन गर्ल ने आंखों की रोशनी खोई, लेकिन गोल्ड पर लगाया निशाना

हर वक्त परिवार ने किया सपोर्ट

नाजिमा खान ने कहा कि मैं जिस समाज से हूं वहां महिलाओं का घर की दहलीज पार करना भी मुश्किल है. लड़कियों को दुपट्टा रखकर ही रहने की परमिशन है. कोई आदमी सामने हो तो ऊंची आवाज में बात नहीं करने की सीख दी जाती है. लेकिन हमारे परिवार ने हमे कभी बॉउंडेशन में नहीं रखा. कभी बंदिशों में बांधकर नहीं रखा. सोसाइटी की बहुत सारी फैमिली है जिन्हें मैं हमेशा कहती हूं कि जो लोग आपको तमाम तरह की बातें कह रहे हैं वह आपको कभी कुछ नहीं देंगे, ना ही कभी देखने आएंगे कि आप कैसे रह रहे हैं.

नाजिमा कहती हैं कि महिलाओं को काम करने में काफी तरह की परेशानियां होती हैं. जब आप जॉब कर रहे हैं, तो भी फैमिली को आपको ही देखना होता है. पति, परिवार और बच्चों की रिस्पांसिबिलिटी भी आप पर होती है. लेकिन महिलाओं में ये काबिलियत होती है कि वो सारी चीजें मैनेज करते हुए काम करती हैं. मैंने यह सारी चीजें फेस करते हुए 15 सालों से हॉस्पिटल में मैनेजमेंट संभाला है.

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर WALK FOR CAUSE कार्यक्रम का आयोजन

महिलाओं को आगे बढ़ाना मुख्य उद्देश्य

नाजिमा कहती हैं कि फिलहाल मैं महिलाओं को आगे बढ़ाना चाहती हुं. हमारे ऑर्गनाइजेशन में मैंने मैक्सिमम स्टॉफ़ फीमेल वर्कर को ही रखा है. फीमेल से अच्छा मैनेजमेंट कोई दूसरा नहीं कर सकता है. उनको आगे बढ़ने में कई तरह की परेशानियां आती हैं, लेकिन हर चुनौती को पार कर महिलाएं कामयाब होतीं हैं. मैं खुद 15 साल से हॉस्पिटल में मैनेजमेंट संभाल रही हूं.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.