रायपुर: बस्तर में एक आदिवासी युवक से दो युवतियों की शादी की चर्चा है. दोनों ही युवक को पसंद करती थीं. इस पूरी शादी पर गांववालों ने रजामंदी दी है. दोनों युवतियों की शादी एक ही मंडप में एक साथ हुई है.
आदिवासी मामलों की जानकार शालिनी साबू के मुताबिक आदिवासी समुदायों का भारतीय संविधान में स्पेशल स्टेटस है. इन पर अन्य प्रावधान लागू नहीं होता. भारतीय संविधान के शेड्यूल 5 के तहत आदिवासियों की प्रथा मान्य होंगी. अगर वे कोडीफाय नहीं भी होंगी, तब भी मान्य होंगी. इसके अलावा आर्टिकल 9 के क्लॉज 4 और 5 के तहत ये भी कहा गया है कि विशेष मामलों में मसलन संपत्ति और विवाह आदि में अगर संविधान के अन्य प्रावधान से कॉनफिलिक्ट की स्थिति बनती है, तब भी आदिवासियों का प्रथागत कानून ही मान्य होगा. भारतीय संविधान में ये व्यवस्था आदिवासियों के विशेष जनजाति दर्जे को सुरक्षा देने के लिए किया गया है.
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छत्तीसगढ़ के बस्तर में सामने आए इस मामले में ये देखना होगा कि क्या इस युवक का प्रथागत कानून इस तरह दो विवाह करने की अनुमति देता है. अगर नहीं तो इसके तहत क्या सजा का प्रावधान है.
बात अगर हिंदू विवाह अधिनियम की करें तो इस तरह दो युवतियों से विवाह अपराध की श्रेणी में आता है. लेकिन मामला आदिवासी समाज से जुड़े युवक और युवतियों से है तो हमें प्रथागत कानून के नजरिए से ही देखना होगा.
क्या है प्रथागत कानून?
जिन कानूनों को सामाजिक प्रथाओं, मापदंडों, आदर्शों, विभिन्न प्रकार के नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर विकसित किया जाता है, उन्हें प्रथागत कानून कहते हैं. बहुत सारे आदिवासी समाज में प्रथागत कानून पाए जाते हैं, लेकिन इन्हें संहिता का स्वरूप नहीं दिया गया है.