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Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर शिव करेंगे मनोकामना पूरी, बस कर लिजिए ये काम

भगवान शिव की अपने भक्तों पर अनुपम कृपा बरसती है.शिव ऐसे देवता हैं तो थोड़े से प्रयास से ही प्रसन्न हो उठते हैं.आदिकाल से लोग शिव की विशेष पूजा करते आए हैं.आज हम आपको बताने जा रहे हैं शिव से जुड़ी कुछ खास बातें.जिन्हें आप आने वाली महाशिवरात्रि में अपनाकर मनचाही इच्छा भोलेनाथ से पा सकते हैं.

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Published : Feb 7, 2023, 5:46 PM IST

Updated : Feb 18, 2023, 6:34 AM IST

Mahashivratri 2023
महाशिवरात्रि में शिव करेंगे मनोकामना पूरी
महाशिवरात्रि पर ऐसे करें पूजा

रायपुर : अक्सर भगवान शिव पर लोग गुड़हल, मोगरा, धतूरा, मदार, नीलकमल जैसे फूल और उसके पत्ते चढ़ाते हैं. लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि भगवान शिव को लाल रंग के गुलाब का फूल भी बहुत पसंद है. यदि किसी को भी अपनी मनोकामना पूरी करनी हो तो भगवान शिव पर लाल रंग का गुलाब का फूल चढ़ा सकता है. इससे उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी.


क्यों चढ़ाए शिव पर गुलाब का फूल : पंडित राकेश दुबे का कहना है कि " गुलाब का फूल ऐश्वर्य का प्रतीक कहलाता है. गुड़हल का फूल शिव को अति प्रिय जरूर है लेकिन अगर आपको किसी चीज की प्राप्ति करनी है तो शिव जी को गुलाब का फूल चढ़ाएं. हालांकि शिवजी में गुड़हल के अलावा हर प्रकार के फूल चढ़ते हैं लेकिन शिवजी को सबसे ज्यादा गुलाब का फूल अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए जरूर चढ़ाना चाहिए. गुलाब का फूल गुलाब का इत्र चढ़ाने से आपकी हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है."

क्यों केतकी का फूल शिव पर ना चढ़ाएं : लोगों को केतकी का फूल शिव पर नहीं चढ़ाने की बात कही जाती है इसके पीछे वजह पूछने पर पंडित राकेश दुबे ने बताया कि " केतकी का फूल श्राप ग्रस्त है.ब्रह्मा विष्णु महेश में सबसे बड़ा देव कौन है जिस पर ब्रह्मा जी खुद को सिद्ध करना चाहते थे कि सबसे बड़े देव है. जिस पर ब्रह्मा जी को यह बताना था इस शिवलिंग की लंबाई आखिर कहां तक है जिसमें ब्रह्मा जी केवल आधी दूरी तय करके वापस आए और केतकी के फूल ने ब्रह्मा के झूठ में गवाही दी थी. तभी शिवजी ने उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाएगा यही वजह है कि शिव पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता।"

क्या है केतकी के फूल से जुड़ी पौराणिक कथा : विस्तार से बात की जाए तो केतकी का फूल भगवान शिव को ना चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक कथा है ''कथा के अनुसार एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और सृष्टि के पालन करता भगवान विष्णु के बीच विवाद चिड़िया के दोनों में सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है. दोनों स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने का दावा कर रहे थे. इसी बीच वहां एक विराट शिवलिंग प्रकट हुआ. देवताओं ने कहा कि जो लिंग के छोर को तक जाएगा वह सबसे श्रेष्ठ होगा. दोनों को ही लिंग का छोर नहीं पता चला और दोनों ही आधे रास्ते से वापस लौट आए. लेकिन भगवान ब्रह्मा ने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बना कर यह गवाही दी कि मैं लिंग के छोर तक गया था जिसके बाद केतकी का झूठ सामने आया . भगवान शिव ने गुस्से में आकर केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह कभी भी शिवलिंग में नहीं चढ़ाया जाएगा. साथ ही ब्रह्मा जी का एक सिर भी काट दिया.

महाशिवरात्रि का विशेष महत्व : पंडित राकेश दुबे के मुताबिक ''भोले के भक्त इस दिन को काफी हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं. भक्त शिवलिंग पर दूध जलाभिषेक करते हैं. फूल और बेल के पत्ते चढ़ाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं. बेलपत्र चढ़ाना आवश्यक होता है क्योंकि बेलपत्र शिवजी को बहुत प्रिय है. सती के वियोग में महादेव कई सालों तक एकांत में रहने लगे थे. वह ध्यान में डूबे रहते और सामाजिक जीवन से कोसों दूर रहते थे. शक्ति मां ने पार्वती मां का दूसरा रूप लेकर जन्म लिया और एक बार फिर महादेव के हृदय में अपनी जगह बनाई. जिसके लंबे इंतजार के बाद महाशिवरात्रि के दिन मां पार्वती और बाबा भोले का विवाह हुआ. अविवाहित कन्या भी सुयोग्य वर पाने के लिए बाबा भोले के लिए पूरा दिन भूखे पेट रहकर उपवास रखती हैं और सुबह शाम बाबा भोले की पूजा अर्चना करके अपने लिए अच्छा वर मांगती है.''

ये भी पढ़ें- मंदिरों में क्यों बांधा जाता है नारियल,जानिए पीछे की सच्चाई

18 फरवरी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा इस दिन भगवान भोले और मां पार्वती का विवाह हुआ था. तब से लेकर आज तक भोले के भक्त इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं. वैसे तो शिवरात्रि का दिन माह के हर दिन पड़ता है. लेकिन महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है.ये काफी विशेष होती है.क्योंकि इस दिन परमपिता महादेव और जगत जननी मां पार्वती का विवाह हुआ था. इस शुभ रात्रि में बैरागी होकर भी शिव जी ने ब्रह्मा जी के आग्रह पर विवाह करना स्वीकार किया. तभी से पृथ्वी पर सृजन यानि की स्त्रियों के गर्भ धारण करने की प्रक्रिया भी शुरू हुई थी.

महाशिवरात्रि पर ऐसे करें पूजा

रायपुर : अक्सर भगवान शिव पर लोग गुड़हल, मोगरा, धतूरा, मदार, नीलकमल जैसे फूल और उसके पत्ते चढ़ाते हैं. लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि भगवान शिव को लाल रंग के गुलाब का फूल भी बहुत पसंद है. यदि किसी को भी अपनी मनोकामना पूरी करनी हो तो भगवान शिव पर लाल रंग का गुलाब का फूल चढ़ा सकता है. इससे उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी.


क्यों चढ़ाए शिव पर गुलाब का फूल : पंडित राकेश दुबे का कहना है कि " गुलाब का फूल ऐश्वर्य का प्रतीक कहलाता है. गुड़हल का फूल शिव को अति प्रिय जरूर है लेकिन अगर आपको किसी चीज की प्राप्ति करनी है तो शिव जी को गुलाब का फूल चढ़ाएं. हालांकि शिवजी में गुड़हल के अलावा हर प्रकार के फूल चढ़ते हैं लेकिन शिवजी को सबसे ज्यादा गुलाब का फूल अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए जरूर चढ़ाना चाहिए. गुलाब का फूल गुलाब का इत्र चढ़ाने से आपकी हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण होती है."

क्यों केतकी का फूल शिव पर ना चढ़ाएं : लोगों को केतकी का फूल शिव पर नहीं चढ़ाने की बात कही जाती है इसके पीछे वजह पूछने पर पंडित राकेश दुबे ने बताया कि " केतकी का फूल श्राप ग्रस्त है.ब्रह्मा विष्णु महेश में सबसे बड़ा देव कौन है जिस पर ब्रह्मा जी खुद को सिद्ध करना चाहते थे कि सबसे बड़े देव है. जिस पर ब्रह्मा जी को यह बताना था इस शिवलिंग की लंबाई आखिर कहां तक है जिसमें ब्रह्मा जी केवल आधी दूरी तय करके वापस आए और केतकी के फूल ने ब्रह्मा के झूठ में गवाही दी थी. तभी शिवजी ने उन्हें श्राप दिया कि उनकी पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाएगा यही वजह है कि शिव पूजा में केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता।"

क्या है केतकी के फूल से जुड़ी पौराणिक कथा : विस्तार से बात की जाए तो केतकी का फूल भगवान शिव को ना चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक कथा है ''कथा के अनुसार एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और सृष्टि के पालन करता भगवान विष्णु के बीच विवाद चिड़िया के दोनों में सबसे सर्वश्रेष्ठ कौन है. दोनों स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने का दावा कर रहे थे. इसी बीच वहां एक विराट शिवलिंग प्रकट हुआ. देवताओं ने कहा कि जो लिंग के छोर को तक जाएगा वह सबसे श्रेष्ठ होगा. दोनों को ही लिंग का छोर नहीं पता चला और दोनों ही आधे रास्ते से वापस लौट आए. लेकिन भगवान ब्रह्मा ने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बना कर यह गवाही दी कि मैं लिंग के छोर तक गया था जिसके बाद केतकी का झूठ सामने आया . भगवान शिव ने गुस्से में आकर केतकी के फूल को श्राप दिया कि वह कभी भी शिवलिंग में नहीं चढ़ाया जाएगा. साथ ही ब्रह्मा जी का एक सिर भी काट दिया.

महाशिवरात्रि का विशेष महत्व : पंडित राकेश दुबे के मुताबिक ''भोले के भक्त इस दिन को काफी हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं. भक्त शिवलिंग पर दूध जलाभिषेक करते हैं. फूल और बेल के पत्ते चढ़ाकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं. बेलपत्र चढ़ाना आवश्यक होता है क्योंकि बेलपत्र शिवजी को बहुत प्रिय है. सती के वियोग में महादेव कई सालों तक एकांत में रहने लगे थे. वह ध्यान में डूबे रहते और सामाजिक जीवन से कोसों दूर रहते थे. शक्ति मां ने पार्वती मां का दूसरा रूप लेकर जन्म लिया और एक बार फिर महादेव के हृदय में अपनी जगह बनाई. जिसके लंबे इंतजार के बाद महाशिवरात्रि के दिन मां पार्वती और बाबा भोले का विवाह हुआ. अविवाहित कन्या भी सुयोग्य वर पाने के लिए बाबा भोले के लिए पूरा दिन भूखे पेट रहकर उपवास रखती हैं और सुबह शाम बाबा भोले की पूजा अर्चना करके अपने लिए अच्छा वर मांगती है.''

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18 फरवरी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा इस दिन भगवान भोले और मां पार्वती का विवाह हुआ था. तब से लेकर आज तक भोले के भक्त इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाते हैं. वैसे तो शिवरात्रि का दिन माह के हर दिन पड़ता है. लेकिन महाशिवरात्रि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है.ये काफी विशेष होती है.क्योंकि इस दिन परमपिता महादेव और जगत जननी मां पार्वती का विवाह हुआ था. इस शुभ रात्रि में बैरागी होकर भी शिव जी ने ब्रह्मा जी के आग्रह पर विवाह करना स्वीकार किया. तभी से पृथ्वी पर सृजन यानि की स्त्रियों के गर्भ धारण करने की प्रक्रिया भी शुरू हुई थी.

Last Updated : Feb 18, 2023, 6:34 AM IST
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