रायपुर: बस्तर को 'लाल आतंक' गढ़ माना जाता है. अबूझमाड़ के जंगल से लेकर जिले के अंदरूनी इलाके में नक्सलियों ने अपनी पैठ जमा रखी है. सरकार और सुरक्षाबलों की ओर से समय-समय पर ऑपरेशन चलाकर नक्सलियों को निशाना बनाया जाता है. इसके बाद भी नक्सल समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.
हाल के दिनों में नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से जवानों का मुकाबला करते देखे गए हैं अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर लाल आतंक के आंकाओं के पास काले कारनामों को संचालित करने के लिए फंड कहा से आता है. ETV भारत की पड़ताल में पता लगा कि लूट और ठेकेदारों से वसूली तो नक्सलियों के आमदनी का एक छोटा का हिस्सा आता है. इनकी असली आय का जरिया तो कुछ और ही है. नक्सली दहशत के साथ ही गांजे की खेती कर छत्तीसगढ़ को खोखला करने की साजिश रच रहे हैं.
दूसरे प्रदेशों में भी होती है सप्लाई !
जानकार बताते हैं कि नक्सलियों की क्षेत्र दक्षिण बस्तर के प्रभाव वाले क्षेत्र ओर ओडिशा के मलकानगिरी में गांजे की खेती करवाई जाती है. इसके बाद इन नशीली पत्तियों को छत्तीसगढ़ में खपाए जाने के साथ ही इसकी खेप को दूसरे प्रदेशों तक भी पहुंचाया जाता है.
आंकड़ों के जरिए गणित समझने की कोशिश करते हैं-
- साल 2015 से जून 2019 के बीच बस्तर संभाग में दर्ज किए गए 395 मामले.
- 2015 से 2019 के बीच कुल 38 हजार किलो गांजा जब्त किया गया.
- जब्त गांजे का बाजार मूल्य 40 करोड़ रुपये आंका गया.
- दोनों राज्यों ने नहीं उठाए कोई कदम
बता दें कि अभी तक गांजे की तस्करी रोकने के लिए दोनों राज्यों की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. गांजे की तस्करी के लिए ज्यादातर सड़क मार्ग का प्रयोग किया जाता है. इस मार्ग से निजी वाहन, ट्रक और बस के जरिए गांजे की खेप को दूसरे राज्यों तक पहुंचाया जाता है.
'गांजा तस्करी नक्सलियों की आय का प्रमुख साधन'
वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर का कहना की गांजे की खेती और उसकी तस्करी भी नक्सलियों की आय का प्रमुख साधन है. उनका तो यहां तक दावा है कि 'प्रदेश में गांजा ओडिशा से नहीं लाया जाता बल्कि नक्सल प्रभाव वाले दक्षिण बस्तर क्षेत्र में ही इसकी खेती कराई जाती है. पुसदकर ने कहा कि अगर सरकार की ओर से गांजे की खेती और तस्करी रोकने के लिए पहल की जाए तो नक्सलियों की कमर तोड़ने में वह कारगर साबित हो सकती है.
वहीं पुलिस भी इस बात से इंकार नहीं कर रही है कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बॉर्डर पर नक्सली गांजे की खेती करते हैं. वहीं जब इस मामले में हमने सूबे में पुलिस के मुखिया डीएम अवस्थी से बात की तो उनका कहना था कि, गांजे के साथ-साथ नक्सलियों के पास आय के कई दूसरे साधन भी हैं.
नक्सल ऑपरेशन डीआईजी ने भी मानी बात
वहीं नक्सल ऑपरेशन डीआईजी सुंदर राज पी भी मानते हैं कि छत्तीसगढ़ उड़ीसा बॉर्डर पर नक्सलियों द्वारा गांजे की खेती की जाती है और फिर उसका परिवहन किया जाता है इसे रोकने के लिए लगातार सुरक्षाकर्मी और पुलिस विभाग की ओर से कार्रवाई की जाती है.
ओडिशा के रास्ते छत्तीसगढ़ लाए जा रहे गांजे के परिवहन को रोके जाने पर जब परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि 'गांजे की तस्करी रोकना गृह विभाग का काम है. परिवहन विभाग का काम गाड़ियों की फिटनेस देखना है. रजिस्ट्रेशन है या नहीं, वाहन के मालिक ने टैक्स चुकाया है कि नहीं लेकिन अगर इस तरह अगर कोई जानकारी आएगी तो आने वाले समय में उचित निर्णय लिया जाएगा'.
ETV भारत की पड़ताल में यह बात निकलकर सामने आई कि गांजा तस्करी रोकने को लेकर न तो कोई कदम उठाए गए और न ही इस पर किसी भी तरह का ध्यान नहीं रखा गया. हालांकि बीच-बीच में पुलिस विभाग की ओर से कार्रवाई जरूर की जाती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि नशे के सामान की तस्करी करने वाली बड़ी मछलियां कब खाकी के जाल में फंसेंगी.