रायपुर/हैदराबाद : महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में हुआ था. योगी बनने के पहले उनका नाम महेश प्रसाद था. उन्होंने स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी. maharshi mahesh yogi ने पांच फरवरी 2008 को नीदरलैंड के व्लाड्राप आश्रम में अंतिम सांस ली थी. नौ फरवरी को योगी का पार्थिव शरीर प्रयागराज लाया गया था. उनके पार्थिव शरीर को पहले अलोपीबाग स्थित उनके ब्रह्नलीन गुरू ब्रह्मनंद सरस्वती के आश्रम में ले जाया गया था. यहां उनकी अंतिम यात्रा का पुष्प वर्षा करके स्वागत किया गया. इसके बाद पार्थिव शरीर अरैल आश्रम में ले जाया गया था. योगी को दो दिन तक सिद्धासन में बैठाकर आम लोगों के दर्शन को रखा गया था. 11 फरवरी को अंतिम संस्कार हुआ. अंतिम संस्कार में देश विदेश से उनके हजारों अनुयायी अरैल आए थे.आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर, अमेरिका के कई सीनेटर समेत कई केंद्रीय मंत्री योगी के अंतिम दर्शन को प्रयागराज पहुंचे थे.
कब आए थे आखिरी बार भारत : maharshi mahesh yogi 1989 में अंतिम बार प्रयागराज आए थे. उन्होंने उस दौरान अरैल आश्रम की नींव डाली थी. उसके बाद उन्होंने कई बार प्रयागराज आने का मन बनाया था. 13 जनवरी 2008 को नीदरलैंड के आश्रम में अपने अनुयायियों से प्रयागराज आने की इच्छा भी जताई थी. उनके आने की जानकारी लगते ही आश्रम को फिर से भव्यता प्रदान की जा रही थी. ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि योगी बीस वर्ष बाद भारत आ रहे थे. लेकिन पांच फरवरी 2008 को योगी महर्षि महेश ब्रह्मलीन हो गए. जिसका दुखद समाचार मिलते ही आश्रम में शोक छा गया था. योगी जी की गंगा के किनारे शरीर त्यागने की इच्छा थी. इसे वे कई बार व्यक्त कर चुके थे. अंतिम समय में भी उन्होंने गंगा के किनारे किसी आश्रम में जाने की बात कही थी.
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मादक पदार्थों का किया था अध्ययन : योगी ने पश्चिमी जगत में मनोविस्तार के कई प्रयोगों और उसके लिए चरस, गांजा और एलएसडी जैसे मादक द्रव्यों के प्रयोग का गहराई से अध्ययन करके Transcendental Meditation की पद्धति का विकास किया. कुछ भारतीय पंडितों ने उन्हें महर्षि की पदवी प्रदान की थी. आगे चलकर वे महर्षि महेश योगी बन गये.