ETV Bharat / state

Chaitra Navratri 2023: चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना के समय रखें इन खास बातों का ध्यान, वरना...

चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना के समय जवारा बोने के कई नियम हैं, जिनका पालन करना बहुत जरूरी है. ऐसा करने से व्रत-पूजा को सफल माना जाता है. वहीं नियमों की अनदेखी से जहां व्रत अधूरा रह जाता है, वहीं इससे फायदा होने की बजाय नुकसान होने की आशंका रहती है.Raipur latest news

Chaitra Navratri 2023
चैत्र नवरात्र में इस तरह करें कलश स्थापन
author img

By

Published : Mar 16, 2023, 7:12 PM IST

चैत्र नवरात्रि

रायपुर: नवरात्रि में जवारा बोने की परंपरा रही है. मिट्टी के बने हुए पात्र कलश के रूप में जवारा के साथ स्थापित की जाती है. जवारा की स्थापना करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए. इस विषय में ईटीवी भारत ने ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा से बातचीत की. आइए जानते है कलश स्थापना और जवारा बोने की क्या है विधि.

इन बातों का रखें ध्यान: जवारा का पात्र प्लास्टिक, लोहे आदि का ना हो. मिट्टी से बने हुए पात्र का उपयोग किया जाना चाहिए. कहीं-कहीं पर तांबे के कलश का भी उपयोग किया जाता है. यह कलश पूरी तरह से साफ-सुथरा और स्वच्छ होना चाहिए. जवारा बोने के पहले इन पात्रों को बहुत अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए. यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि कलश खंडित ना हो. अखंडित कलश पात्र ही श्रेष्ठ माना जाता है. अखंडित कलश पात्रों का ही जवारा बोने के लिए उपयोग करना चाहिए.

यह भी पढ़ें: Meen Sankranti : देवगुरु की राशि में सूर्य के वर्तमान गोचर से इन 5 राशियों की चमकेगी किस्मत

शुद्धता होती है जरूरी: पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक " जवारा को हाथ लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हाथ लगाने वाले जातक पूरी तरह से स्नान करके आए हुए हों. विशेष दिनों में महिलाओं को इन्हें बिल्कुल भी स्पर्श नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही प्रतिदिन इन पात्रों पर शुद्धता के साथ सुरक्षित हाथों से और निर्मल मन के साथ दो बार जल डालना चाहिए. जब जवारा के रूप में इन्हें बोया जाता है तो इनके ऊपर गंगा जल को भी डालना चाहिए."

कलश के नीचे बनाए स्वास्तिक: पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "जवारा पात्र के नीचे छोटी सी रंगोली स्वास्तिक चिन्ह या ओम का चिन्ह बनाया जाना चाहिए. जवारा पात्र के बाहरी आवरण में भी ओम, स्वास्तिक, नवदुर्गा, शुभ-लाभ चिन्हों का कलात्मक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए. यह कलश पात्र पूरी तरह से शुद्ध स्थान पर रखे जाने चाहिए. वहां पर किसी भी रूप में गंदगी नहीं होनी चाहिए. इन लगाए हुए गेहूं के दानों में यह ध्यान रखें कि उन्नत किस्म की हो. अच्छी क्वालिटी के गेहूं के दानों का पूजा कार्यों में उपयोग करना चाहिए. कलश में लगाए हुए जवारा ना बहुत घने हो ना ही कम मात्रा में हो. इन्हें संतुलित रूप से लगाना चाहिए."

ऐसी जगह पर बैठाएं कलश: जवारा पात्र ऐसी जगह पर रखे होने चाहिए. जहां पर सूर्य की रोशनी बराबर मिलती रहे. जवारा पात्र में रासायनिक खाद का बिल्कुल भी उपयोग नहीं करना चाहिए. ऑर्गेनिक या शुद्ध देसी गाय के गोबर के खाद का संतुलित उपयोग किया जाना चाहिए. जवारा पात्र की मिट्टी शुद्ध और महीन होनी चाहिए. मिट्टी को पवित्र स्थल से लाकर आस्था पूर्वक स्थापित करना चाहिए. चैत्र शुक्ल पक्ष नवरात्रि के प्रथम दिन इन्हें स्थापित किया जाता है और 9 दिनों तक यह परिपक्व होकर सामने आते हैं. इसके बाद नवमी की शोभायात्रा में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है."

चैत्र नवरात्रि

रायपुर: नवरात्रि में जवारा बोने की परंपरा रही है. मिट्टी के बने हुए पात्र कलश के रूप में जवारा के साथ स्थापित की जाती है. जवारा की स्थापना करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए. इस विषय में ईटीवी भारत ने ज्योतिष एवं वास्तुविद पंडित विनीत शर्मा से बातचीत की. आइए जानते है कलश स्थापना और जवारा बोने की क्या है विधि.

इन बातों का रखें ध्यान: जवारा का पात्र प्लास्टिक, लोहे आदि का ना हो. मिट्टी से बने हुए पात्र का उपयोग किया जाना चाहिए. कहीं-कहीं पर तांबे के कलश का भी उपयोग किया जाता है. यह कलश पूरी तरह से साफ-सुथरा और स्वच्छ होना चाहिए. जवारा बोने के पहले इन पात्रों को बहुत अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए. यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि कलश खंडित ना हो. अखंडित कलश पात्र ही श्रेष्ठ माना जाता है. अखंडित कलश पात्रों का ही जवारा बोने के लिए उपयोग करना चाहिए.

यह भी पढ़ें: Meen Sankranti : देवगुरु की राशि में सूर्य के वर्तमान गोचर से इन 5 राशियों की चमकेगी किस्मत

शुद्धता होती है जरूरी: पंडित विनीत शर्मा के मुताबिक " जवारा को हाथ लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हाथ लगाने वाले जातक पूरी तरह से स्नान करके आए हुए हों. विशेष दिनों में महिलाओं को इन्हें बिल्कुल भी स्पर्श नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही प्रतिदिन इन पात्रों पर शुद्धता के साथ सुरक्षित हाथों से और निर्मल मन के साथ दो बार जल डालना चाहिए. जब जवारा के रूप में इन्हें बोया जाता है तो इनके ऊपर गंगा जल को भी डालना चाहिए."

कलश के नीचे बनाए स्वास्तिक: पंडित विनीत शर्मा ने बताया कि "जवारा पात्र के नीचे छोटी सी रंगोली स्वास्तिक चिन्ह या ओम का चिन्ह बनाया जाना चाहिए. जवारा पात्र के बाहरी आवरण में भी ओम, स्वास्तिक, नवदुर्गा, शुभ-लाभ चिन्हों का कलात्मक रूप से उपयोग किया जाना चाहिए. यह कलश पात्र पूरी तरह से शुद्ध स्थान पर रखे जाने चाहिए. वहां पर किसी भी रूप में गंदगी नहीं होनी चाहिए. इन लगाए हुए गेहूं के दानों में यह ध्यान रखें कि उन्नत किस्म की हो. अच्छी क्वालिटी के गेहूं के दानों का पूजा कार्यों में उपयोग करना चाहिए. कलश में लगाए हुए जवारा ना बहुत घने हो ना ही कम मात्रा में हो. इन्हें संतुलित रूप से लगाना चाहिए."

ऐसी जगह पर बैठाएं कलश: जवारा पात्र ऐसी जगह पर रखे होने चाहिए. जहां पर सूर्य की रोशनी बराबर मिलती रहे. जवारा पात्र में रासायनिक खाद का बिल्कुल भी उपयोग नहीं करना चाहिए. ऑर्गेनिक या शुद्ध देसी गाय के गोबर के खाद का संतुलित उपयोग किया जाना चाहिए. जवारा पात्र की मिट्टी शुद्ध और महीन होनी चाहिए. मिट्टी को पवित्र स्थल से लाकर आस्था पूर्वक स्थापित करना चाहिए. चैत्र शुक्ल पक्ष नवरात्रि के प्रथम दिन इन्हें स्थापित किया जाता है और 9 दिनों तक यह परिपक्व होकर सामने आते हैं. इसके बाद नवमी की शोभायात्रा में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है."

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.