रायपुर: हमारी संस्कृति में खुशियों को बयां करने के कई तरीकों में से एक बेहद महत्वपूर्ण जरिया रंगोली भी है. हर शुभ अवसर पर रंगोली बनाने की परंपरा लगभग पूरे भारत में पाई जाती है.आज इसे कई प्रकार से बनाया जाता है. साथ ही इसे त्योहारों के अलावा कई एग्जिबिशन के तौर पर भी बनाई जाने लगी है. ETV भारत अपने दर्शकों को रायपुर के एक अंतर्राष्ट्रीय रंगोली आर्टिस्ट प्रमोद साहू से मिलवा रहा हैं, जिनकी हाइपर रियलिस्टिक रंगोली की धूम सरहद पार तक पहुंच चुकी है.
सवाल: पारंपरिक रंगोली से आर्टिस्टिक रंगोली की शुरुआत कैसे की?
जवाब: ETV भारत के सवाल पर इंटरनेशनल रंगोली आर्टिस्ट प्रमोद साहू ने बताया कि उनकी शुरुआत पारंपरिक रंगोली से हुई. 2011 में उन्होंने 3 डी रंगोली की शुरुआत की जो लगातार जारी है. साल 2016 से समाज के अलग-अलग विषयों पर सामाजिक उत्थान को लेकर हाइपररियलिज्म रंगोली की शुरुआत की.
सवाल: महिलाओं का रुझान रंगोली में ज्यादा रहता है, आपका रुझान इसमें कैसे आया?
जवाब: इस सवाल का जवाब देते हुए प्रमोद साहू ने बताया कि बचपन में जब उनकी दीदी रंगोली बनाया करती थी, उस दौरान वे अक्सर रंगोली बिगाड़ दिया करते थे. नाराज दीदी ने उन्हें रंगोली बनाने को कहा जिसे उन्होंने एक्सेप्ट किया. उसके बाद से ही वे रंगोली बना रहे है. घर में हर शुभ अवसर पर प्रमोद ही रंगोली बनाने लगे. ऐसा करने से लगातार इंप्रूवमेंट होता गया. उन्होंने बताया कि इसकी वजह से ही आज वे हाइपररियलिज्म रंगोली बना रहे है.
सवाल: रंगोली किसने सिखाई, गुरू कौन हैं ?
जवाब: प्रमोद साहू ने बताया कि कला के क्षेत्र में उनके छ: गुरु हैं. उनकी माता कौशल्या बाई साहू, पिता गणेश राम साहू और उनकी बहन वीणा साहू जिनसे उन्होंने प्रारंभिक रंगोली बनाना सीखा.स्कूल के दौरान माधवराव साहू जो मूर्ति बनाने का काम करते थे. उस दौरान प्रमोद गणपति स्थापना के समय चूहे को पेंट किया करते थे. चंद्रकांत साहू जो स्कूल में 5 साल सीनियर थे, जिनके काम को देखकर वे मोटिवेट होते थे. ज्योतिर्मय दास जिन्होंने उन्हें ड्राइंग सिखाई, वे एनिमेशन क्लास में पढ़ाया करते थे. प्रमोद ने बताया कि इन 6 गुरुओं की बदौलत वे आज इतना नाम कमा रहे हैं.
सवाल: आज आप एक बड़े रंगोली आर्टिस्ट हैं सबसे पहले बाहर जाने का मौका कब मिला ?
जवाब: प्रमोद ने बताया कि 2005 में जन्माष्टमी के मौके पर कटनी जाकर उन्होंने रंगोली बनाई. पिछले 15 सालों से लगातार कटनी जाते हैं और वहां रंगोली बनाते हैं.इसके बाद धीरे-धीरे उन्हें और मौके मिलने लगे. देश के 80 शहर और विदेश में तीन शहरों में उन्होंने रंगोली परफॉर्म किया.
सवाल: आप लोगों को भी रंगोली सिखा रहे हैं आपकी रंगोली इतनी जीवंत कैसे लगती है और उस दौरान रंगोली बनाते समय आप का भाव कैसा है?
जवाब: इस सवाल पर प्रमोद ने बताया कि हर काम के लिए फील करना बेहद जरूरी हैं. वे जब भी किसी व्यक्ति का पोट्रेट बनाते है तो उसे महसूस करते हैं. किसी भी जीवंत रंगोली को बनाने से पहले वे उसे जीने की कोशिश करते हैं. प्रमोद ने कहा कि अगर किसी का हंसते हुए रंगोली बनाना है तो मूड को वैसा रखना होगी. यदि कोई इमोशन में है, सैड है, तो उसी भाव को अपने में लाना होगा तभी रंगोली में रियलिज्म दिखेगा.
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सवाल: विदेश में देश का प्रतिनिधित्व करने में कैसा महसूस हुआ ?
जवाब: प्रमोद साहू ने बताया कि रंगोली आर्ट के जरिए उन्हें पहली बार विदेश जाने का मौका मिला. ये मौका तब खास होता है जब आपके नाम के साथ देश का नाम लिखा हो, और उसमें तिरंगा झंडा हो, तो वह समय बेहद प्रफुल्लित करता है.विदेश में रहकर जब वे रंगोली बना रहे थे तो उस समय लोग पूछते थे कि आप भारत से हैं तो मैं गर्व से कहता था मैं भारत से हूं. उस दौरान वे अलग ही रिस्पेक्ट किया करते थे.
सवाल: डिजिटल युग में हम जी रहे हैं कहीं ना कहीं अब रंगोली भी बहुत कम दिखाई देती है. डिजिटली चीजें आ गई है. उसको लेकर क्या सोचना है ?
जवाब: डिजिटल चीजे आगे बढ़ रही है, अपनी कला और संस्कृति को हम कैसे डिजिटली प्रस्तुत कर सकते हैं यह बड़ी बात है. डिजिटल टेक्नोलॉजी अपने आप में एक बड़ा अचीवमेंट है. डिजिटल हमारे लिए उत्थान है. प्रमोद ने बताया कि वे आज डिजिटल माध्यम से घर बैठे देश के अलग-अलग राज्यों के लोगों को और विदेश में बैठे लोगों को रंगोली सिखा रहे हैं.
सवाल: नए कलाकारों को क्या संदेश देना चाहेंगे ?
जवाब: हमें दो चीजों की आवश्यकता होती है एक हमारा विचार और स्किल. दोनों चीजों को अलग अलग रखकर काम करना चाहिए. किसी भी काम को गंभीरता से सोचना चाहिए और उसी तरह से काम को इंप्रूव करके प्रस्तुत करना चाहिए. आप लगातार प्रैक्टिस करते जाइए, और अपना लक्ष्य तय करके काम करें. आप कोई भी लक्ष्य बनाते हैं तो उसे करने का जज्बा रखें और उसे जरूर पूरा करें.
सवाल: आगे अपने जीवन में और क्या अचीवमेंट चाहते हैं?
जवाब: प्रमोद साहू ने बताया कि अपने काम को और इंप्रूव करना और हाइपररियलिज्म में और चीजें बेहतर करने को लेकर उनका ध्यान है. हर 5 सालों का उनका गोल सेट रहता है जिसे वे अचीव करने की कोशिश करते हैं.