रायपुर: पर्यावरण सही हो तो मनुष्य स्वास्थ्य के प्रति निश्चिंत रहता है, लेकिन मौजूदा समय में पर्यावरण संरक्षण लोगों के लिए बड़ी चुनौती है. पर्यावरण की रक्षा न होने के कारण जलवायु दूषित हो रही है. जिसका मूल कारण कहीं न कहीं मनुष्य द्वारा की गई लापरवाही है. लोग पर्यावरण की रक्षा करने के बजाय पेड़ की कटाई से आर्थिक लाभ तलाश लेते हैं.
आजादी का अमृत महोत्सव के मौके पर ईटीवी भारत आपको पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाले भारतीय योद्धाओं से आज आपको रू-ब-रू कराने जा रहा है.
ग्रीन कमांडो वीरेंद्र सिंह: बालोद जिले के दल्लीराजहरा के रहने वाले वीरेंद्र सिंह कांकेर जिले के भानुप्रतापपुर में रहकर एक निजी कंपनी में काम करते हैं. वीरेंद्र सिंह का पर्यावरण के प्रति इतना प्रेम है कि प्रकृति को बचाने के लिए ये खुद भी हरियाली का चोला ओढ़ लेते हैं. वीरेंद्र ने अपने लिए एक हरियाली ड्रेस बनवाया है. इसी ड्रेस को पहनकर वे पैदल ही पौधे लगाने निकल जाते हैं. पौधे लगाने के साथ ही वे लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक भी कर रहे हैं. अब तक ये ग्रीन कमांडो बालोद, कांकेर, बस्तर में 30 हजार से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं.
सुंदरलाल बहुगुणा: प्रदूषण और उससे होने वाली तबाही के बारे में हम सभी बातें करते हैं. लेकिन इस क्षेत्र में उत्तराखंड के मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का नाम सबसे पहले आता है. हालांकि सुंदरलाल बहुगुणा हमारे बीच नहीं हैं. लेकिन उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम योगदान निभाया है. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन और टिहरी बांध का विरोध था. नौ जनवरी 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है. उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी.
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सुनीता नारायण: सुनीता नारायण को अंतरराष्ट्रीय क्लाइमेट स्कोरकार्ड संस्था की ग्लोबल स्पॉटलाइट रिपोर्ट 22 में नेशनल क्लाइमेट लीडर चुना गया है. वह सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की महानिदेशक हैं. उन्हें साल 2019 में टाइम पत्रिका के जरिए जलवायु परिवर्तन से लड़ाई के लिए दुनिया भर की 15 शीर्ष महिलाओं में शामिल किया गया था. उन्होंने पेड़ों के संरक्षण के साथ-साथ बाघों के संरक्षण के लिए भी काम किया. सुनीता नारायण ने 90 के दशक के शुरुआती दिनों से ही वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर रिसर्च शुरू किया. लगातार उसपर बात करती रहीं. इस दौरान उन्होंने लोगों को जागरुक करने का काम किया.
राजेंद्र सिंह: राजेंद्र सिंह ने राजस्थान के लोगों के साथ मिलकर ऐसा काम किया, जिससे लोगों के घर-घर पानी पहुंचाया गया. दरअसल, राजस्थान के कई गांवों में पानी नहीं था और जिन गांवों में पानी था, उसे लेकर उन गांव में पानी पहुंचाया गया जहां पानी नहीं पहुंच पा रहा था. उत्तर प्रदेश के बागपत में जन्मे और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त राजेंद्र सिंह को जल पुरुष के नाम से जाना जाता है. राजेंद्र सिंह ने 1980 के दशक में राजस्थान में पानी की समस्या पर काम करना शुरू किया. राजस्थान में छोटे-छोटे पोखर फिर जोहड़ से सैकड़ों गांवों में पानी उपलब्ध हो गया. साल 1975 में राजस्थान के अलवर से तरुण भारत संघ की स्थापना की. राजस्थान के 12 सौ गांव में करीब 12000 तालाब का आम लोगों की भागीदारी से निर्माण करवाया.साल 2015 में उन्होंने स्टॉक होम वाटर प्राइज जीताये पुरस्कार 'पानी के लिए नोबेल पुरस्कार' के रूप में जाना जाता है.
वंदना शिवा: वंदना शिवा पर्यावरण को स्वच्छ और हरा-भरा बनाने के लिए लंबे समय से काम कर रही हैं. वह पर्यावरण के संवर्धन और संरक्षण के काम में वर्षों से लगी हैं. वह धरती मां को परिवार का हिस्सा मानती हैं.इन्होंने भी चिपको आंदोलन में हिस्सा लिया था. उसके बाद वंदना शिवा लगातार पर्यावरण संरक्षण और जलवायु को लेकर काम कर रही है.