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Pradosh Vrat 2021: जानें भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि और महत्व

कार्तिक शुक्ल पक्ष (Kartik Shukla Paksha) की द्वादशी तिथि 16 नवंबर सुबह 8:00 बजे तक रहेगी. 8:00 बजे से दूसरे दिन 17 नवंबर तक सुबह 9:50 तक त्रयोदशी तिथि रहेगी. यह पर्व मंगलवार को होने की वजह से भौम प्रदोष कहलाता है.भौम प्रदोष व्रत (Bhum Pradosh Vrat) की पूजा विधि और महत्व को जानें...

bhaum pradosh vrat
भौम प्रदोष व्रत
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Published : Nov 15, 2021, 7:40 PM IST

रायपुर: कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 16 नवंबर सुबह 8:00 बजे तक रहेगी. 8:00 बजे से दूसरे दिन 17 नवंबर तक सुबह 9:50 तक त्रयोदशी तिथि रहेगी. यह पर्व मंगलवार को होने की वजह से भौम प्रदोष व्रत (Bhum Pradosh Vrat) कहलाता है. इसे गरुड़ द्वादशी भी कहते हैं. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है. रेवती नक्षत्र सिद्धि योग और शुभ योग के साथ बालव करण और कौलव करण विद्यमान रहेंगे.

भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि और महत्व

यह भी पढ़ें: देवउठनी एकादशी पर रायपुर के बाजार से रौनक गायब, दुकानदार मायूस

भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

पंडित विनीत शर्मा ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 16 नवंबर दोपहर को 1 बजे से सूर्य का आगमन वृश्चिक राशि में होता है. इसलिए इसे वृश्चिक संक्रांति भी कहते हैं. वृश्चिक संक्रांति में सूर्य अपने प्रबल मित्र मंगल की राशि में आता है. आज के दिन रवि योग का भी सुंदर योग बन रहा है. अनेक विशिष्ट योग एवं मुहूर्त में होने की वजह से यह भौम प्रदोष व्रत विशिष्ट है.

आज के दिन प्रातः बेला में सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान से योग से निवृत्त होकर भगवान शंकर की पूजा में संलग्न हो जाना चाहिए. भगवान शिव को सम्मान पूर्वक उचित आसन देकर उनकी प्रतिमा या पवित्र शिवलिंग को गंगाजल, शहद, नर्मदा के जल, चावल, पंचामृत और दूध आदि पदार्थों से उचित रीति से अभिषेक करना चाहिए. साथ ही अबीर गुलाल, चंदन और परिमल अनेक औषधीय द्रव्यों से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करना चाहिए. इस व्रत का पालन पूरे अनुशासन से करना चाहिए. आज के दिन व्रती को संयमित, नियमित और अनुशासित जीवन जीना चाहिए. शांतचित्त मन से इस व्रत को करने का विधान है. अनावश्यक खानपान से बचना चाहिए.


प्रदोष व्रत का विशेष महत्व

प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का विशेष महत्व है. गोधूलि बेला के समय प्रदोष काल कहलाता है. मान्यता है कि भगवान शिव बहुत प्रसन्न होकर कैलाश में नृत्य करते हैं. प्रदोष काल में पूजा करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि स्नान कर प्रदोष काल की पूजा करें. मध्यान्ह में 4:06 से लेकर 6:30 तक का प्रदोष काल शुभ माना गया है. इस प्रदोष काल में शिव अर्चन, उपासना, ध्यान और योग करना श्रेष्ठ माना गया है. योग आदि के प्रथम पुरुष भगवान शिव माने गए हैं. योग की उत्पत्ति भगवान शिव के द्वारा ही मानी गई है.

रायपुर: कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 16 नवंबर सुबह 8:00 बजे तक रहेगी. 8:00 बजे से दूसरे दिन 17 नवंबर तक सुबह 9:50 तक त्रयोदशी तिथि रहेगी. यह पर्व मंगलवार को होने की वजह से भौम प्रदोष व्रत (Bhum Pradosh Vrat) कहलाता है. इसे गरुड़ द्वादशी भी कहते हैं. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है. रेवती नक्षत्र सिद्धि योग और शुभ योग के साथ बालव करण और कौलव करण विद्यमान रहेंगे.

भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि और महत्व

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भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

पंडित विनीत शर्मा ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 16 नवंबर दोपहर को 1 बजे से सूर्य का आगमन वृश्चिक राशि में होता है. इसलिए इसे वृश्चिक संक्रांति भी कहते हैं. वृश्चिक संक्रांति में सूर्य अपने प्रबल मित्र मंगल की राशि में आता है. आज के दिन रवि योग का भी सुंदर योग बन रहा है. अनेक विशिष्ट योग एवं मुहूर्त में होने की वजह से यह भौम प्रदोष व्रत विशिष्ट है.

आज के दिन प्रातः बेला में सूर्योदय से पूर्व स्नान ध्यान से योग से निवृत्त होकर भगवान शंकर की पूजा में संलग्न हो जाना चाहिए. भगवान शिव को सम्मान पूर्वक उचित आसन देकर उनकी प्रतिमा या पवित्र शिवलिंग को गंगाजल, शहद, नर्मदा के जल, चावल, पंचामृत और दूध आदि पदार्थों से उचित रीति से अभिषेक करना चाहिए. साथ ही अबीर गुलाल, चंदन और परिमल अनेक औषधीय द्रव्यों से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करना चाहिए. इस व्रत का पालन पूरे अनुशासन से करना चाहिए. आज के दिन व्रती को संयमित, नियमित और अनुशासित जीवन जीना चाहिए. शांतचित्त मन से इस व्रत को करने का विधान है. अनावश्यक खानपान से बचना चाहिए.


प्रदोष व्रत का विशेष महत्व

प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का विशेष महत्व है. गोधूलि बेला के समय प्रदोष काल कहलाता है. मान्यता है कि भगवान शिव बहुत प्रसन्न होकर कैलाश में नृत्य करते हैं. प्रदोष काल में पूजा करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि स्नान कर प्रदोष काल की पूजा करें. मध्यान्ह में 4:06 से लेकर 6:30 तक का प्रदोष काल शुभ माना गया है. इस प्रदोष काल में शिव अर्चन, उपासना, ध्यान और योग करना श्रेष्ठ माना गया है. योग आदि के प्रथम पुरुष भगवान शिव माने गए हैं. योग की उत्पत्ति भगवान शिव के द्वारा ही मानी गई है.

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