ETV Bharat / state

Kanwar Yatra 2022: आखिर क्यों शुरू हुई कांवड़ यात्रा, क्या है महत्व

भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त हर साल कांवड़ लेकर शिव के प्रसिद्ध मंदिर जाते हैं. वहां जाकर भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाते (Importance of Kanwar Yatra ) हैं.

Kanwar Yatra 2022
कांवड़ यात्रा 2022
author img

By

Published : Jul 12, 2022, 1:18 PM IST

रायपुर: भगवान शिव का प्रिय माह सावन है. सावन में भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. लोग मन्नत के अनुसार हर साल कांवड़ लेकर भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने जाते हैं. इस साल 14 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है. भगवान शिव शंकर को सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए वे देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं. वे कालों के भी काल महाकाल हैं. इनकी कृपा से बड़ा से बड़ा संकट भी टल जाता (Importance of Kanwar Yatra) है. कहते हैं कि सावन महीने में प्रत्येक सोमवार को पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखने पर भगवान भोलेनाथ का आशिर्वाद प्राप्त होता है. हर साल श्रद्धालु भोलेबाबा को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं.

क्या होती है कांवड़ यात्रा: सावन के पावन माह में शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं. जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव को खुश करने के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर पैदल लाते हैं. फिर बाद में वो गंगा जल भगवान भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है. इस पूरी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है.

कावड़ यात्रा का महत्व: कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ काफी भोले हैं. वे बहुत ही आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले देव हैं. भोलेनाथ केवल भाव के भूखे हैं. यदि कोई श्रद्धा पूर्वक उन्हें केवल एक लोटा जल अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए हर साल भक्त कावड़ यात्रा निकालते हैं.

यह भी पढ़ें: इसलिए सावन माह में होती है भगवान भोलेनाथ की पूजा

कब से शुरू हो रही कावड़ यात्रा: हर साल लाखों शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं. ये यात्रा हर साल सावन माह में निकाली जाती है. 14 जुलाई दिन गुरुवार से सावन माह की शुरुआत हो रही है. इस दिन लाखों श्रद्धालु गंगा नदी से जल भरकर प्रसिद्ध शिव मंदिर पहुंचेंगे और महादेव का रुद्राभिषेक करेंगे.

पौराणिक मान्यता: कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था. वेद कहते हैं कि कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही शुरू हुई थी. उस दौरान जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा. भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया, लेकिन इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक ऊर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया. रावण भगवान शिव का सच्चा भक्त था. वह कांवड़ में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया. तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली.

रायपुर: भगवान शिव का प्रिय माह सावन है. सावन में भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. लोग मन्नत के अनुसार हर साल कांवड़ लेकर भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाने जाते हैं. इस साल 14 जुलाई से सावन शुरू हो रहा है. भगवान शिव शंकर को सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए वे देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं. वे कालों के भी काल महाकाल हैं. इनकी कृपा से बड़ा से बड़ा संकट भी टल जाता (Importance of Kanwar Yatra) है. कहते हैं कि सावन महीने में प्रत्येक सोमवार को पूरी श्रद्धा के साथ व्रत रखने पर भगवान भोलेनाथ का आशिर्वाद प्राप्त होता है. हर साल श्रद्धालु भोलेबाबा को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालते हैं.

क्या होती है कांवड़ यात्रा: सावन के पावन माह में शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं. जिसमें लाखों श्रद्धालु भगवान शिव को खुश करने के लिए प्रमुख तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी कांवड़ को अपने कंधों पर रखकर पैदल लाते हैं. फिर बाद में वो गंगा जल भगवान भोलेनाथ को चढ़ाया जाता है. इस पूरी यात्रा को कांवड़ यात्रा कहा जाता है.

कावड़ यात्रा का महत्व: कहते हैं कि भगवान भोलेनाथ काफी भोले हैं. वे बहुत ही आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले देव हैं. भोलेनाथ केवल भाव के भूखे हैं. यदि कोई श्रद्धा पूर्वक उन्हें केवल एक लोटा जल अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं. इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए हर साल भक्त कावड़ यात्रा निकालते हैं.

यह भी पढ़ें: इसलिए सावन माह में होती है भगवान भोलेनाथ की पूजा

कब से शुरू हो रही कावड़ यात्रा: हर साल लाखों शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं. ये यात्रा हर साल सावन माह में निकाली जाती है. 14 जुलाई दिन गुरुवार से सावन माह की शुरुआत हो रही है. इस दिन लाखों श्रद्धालु गंगा नदी से जल भरकर प्रसिद्ध शिव मंदिर पहुंचेंगे और महादेव का रुद्राभिषेक करेंगे.

पौराणिक मान्यता: कहा जाता है कि पहला कांवड़िया रावण था. वेद कहते हैं कि कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही शुरू हुई थी. उस दौरान जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा. भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया, लेकिन इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक ऊर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया. रावण भगवान शिव का सच्चा भक्त था. वह कांवड़ में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया. तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.