रायपुर: मेडिकल काॅलेजों से संबद्ध अस्पतालों में आने वाले मरीजों को बेहतर सेवा और समय देने पर सरकार ध्यान केंद्रित कर रही है. सरकारी मेडिकल काॅलेजों के डाॅक्टरों (Medical College doctors) को प्राइवेट प्रैक्टिस से रोक पर उन्हें आर्थिक नुकसान होगा. Ban On Private Practice इसकी भरपाई और डाॅक्टरों को राहत देने के लिए एम्स सहित बड़े केंद्रीय संस्थानों में सैलरी स्ट्रक्चर (salary structure) पर नए सिरे से मंथन किया जा रहा है.
कार्यशैली को लेकर जुटाई इंटर्नल जानकारी: सरकारी अस्पतालों में डाॅक्टर और स्टाफ की कार्यशैली को लेकर हाल ही में स्वास्थ्य विभाग ने इंटर्नल जानकारी जुटाई थी. जांच में यह बात सामने आई थी कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर अपना ड्यूटी टाइम (duty time) भी पूरा नहीं कर रहे। सुबह की ओपीडी में किसी तरह पहुंचकर मरीज देख रहे हैं, लेकिन शाम को अपने निजी क्लीनिक (private clinic) में ही समय दे रहे हैं. इस कारण अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को न तो डाॅक्टर समय दे पा रहे हैं और न ही उन्हें बेहतर इलाज ही मिल पा रहा है. इसे लेकर कई प्लेटफाॅर्म पर मरीजों के परिजन शिकायत भी करते हैं.
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फोन पर ही जूनियर को नोट करा देने हैं ट्रीटमेंट: डाॅक्टरों की सेवा शर्तों में ओपीडी में समय देने के साथ ही वार्डों में राउंड लेना और इमरजेंसी में पहुंचकर इलाज करना भी शामिल है. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. सीनियर डाक्टर फोन पर ही जूनियर को ब्रीफ कर देते हैं. मरीज का हाल लेने के बाद फोन पर ही ट्रीटमेंट भी नोट करा देते हैं.
डाॅ. सुबीर मुखर्जी के समय भी बना था प्रस्ताव: 8 साल पहले तत्कालीन डीएमई डॉ. सुबीर मुखर्जी के समय भी सरकारी डाॅक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध का प्रस्ताव तैयार किया गया था. स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने बताया कि उस ड्राफ्ट में इस बात का स्पष्ट उल्लेख था कि डॉक्टरों का सैलरी स्ट्रक्चर एम्स के समकक्ष कर दिया जाए तो सरकारी अस्पताल में भी इलाज की व्यवस्था बेहतर हो सकेगी.