रायपुर : एस्ट्रोलॉजर शैलेंद्र पचोरी ने बताया कि "विवाह संस्कार बहुत ही उत्तम माना गया है. हिंदू धर्म और विवाह के दौरान माताएं पुत्र के फेरे इसलिए नहीं देखती हैं, क्योंकि इससे आने वाली बहू के साथ गृह क्लेश का योग बनता है. हालांकि अब इन मान्यताओं को कोई नहीं मानता.आजकल माताएं अपने पुत्रों की बारात में जातीं हैं. उनके फेरे भी देखती हैं. लेकिन हर घर में गृह कलेश की समस्या बढ़ती जा रही है. कहीं ना कहीं ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह वजह भी अन्य वजहों में से एक है."
घर में महिलाएं देती थीं पहरा : इसके पीछे एक वजह और बताई जाती है. जब मुगल शासन काल का दौर भारत में था तो महिलाओं का बारात में जाना वर्जित हो गया था. इसके पहले महिलाएं बारात में जाती थी. लेकिन उनके बारात में जाने से डकैती की घटनाएं काफी होने लगी. घरों में चोरियां होने लगी. जिस वजह से सभी महिलाओं को लड़के के घर में रखवाली के लिए छोड़ दिया जाता था .पुरुष बारात में जाया करते थे.
नई बहू के आने पर रीति रिवाज की व्यवस्था : विदाई के बाद जब बहू अपने ससुराल में पहली बार आती है तो गृह प्रवेश के बीच में कई रीति रिवाज होते हैं. जैसे सिंदूर भरी थाल में पैर रखकर बहू का प्रवेश घर के अंदर किया जाता है. हल्दी कुमकुम में हाथ भिगोकर हाथों के निशान दीवारों पर लगवाए जाते हैं. ऐसे रीति रिवाज की तैयारी के लिए घर में किसी एक अनुभवी का होना जरूरी होता है इसीलिए महिलाओं को घर में रखा जाता था.
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कई राज्यों में परंपरा है कायम : आधुनिकता के इस दौर में आज भी यह प्रथा बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड जैसे राज्यों में निभाई जाती है. माताएं खुशी खुशी अपने बेटे को बारात के लिए विदा करतीं हैं . घर पर रहकर गीत गाकर, ढोल बजाकर बहू के गृह प्रवेश का इंतजार करती हैं. लेकिन बदलते दौर में अब महिलाएं भी अपने बेटों की शादी में शामिल होती हैं. वे घर आकर गृह प्रवेश के रिवाज भी पूरी करती हैं.