रायपुर/हैदराबाद: अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस हर साल 21 फरवरी को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत यूनेक्को की ओर से 17 नवंबर 1999 को की गई थी, जो पहली बार साल 2000 में इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रुप में मनाया गया था. दुनिया भर में यह दिन लोगों के भीतर भाषाओं के प्रति लगाव, संरक्षण और बचाव को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है.
विलुप्त होने के कगार पर कई भाषाएं: पूरे विश्व में हर 14 दिन में कोई एक भाषा विलुप्त हो रही है और अपने देश भारत में भी स्थिति अच्छी नहीं है. भारत में कुल 19000 हजार से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं जिनमें से करीब 2,900 विलुप्ति होने की कगार पर हैं. सत्य तो यह है कि इन भाषाओं को मात्र 100 या इससे कम लोग बोलते हैं. मात्र 121 भाषाएं 10,000 से अधिक लोग बोलते हैं.
मातृभाषा को बढ़ावा देने की आवश्यकता: विश्व के किसी भी देश में प्राथमिक शिक्षा विदेशी भाषा में नहीं दी जाती. विश्व के परिप्रेक्ष्य में लगभग सभी उन्नत एवं विकसित देशों में वहां की शिक्षा, शोध कार्यों, शासन-प्रशासन की भाषा वहां की भाषा होती है. अपने देश में भी ऐसे ही भाव को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे कि सभी कार्य मातृभाषा में हों. भारत के महापुरुषों, शिक्षाविदों जैसे विनोबा भावे, महात्मा गांधी, पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के भी यही विचार थे.
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हिंदी की विशेष भूमिका: एक तरफ जहां हिंदी सिनेमा खरबों रुपयों की इंडस्ट्री है तो दूसरी तरफ देश के सर्वाधिक पठित अखबार हिंदी के हैं. हम टेलीविजन की बात करें तो दो तिहाई चैनल हिंदी के हैं और सर्वाधिक देखे जाने वाले चैनलों में हिंदी आगे है. विज्ञापन में भी हिंदी का बोलबाला है और यह भी प्रसन्नता का विषय है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी भाषा नीति को प्रोत्साहित किया गया है. एक तरफ जहां हम भारत में हिन्दी और मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया में 200 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है. डिजिटल इंडिया के अंतर्गत मोबाइल एप्स आदि में भी हिंदी की अपार संभावनाएं हैं.