रायपुर: हिंदु धर्म में नवरात्रि का त्यौहार खूब धूमधाम से मनाया जाता है. कहा जाता है नवरात्रि में माता की सच्ची श्रद्धा और भक्ति करने से मां दुर्गा अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं, साथ ही साथ उन्हें समृद्ध, निरोगी और परिपूर्ण बनाती हैं. इसमें मां दुर्गा के नौ अवतारों की पूजा की जाती है. माता के अगल- अलग अवतारों की पूजा करने का अपना एक अलग महत्व है. नवरात्र का पर्व साल में दो बार आता है. एक शारदीय नवरात्रि, दूसरा चैत्र नवरात्रि. शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में माता पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा अर्चना की जाती है जिसे हम नवरात्रि के रुप में मनाते हैं.
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आइए हम जानते हैं माता के नौ रुपों के नाम और महत्व
1.शैलपुत्री- शैलपुत्री को मां दुर्गा का पहला स्वरूप माना जाता है, मान्यता है कि मां शैलपुत्री हिमालय के यहां पुत्री के रुप में जन्म लीं थी. इस कारण से इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. यह वृषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं. यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं.
2.ब्रह्मचारिणी- मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. जिनकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है. तप का आचरण करने वाले को ही ब्रम्हचारिणी कहा जाता है. भक्तों का मानना है कि मां ब्रम्हाचारिणी की उपासना मात्र करने से प्राणियों में तप, त्याग, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है.मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है. मां के बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है.
3.चंद्रघण्टा- नवरात्र उपासना में तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति चंद्रघण्टा की उपसना की जाती है. कहा जाता है कि मां चंद्रघंटा का स्वरुप परम शांतिदायक और कल्याणकारी होता है. इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है, इसी कारण से देवी को चंद्रघण्टा कहा जाता है. मां चंद्रघंटा की उपासना से सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.
4.कुष्माण्डा- माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कुष्माण्डा है. अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्माण्डा पड़ा. मान्यता है कि माता की पवित्र मन से उपासना करने से मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार लगाने का सुगम मार्ग मिलता है.
5.स्कन्दमाता-पावन नवरात्र के पांचवें दिन स्कन्दमाता की पूजा की जाती है, ये भगवान स्कन्द 'कुमार कार्तिकेय' के नाम से भी जानी जाती हैं. कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है. नवरात्र के पांचवें दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है.स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी के नाम से भी जाना जाता है.
6.कात्यायनी- मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है. कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं.महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले इनकी पूजा की थी इस कारण से इन्हें कात्यायनी माता के नाम से जाना जाता है. माता की पूजा करने से मनुष्य अलौकिक तेज से युक्त होता है.
7.कालरात्रि- नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा के सातवें अवतार कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में विशाल और भयानक है लेकिन इसके ठीक उलट ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं. इसलिए इन्हें शुभड्करी के नाम से भी जाता जाता है. माता कालरात्रि की पूजा अर्चना करने से भक्तों के समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं.
8.महागौरी- मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है. दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना की पूजा विधि- विधान से की जाती है. माता महागौरी की शक्ति अमोघ एंव फलदायिनी है. मान्यता है कि इनकी उपासना करने से भक्तों के सभी प्रकार के पाप और क्लेश धुल जाते हैं.
9.सिद्धिदात्री- मां दुर्गा की नौवीं और अंतिम स्वरुप को सिद्धिदात्री के नाम से जानते हैं. नाम से स्पष्ट है कि ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं. नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम स्वरुप को कहते हैं. इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए. जिससे सभी मनोकामना पूर्ण होती है.