रायपुर: पुरातत्व विभाग को गरियाबंद जिले के पांडुका की पैरी नदी में ढाई हजार साल पहले बंदरगाह के होने के प्रमाण मिले हैं. वहीं धमतरी के अरौद में महानदी पर लगभग 3000 साल पुराना बंदरगाह था. बंदरगाह समुद्र के किनारे बनाए जाते हैं. ऐसे में छत्तीसगढ़ में इन दोनों जगहों पर प्राचीन काल में बंदरगाह का होना यह बताता हैं कि आज से हजारों साल पहले छत्तीसगढ़ में भी समुद्र था. जिसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग भी करता है.
समुद्र के नाम पर होता है नामकरण: छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के उपसंचालक जे आर भगत ने बताया कि "छत्तीसगढ़ में कुछ जगहों पर समुद्र होने के प्रमाण मिले हैं. जिसे देखते हम कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में भी इस समय समुद्र हुआ करता था. आज की छत्तीसगढ़ की कई जगहों को समुद्र के नाम से जाना जाता है. उनके नाम समुद्र के नामों पर रखे गए हैं. जैसे रानी सागर बांध और दलपत सागर इस बात के उदाहरण हैं कि आज भी हमारे छत्तीसगढ़ में समुद्रों के नाम पर नामकरण करने की प्रथा है."
बंगाल की खाड़ी से छत्तीसगढ़ में होता था व्यापार: छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के उपसंचालक जे आर भगत ने बताया कि "पैरी नदी महानदी में मिलती है और यह महानदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है. इस तरह से कहा जा सकता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में जो व्यापार होता था, वह बंगाल की खाड़ी से होता था. राजिम से लगे हुए पांडुका में व्यापारिक बंदरगाह के प्रमाण भी मिले हैं, जिसे अंग्रेजी में डॉकयार्ड भी कहा जाता है. वह महानदी की सहायक नदी पैरी नदी पर है. छत्तीसगढ़ में दूसरे जगहों की बात की जाए तो धमतरी के अरौद महानदी पर भी बंदरगाह था."
"प्राचीन काल के इन बंदरगाहों पर मिले हैं लंगर": छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के उपसंचालक जे आर भगत ने बताया कि "छत्तीसगढ़ के बंदरगाहों में लंगर मिले हैं. जिसकी मदद से प्राचीन काल में नावों को रोका जाता था. उसके बाद इन नाव पर रखा सामान इन बंदरगाहों पर उतारा जाता था."