रायपुर: आप कई अलग-अलग तरह के शौक रखने वाले लोगों के बारे में सुना होगा. सिक्कों का संग्रह करना भी एक शौक है. राजधानी रायपुर में ऐसे ही एक शख्स हैं जो कि पिछले 4 दशक से अधिक समय से सिक्कों का संग्रह कर रहे हैं. आज उनके कलेक्शन में 180 साल पुराने सिक्के भी मौजूद हैं. साथ ही कई देशों की मुद्रा सिक्कों के तौर पर उनके पास सुरक्षित है. पुरानी बस्ती में रहने वाले लक्ष्मीनारायण लाहोटी को यह शौक अपने पिता से मिली.
सिक्का संग्रह करने का इतिहास
सिक्का संग्रह करने वाले शख्स के पास 180 साल पुराने सिक्के हैं. लाहोटी बताते हैं कि उनके पास 1835 से 2021 तक के सिक्कों का कलेक्शन है. एक तरह से 180 साल पुराने सिक्कों का कलेक्शन आज भी सहेजने के साथ ही उन्हें अच्छी तरह से संभाल कर रखे हुए हैं. उनका कहना है कि 1835 से 1939 तक 104 साल के जो सिक्के बाजार में आए. उसमें चांदी की शुद्धता 91.60% हुआ करती थी. उसके बाद सन 1940 से 1945 के बीच जो सिक्के चलन में थे. उसमें चांदी की शुद्धता 51.60% हुआ करती थी. बाद में चांदी के दाम बढ़ने के बाद दूसरे धातु तांबा, पीतल और एल्युमीनियम के सिक्के भी चलन में रहे.
55 देशों के सिक्के आज भी उनके पास मौजूद हैं. सिक्का संग्रह करने वाले बताते हैं कि विश्व में लगभग 225 देश है और उनके पास लगभग 55 देशों के सिक्के मौजूद हैं. ये सिक्के उनके चित परिचित यार दोस्त जब भी विदेश जाते थे. वहां से वापस लौट कर उपहार के रूप में उन्हें देते थे और उन्हीं सिक्कों को लक्ष्मीनारायण लाहोटी आज भी संभाल कर रखे हुए. वे बताते हैं कि इन सिक्कों को संभाल कर रखना काफी मुश्किल काम है. केमिकल से धोने के बाद इसे एक खास रैपर में पैक कर एल्बम में रखना होता है. एक पैसे से लेकर 500 रुपये के सिक्के मौजूद हैं.
इस आधुनिक जमाने में एक शख्स ऐसा भी है जो पुराने और नए सिक्कों के साथ ही देशी विदेशी सिक्कों को संजोकर और सहेज कर रखे हुए हैं. कई दशक पुराने होने के बाद भी यह सिक्के आज भी उतने की चमक रहे हैं जैसे पहले हुआ करता था. सिक्के एकत्र करने के शौकीन लक्ष्मी नारायण लाहोटी के पास एक पैसे से लेकर 500 रुपए तक के सिक्के आज के जमाने में मौजूद है. सिक्कों का संग्रह करने का काम इस शख्स ने 40 साल पहले शुरू किया था जो आज भी निरंतर जारी है.
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40 वर्षों से कर रहे हैं सिक्कों का संग्रह
सिक्के एकत्र करने के शौकीन बताते हैं कि सिक्कों का इतिहास हजारों साल पुराना है और उन्हें सिक्के एकत्र करने की प्रेरणा उनके पिताजी से विरासत में मिली है. जिसको वह आज भी संभाल कर रखे हुए हैं. वे बताते हैं कि 40 सालों से फटे पुराने नोट पीतल के गिलास और सिक्कों का संग्रहण उनके पास मौजूद है. सिक्कों के इतिहास के बारे में बात किया जाए तो सबसे पहले पत्थर उसके बाद लकड़ी फिर सोने और चांदी के सिक्कों के बाद प्रचलन में धातु के सिक्के आए.
राजा महाराजा के शासनकाल में शुरू हुआ सिक्कों का चलन
लक्ष्मी नारायण लाहोटी बताते हैं कि पुराने समय में विनिमय के रूप में वस्तुओं का आदान प्रदान होता था. उसके बाद जब राजा और महाराजा का शासन काल आया. उस समय सिक्कों का चलन शुरू हुआ. जिसे मुद्रा भी कहा जाता है और उसके बाद लेन देन मुद्रा यानी सिक्कों के माध्यम से होने लगा जो आज के वर्तमान समय में भी लगातार और निरंतर चल रहा है. इन सिक्कों का स्वरूप जरूर बदला है. वर्तमान समय में एक दो पांच और दस के सिक्के प्रचलन में हैं और इन्हीं सिक्कों से वस्तुओं का क्रय विक्रय होता है.
पिता के शौक को आज भी रखे हुए हैं जिंदा
छत्तीसगढ़ी नहीं पूरे देश में ऐसे लोग बहुत कम ही मिलेंगे जो पुरानी और प्राचीन चीजों को सैकड़ों सालों तक सहेज कर और संभाल कर रख सके, लेकिन लक्ष्मीनारायण लाहोटी ने अपने पिता के द्वारा विरासत में मिली इस शौक को आज भी जिंदा रखे हुए हैं. ये उनकी जिंदादिली और दीवानगी ही जो आज भी देशी और विदेशी सिक्कों को एक परिवार की तरह ही देखभाल करते हैं.