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SPECIAL: नक्सलियों की भर्ती थमी ! सरकार-विपक्ष में शुरू हुई श्रेय लेने की राजनीति

छतीसगढ़ में नक्सलियों को लेकर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. एक तरफ सरकार अपने विकासकार्यों का हवाला देकर नक्सल मूवमेंट में कमी का राग आलाप रही हैं तो वहीं दूसरी ओर बीजेपी केंद्र की नीतियों का गुणगान कर रही हैं.

Naxalite in Chhattisgarh
नक्सलियों की भर्ती पर राजनीति
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Published : Oct 3, 2020, 11:02 PM IST

Updated : Oct 4, 2020, 10:44 AM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ नक्सलियों के लिए पनाहगाह बनता जा रहा है. यहां आए दिन नक्सली बड़ी-बड़ी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. लेकिन इसके बाद भी पहले की सरकार और वर्तमान सरकार अब तक इन पर रोक लगाने में नाकाम रही है. अब सरकार का दावा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तेजी से विकास कार्य किए जा रहे हैं. जिस वजह से वहां के युवाओं ने नक्सल अभियान से अपने को अलग कर लिया है. यही कारण है कि अब प्रदेश में नक्सलियों की भर्ती थम गई है.

नक्सलियों की भर्ती थमी !

छत्तीसगढ़ दशकों से नक्सलवाद का नासूर झेलता रहा है. पिछले 5 साल की बात करें तो प्रदेश भर में नक्सली हिंसा में करीब एक हजार लोगों की जान जा चुकी है. इनमें 314 आम लोग भी शामिल हैं. इनका नक्सल आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन इस हिंसा की आग में इन्हें भी अपनी जान गंवानी पड़ी है. वहीं इन 5 सालों में 220 जवान भी शहीद हुए हैं. साथ ही 466 नक्सली भी मुठभेड़ में मारे गए हैं. इसी तरह करीब 1 हजार लोगों की जान साल 2015 से लेकर फरवरी 2020 तक इस हिंसा की भेंट चढ़ चुकी है.

'पिछले डेढ़ सालों में नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण'

प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि कांग्रेस की सरकार ने पिछले कुछ महीनों में विकास कार्य किए हैं. उसके बाद युवा नक्सलवाद की ओर न जाकर सरकार के साथ खड़े हुए हैं. ताम्रध्वज साहू ने कहा कि पिछले डेढ़ सालों में अब तक सबसे ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. इस बीच सबसे ज्यादा नक्सली मारे भी गए हैं. इतना ही नहीं, इन डेढ़ सालों में ही सबसे ज्यादा नक्सलियों को गिरफ्तार करने की बात भी ताम्रध्वज साहू ने कही. उन्होंने कहा कि जिस तरह से उनकी सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास किया है, उसके बाद वहां से युवा सरकार के साथ खड़े हैं. यही वजह है कि प्रदेश में नक्सल भर्ती रुक गई है. इस बौखलाहट के कारण नक्सली ग्रामीणों की हत्या कर रहे हैं.

भाजपा नेता का राज्य सरकार पर हमला

जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने का कहना है कि पहले देश के कई राज्यों में नक्सल समस्या थी. लेकिन केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद नक्सल से लड़ने के लिए नई रणनीति बनाई गई है. इसी का नतीजा है कि आज देश के कई राज्यों में नक्सली सिमट कर रह गए हैं. लेकिन जिन राज्यों में केंद्र से विपरीत सरकारें हैं, उन राज्यों में नक्सलियों को लगता है कि यहां की सरकारों ने उनके लिए नरम रुख अख्तियार किया है. यही कारण है कि उन राज्यों में लगातार वे सक्रिय हुए हैं.

पढ़ें- ग्रामीणों की हत्या को लेकर नक्सलियों में आपसी रंजिश, अपने कमांडर विज्जा मोडियम को उतारा मौत के घाट

नक्सली भर्ती में नहीं हुई है कमी: वर्णिका

नक्सल मामलों की जानकार वर्णिका शर्मा का कहना है कि नक्सलियों की भर्ती प्रक्रिया कम नहीं हुई है. बल्कि इसके स्वरूप में परिवर्तन हुआ है. पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो नक्सलियों की भर्ती प्रक्रिया को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं. नक्सलियों ने साल 2008 से 2012 तक जिस तेजी से अपने संगठन का विस्तार किया था. इस दौरान उन्होंने किसी प्रकार का दायरा तय नहीं किया था, कि हम इस वर्ग के लोगों को ही शामिल करेंगे. उसके बाद साल 2012 से लेकर 2016 तक 15 से 35 साल के युवाओं को तेजी से अपने संगठन में शामिल किया. इस दौरान भी नक्सलियों ने यह दायरा तय नहीं किया था कि इस भर्ती में किस वर्ग को शामिल किया जाए. उनका सिर्फ एक ही दायरा था कि भर्ती होने वाला युवा हो.

'फेल हो रहे सरकार के दावे'

वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर का कहना है कि सरकार हमेशा से दावा करती आई हैं कि नक्सलियों की संख्या कम हुई है. नक्सलियों की भर्ती थम गई है. वहीं दूसरी ओर लगातार नक्सलियों के सरेंडर करने की बात भी सामने आती रही है. पुसदकर ने राज्य सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि इनके पास जो 10-15 सालों में सरेंडर किए गए आंकड़े हैं. उनको जोड़ देंगे तो एक अलग प्रदेश बन जाएगा. इस दौरान पुसदकर ने सरकार की सुरक्षा कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यदि सरकार को मालूम है कि नक्सली भर्ती थम गई है, तो उन्हें नक्सलियों से संबंधित अन्य जानकारी भी होगी की नक्सली कहां हैं क्या कर रहे हैं. इसके बाद भी जवान नक्सलियों के एंबुश में फंस जाते हैं. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार क्यों नाकाम रही है.

रायपुर: छत्तीसगढ़ नक्सलियों के लिए पनाहगाह बनता जा रहा है. यहां आए दिन नक्सली बड़ी-बड़ी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. लेकिन इसके बाद भी पहले की सरकार और वर्तमान सरकार अब तक इन पर रोक लगाने में नाकाम रही है. अब सरकार का दावा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तेजी से विकास कार्य किए जा रहे हैं. जिस वजह से वहां के युवाओं ने नक्सल अभियान से अपने को अलग कर लिया है. यही कारण है कि अब प्रदेश में नक्सलियों की भर्ती थम गई है.

नक्सलियों की भर्ती थमी !

छत्तीसगढ़ दशकों से नक्सलवाद का नासूर झेलता रहा है. पिछले 5 साल की बात करें तो प्रदेश भर में नक्सली हिंसा में करीब एक हजार लोगों की जान जा चुकी है. इनमें 314 आम लोग भी शामिल हैं. इनका नक्सल आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं था. लेकिन इस हिंसा की आग में इन्हें भी अपनी जान गंवानी पड़ी है. वहीं इन 5 सालों में 220 जवान भी शहीद हुए हैं. साथ ही 466 नक्सली भी मुठभेड़ में मारे गए हैं. इसी तरह करीब 1 हजार लोगों की जान साल 2015 से लेकर फरवरी 2020 तक इस हिंसा की भेंट चढ़ चुकी है.

'पिछले डेढ़ सालों में नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण'

प्रदेश के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि कांग्रेस की सरकार ने पिछले कुछ महीनों में विकास कार्य किए हैं. उसके बाद युवा नक्सलवाद की ओर न जाकर सरकार के साथ खड़े हुए हैं. ताम्रध्वज साहू ने कहा कि पिछले डेढ़ सालों में अब तक सबसे ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. इस बीच सबसे ज्यादा नक्सली मारे भी गए हैं. इतना ही नहीं, इन डेढ़ सालों में ही सबसे ज्यादा नक्सलियों को गिरफ्तार करने की बात भी ताम्रध्वज साहू ने कही. उन्होंने कहा कि जिस तरह से उनकी सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास किया है, उसके बाद वहां से युवा सरकार के साथ खड़े हैं. यही वजह है कि प्रदेश में नक्सल भर्ती रुक गई है. इस बौखलाहट के कारण नक्सली ग्रामीणों की हत्या कर रहे हैं.

भाजपा नेता का राज्य सरकार पर हमला

जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद उपासने का कहना है कि पहले देश के कई राज्यों में नक्सल समस्या थी. लेकिन केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद नक्सल से लड़ने के लिए नई रणनीति बनाई गई है. इसी का नतीजा है कि आज देश के कई राज्यों में नक्सली सिमट कर रह गए हैं. लेकिन जिन राज्यों में केंद्र से विपरीत सरकारें हैं, उन राज्यों में नक्सलियों को लगता है कि यहां की सरकारों ने उनके लिए नरम रुख अख्तियार किया है. यही कारण है कि उन राज्यों में लगातार वे सक्रिय हुए हैं.

पढ़ें- ग्रामीणों की हत्या को लेकर नक्सलियों में आपसी रंजिश, अपने कमांडर विज्जा मोडियम को उतारा मौत के घाट

नक्सली भर्ती में नहीं हुई है कमी: वर्णिका

नक्सल मामलों की जानकार वर्णिका शर्मा का कहना है कि नक्सलियों की भर्ती प्रक्रिया कम नहीं हुई है. बल्कि इसके स्वरूप में परिवर्तन हुआ है. पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो नक्सलियों की भर्ती प्रक्रिया को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं. नक्सलियों ने साल 2008 से 2012 तक जिस तेजी से अपने संगठन का विस्तार किया था. इस दौरान उन्होंने किसी प्रकार का दायरा तय नहीं किया था, कि हम इस वर्ग के लोगों को ही शामिल करेंगे. उसके बाद साल 2012 से लेकर 2016 तक 15 से 35 साल के युवाओं को तेजी से अपने संगठन में शामिल किया. इस दौरान भी नक्सलियों ने यह दायरा तय नहीं किया था कि इस भर्ती में किस वर्ग को शामिल किया जाए. उनका सिर्फ एक ही दायरा था कि भर्ती होने वाला युवा हो.

'फेल हो रहे सरकार के दावे'

वरिष्ठ पत्रकार अनिल पुसदकर का कहना है कि सरकार हमेशा से दावा करती आई हैं कि नक्सलियों की संख्या कम हुई है. नक्सलियों की भर्ती थम गई है. वहीं दूसरी ओर लगातार नक्सलियों के सरेंडर करने की बात भी सामने आती रही है. पुसदकर ने राज्य सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि इनके पास जो 10-15 सालों में सरेंडर किए गए आंकड़े हैं. उनको जोड़ देंगे तो एक अलग प्रदेश बन जाएगा. इस दौरान पुसदकर ने सरकार की सुरक्षा कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यदि सरकार को मालूम है कि नक्सली भर्ती थम गई है, तो उन्हें नक्सलियों से संबंधित अन्य जानकारी भी होगी की नक्सली कहां हैं क्या कर रहे हैं. इसके बाद भी जवान नक्सलियों के एंबुश में फंस जाते हैं. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकार क्यों नाकाम रही है.

Last Updated : Oct 4, 2020, 10:44 AM IST
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